राहुल गांधी भारत को जोड़ने निकले थे, लेकिन तोड़ रहे हैं ‘कांग्रेस’ और ‘न्याय’ मांग रहे हैं ‘कार्यकर्ता’

Rahul Gandhi on Bharat Jodo Yatra continues to attack the central government

राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा हो या भारत जोड़े न्याय यात्रा दोनों में कोई अंतर नहीं है, दोनों यात्रायें बुरी तरह से फ्लॉप रही हैं। उससे ना तो राहुल गांधी की छवि पर कोई असर पड़ा है. सकारात्मक असर ना कांग्रेस पार्टी की ताकत बढ़ी है। बल्कि दोनों पर बुरा असर नकारात्मक असर पड़ा है. यह है कांग्रेस पार्टी इसलिए कांग्रेस पार्टी का 2024 में तो कुछ होना नहीं है। उसके बाद भी कुछ होगा।

अगर किसी हिंदी साहित्य के विद्यार्थी को परीक्षा में इंग्लिश लिटरेचर का परचा दे दिया जाए, तो उसका क्या हश्र होगा ठीक वही हश्र हो रहा है कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी का। उनकी यह जो भारत जोड़ न्याय यात्रा है, दरअसल वह उनके सिलेबस से बाहर का मामला है। यह मुद्दा ही उन उनको सूट नहीं करता।

उसकी वजह है, कोई भी मुद्दा आप लेकर चले पहले उस मुद्दे की समझ होनी चाहिए. इसलिये पहली बात तो यह कि राहुल गांधी को यह बताया जाना चाहिए था, समझाया जाना चाहिए था, इसको आर्टिकुलेट करने का तरीका बताया जाना चाहिए था कि भारत को जोड़ने की जरूरत क्यों है।

अगर पहले चरण की बात करे तब तक नया शब्द नहीं जुड़ा था। भारत जोड़ो यात्रा थी तो भारत कहां से टूट रहा है, पहले तो आपको यह साबित करना पड़ेगा। यह आपको एस्टेब्लिश करना पड़ेगा कि भारत टूट रहा है. या भारत की एकता खतरे में है जब आप यह एस्टेब्लिश करेंगे। तब उसके बाद अगला चरण होगा, आप को यह बताना पड़ेगा कि आप उसे कैसे जोड़ेंगे. आपके पास ऐसे कौन से उपकरण हैं, ऐसा कौन सा सिद्धांत है, ऐसा ऐसी कौन सी सोच है, कौन सी विचारधारा है जो इसको जोड़ सकती है।

दूसरा अहम मुद्दा ये है कि, दूसरे चरण में शब्द नया जोड़ा गया ‘न्याय’ तो ‘अन्याय’ कहां हो रहा है। किसके साथ हो रहा है। देखिए ऐसा है कि इस बात को समझने के लिए जरा थोड़ी देर के लिए आप किसान हो जाइए। किसान को आप देखिए तो आपको समझ में आएगा कि वह किस तरह से काम करता है। जीवन के हर क्षेत्र में कैसे काम करना चाहिए।

किसान पहले अपना खेत तैयार करता है। फिर मौसम देखता है. फिर उसके बाद बीज डालने का काम करता है। वह खेत की तैयारी के बिना बीज नहीं डालता और जब वह बीज डालता है तो उसको उस समय पता होता है कि यह सारे बीज अंकुरित नहीं होंगे. तो वो इसके लिए तैयार रहता है कि कुछ बीज जो है अंकुरित नहीं होंगे।

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इसलिए वह मात्रा तय करता है कि कितने खेत के आकार में कितना बीज पड़ेगा और यहीं रुक नहीं जाता बीज डालने के बाद फिर वह निराई गुड़ाई करता है। सिंचाई करता है, खाद देता है, पानी देता है, यह सब करते हुए उसकी देखभाल करता है। फसल की तब फसल तैयार होती है, तब वह काटता है और उसका फायदा उसको मिलता है। तो जीवन का कोई क्षेत्र हो नियम यही है कि पहले जमीन तैयार कीजिए।

क्या राहुल गांधी ने अपनी राजनीतिक जमीन तैयार की है। इस यात्रा के लिए इसका जवाब है स्पष्ट ना, नही. उन्होंने या उनकी पार्टी ने इसकी कोई तैयारी नहीं की है. उनकी पार्टी के लोगों के मन में एक हीनभावना हमेशा रही है। उनका नेता जनसंपर्क नहीं करता. लोगो से नही मिलता। ऐसे में अगर राहुल गांधी जनसंपर्क करने लगेंगे। लोगों से मिलने लगेंगे तो तस्वीर कांग्रेस की और राहुल गांधी की जो छवि है दोनों बदल जाएगी।

इसी कोशिश में हिनभावना कम करने के लिए, और लोगों से राहुल गाँधी मिलते है, ये जताने और दिखाने के लिए शुरू की गई ‘भारत जोड़ो यात्रा’ बाकी कुछ नहीं है। अब सवाल यह है कि पहले तो उनको इस बात को परिभाषित करना चाहिए था, इस बात को एक्सप्लेन करना चाहिए था कि ‘भारत को जोड़ने’ की जरूरत क्यों पड़ी। किसी भी चीज को जोड़ने की जरूरत क्यों पड़ती है जब वो टूट गई हो या टूट रही हो। तो क्या भारत टूट गया है, या टूट रहा है अगर ऐसा है तो यह बताना पड़ेगा कि भारत कैसे टूट गया है। कैसे टूट रहा है और उसको जोड़ने का उपकरण क्या है।

कांग्रेस पार्टी और राहुल गांधी के पास कौन सी विचारधारा है, कौन सी नीति है, याद रखिए कांग्रेस का जो अतीत है, वह इसके ठीक विपरीत है। देश का विभाजन कांग्रेस के ही नेतृत्व में हुआ। इसलिए कांग्रेस जब ‘भारत जोड़ो’ की बात करती है, तो लोगों को देश का विभाजन याद आता है। तो उस विभाजन की विभीषिका को भुलाने के लिए कांग्रेस ने पिछले 75 सालों में क्या किया, कुछ नहीं। उस विभीषिका को और जीवित रखा उसके जो चिन्ह थे, जो प्रतीक थे, उनको जीवित रखा तो ऐसे में कांग्रेस पार्टी या उसका नेता भारत जोड़ने की बात करें तो लोग कैसे विश्वास विश्वास करेंगे।

थोड़ी देर के लिये मान लीजिए कि भारतीय जनता पार्टी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश को तोड़ने की बात कर रहे हैं। केवल मैं तर्क के लिए कह रहा हूं सच्चाई से इसका दूर दूर तक कोई नाता नहीं है। लेकिन तर्क के लिए मान ले तो सवाल यह है, उसको जोड़ने के लिए कौन योग्य संस्था है संगठन है, या व्यक्ति है, या नेतृत्व है। वो कम से कम कांग्रेस तो नहीं हो सकती. राहुल गांधी नहीं हो सकते. राहुल गांधी इस देश को जोड़ने के बारे में क्या बोल सकते हैं।

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जो अभी कुछ महीने पहले तक विदेश जाकर यह कहते थे कि, भारत जो है यूनियन ऑफ स्टेट्स है यानी भारत का विभाजन हो सकता है. भारत के जो अलग-अलग राज्य हैं। वह अलग-अलग देश बन सकते हैं। इस तरह का संदेश देने की कोशिश कर रहे थे। वह नेता अगर भारत जोड़ों की बात करता है, तो लोगों को उस पर क्यों और कैसे विश्वास करना चाहिए. राहुल गांधी को यह बात पहले स्पष्ट करनी चाहिए थी कि उनकी बात पर लोग भरोसा क्यों करें।

पहले तो यह माने क्यों कि भारत टूट रहा है, या टूटा है फिर दूसरी बात यह क्यों माने भारत को जोड़ने वाले वह सबसे उपयुक्त व्यक्ति हैं। यह नहीं बताया तो सवाल यह है कि यह यात्रा शुरू क्यों हुई। इस यात्रा का उद्देश भारत जोड़ो या भारत को जोड़ने से या या भारत टूट रहा है, या टूट गया है, इससे कोई दूर दूर तक उसका नाता नहीं था। 

इस यात्रा का उद्देश्य मैं पहले चरण की लिख चूका हूं और वह है कि राहुल गांधी की छवि को सुधारा जाए और उनके रणनीतिकारों ने ईमानदारी से इस बात को मान भी लिया। इस यात्रा का उद्देश्य राहुल गांधी की जो ‘पप्पू’ की छवि देश में बन गई है और देश से बाहर उसको सुधारने का था और उनको लगता है कि यात्रा के पहले चरण से इसमें सुधार हुआ है। लेकिन राहुल गांधी ने बहुत जल्दी ही उन सब लोगों को ऐसा मानने वालों को गलत साबित कर दिया। 

उन्होंने अपने बयानों से अपने व्यवहार से, अपनी कार्यशैली से यह साबित कर दिया कि उनकी छवि में कोई अंतर नहीं आया है। उनमें कोई मौलिक बदलाव नहीं आया है। या वह मौलिक बदलाव लाना चाहते हैं। इसकी भी इच्छा शक्ति नहीं दिखाई दी ऐसे में पहले चरण की यात्रा क्या सफल रही। कांग्रेस पार्टी मानती है सफल रही, तो सफलता के तीन चार पांच मानदंड होते हैं।

राजनीतिक सफलता की बात कर रहा हूं मैं किसी राजनीतिक पार्टी के कार्यक्रम की पहला उसका जनाधार बढ़े. दूसरा उसके नेता का जनाधार उसके नेता की छवि और ज्यादा चमके। तीसरा उसका संगठन पहले से ज्यादा मजबूत हो चौथा उसके कार्यकर्ताओं में नए उत्साह का संचार हो। पांचवा लोगों में उस संगठन की उस संगठन की विचारधारा की स्वीकार्यता बढ़े. क्या इन पांचों मानकों पर कांग्रेस पार्टी और राहुल गांधी की पहली जो यात्रा थी ‘भारत जोडो यात्रा’ का जो पहला चरण था. वह इन मानकों पर खरा उतरता है।

Only a shameless person can do this: Tajinder Bagga furious at Rahul Gandhi walking with a child without wearing a shirt in the cold

बिल्कुल नहीं, उस यात्रा के बाद ना तो कांग्रेस का जनाधार बढ़ा. ना राहुल गांधी का जनाधार बढ़ा. ना उनकी छवि चमकी। ना उनके उनके संगठन में मजबूती आई. ना कार्यकर्ताओं में नया उत्साह आया। भारत जोड़ो यात्रा के दौरान हुई पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव ने यह साबित कर दिया कि, इनमें से ऐसा कुछ भी नहीं हुआ था। बल्कि स्थिति और ज्यादा खराब हो गई। जिन राज्यों में सबसे ज्यादा कार्यकाल रहे और जहां चुनाव हुए वहां कांग्रेस की स्थिति पहले से और खराब हो गई।

जिन दो राज्यों में वह सत्ता में थी छत्तीसगढ़ और राजस्थान वहां सत्ता से बाहर हो गई। तो इसलिए ‘भारत जोड़ो यात्रा’ का जो पहला चरण था, उसको राजनीतिक दृष्टि से देखें तो पूरी तरह से असफल रहा. राहुल गांधी की छवि को लेकर बहस हो सकती है। राहुल गांधी के करीबी और उनके रणनीतिकार मानते हैं कि उनकी छवि में सुधार आया है। दरअसल उनके मन में एक गिल्टी कॉन्शियस था एक अपराध बोध था, कि उनके नेता लोगों से मिलते नहीं हैं अगर किसी तरह से उनको तैयार किया जा सके कि लोगों से मिलने जुलने लगे।

क्योंकि भारत जोड़ो यात्रा से पहले राहुल गांधी का जनसंपर्क सिर्फ इतना था कि वह चुनाव के समय चुनावी रैलियों में भाषण देने जाते थे। इसके अलावा उनका जनसंपर्क का कोई माध्यम, कोई तरीका, कोई कार्यक्रम नहीं था। इस दौरान भारत जोड़ यात्रा के दौरान जो लोगों से मिले, पैदल चले, उनके साथ सैकड़ों हजारों लोग चले, उससे लगा कि यह छवि अब बदल रही है। लेकिन राहुल गांधी ने यह साबित किया यह सब तात्कालिक था। यह प्याले में तूफान उठने जैसा था। उससे ज्यादा कुछ नहीं था और मैं मैं किस आधार पर कह रहा हूं, यह मैं पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के नतीजों के आधार पर कह रहा हूं।

देखिए डेमोक्रेसी में चुनाव एक बड़ा पैमाना है, किसी भी पार्टी के संगठन उसके नेतृत्व उसकी विचारधारा की स्वीकार्यता ग्राह्यता को नापने का और इन चुनाव के नतीजों ने बताया कि राहुल गांधी और कांग्रेस की स्वीकार्यता और ग्राह्यता जो है पहले से कम हुई है बढ़ी नहीं है। मेरी नजर में भारत जोड़ो यात्रा का पहला चरण बुरी तरह से फ्लॉप रहा। राहुल गांधी की छवि में जहां तक सुधार की बात है, उनके जो रणनीतिकार हैं, उनका मानना है कि उनकी जो ‘पप्पू की छवि’ थी उसमें बड़ा सुधार हुआ है, लेकिन राहुल गांधी ने उसको गलत साबित किया है।

जैसा मैंने पहले लिखा कि, उन्होंने अपने बयानों से साबित कर दिया कि उन उनमें जो है गंभीर विषयों की समझ नहीं है और उनको कैसे प्रस्तुत किया जाए इसकी इसकी समझ तो बिल्कुल ही नहीं है। वह कुछ भी बोलते हैं और उनको लगता है कि यही सच है और उसी को बार-बार बोलते जाते हैं। देखिए किसी भी राजनीतिक पार्टी का कार्यक्रम हो संगठन का कार्यक्रम हो नेता का कोई अभियान हो, कोई आंदोलन हो, उसके बारे में सोचने से पहले एक किसान की तरह सोचना चाहिए किसान कैसे काम करता है।

किसान किसी फसल को उगाने से पहले अपनी जमीन तैयार करता है. खेत तैयार करता है। जब खेत की उसकी तैयारी हो जाती है तब उसमें बीज डालने का काम करता है। लेकिन उससे पहले देखता है मौसम कौन सा है। अब राहुल गांधी जिस तरह से काम करते हैं। उसमें लगता है कि जैसे रबी के मौसम में खरीफ की फसल उगाने की की कोशिश कर रहे हैं। किसान जब जब बीज डालता है, तो उसको पता होता है यह सारे बीज अंकुरित नहीं होंगे।

इसलिए उसको अंदाजा रहता है कि कितने बड़े खेत में किस आकार के खेत में कितना बीज डालना डालना चाहिए. उनमें से कितने अंकुरित होंगे और कितने नहीं होंगे। एक मोटा अंदाजा उसको रहता है। उसके बाद भी वह चुपचाप घर जाकर सोजन नहीं जाता. वो बैठ नहीं जाता फिर वह उसकी निराई गुड़ाई करता है। उसमें खाद डालता है उसकी सिंचाई करता है और फिर उसकी रखवाली करता है. तब जब फसल तैयार होती है तो उसको काटता है।

राहुल गांधी को लगता है कि किसी भी समय किसी भी समय खेत में बीज छिड़का जा सकता है और बीज छिड़कने के बाद जाकर घर पर सो जाना चाहिए और फसल तैयार हो जाएगी। ऐसा होता नहीं है और हो भी नहीं रहा है। उनकी भारत जोड़ो यात्रा का दूसरे चरण में न्याय शब्द जोड़ दिया गया। अब सवाल यह है कि अन्याय किसके साथ हो रहा है, नहीं हो रहा है। इस बात को छोड़ दीजिए राहुल गांधी को और कांग्रेस पार्टी को यह बताना पड़ेगा। देश को बताना चाहिए था, देश में कहा और किस पर कैसे अन्याय हो रहा है।

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देश में अन्याय किसके साथ हो रहा है और जहां उनकी सरकारें थी। उनकी राज्य सरकारें थी, वहां उन्होंने जनता को न्याय कैसे दिलाया है. जब 10 साल तक केंद्र में उनकी सरकार थी. तब न्याय कैसे दिलाया है। आम तौर पे एक उदाहरण प्रस्तुत करते कि देखिए हमारी सरकार जब थी, हम जब सत्ता में थे तो हमने इस तरह से न्याय दिलाया। अब पिछले 10 साल में जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार है भाजपा की सरकार है, तो वह लोगों के साथ इस तरह से अन्याय कर रही है। यह जब आप कंट्रास्ट खड़ा करते हैं, जब यह उदाहरण पेश करते हैं. तो आपकी बात की विश्वसनीयता बनती है।

तब लोगों को उदाहरण से समझ में आता कि आप जो बात कह रहे हैं, उसमें कुछ दम है. लेकिन राहुल गांधी के पास यह सब बताने का कुछ कुछ था ही नहीं। 10 साल की अगर चर्चा करते व यूपीए के की सरकार के 10 साल की तो उसमें बुराई ही बुराई दिखती है। भ्रष्टाचार से लेकर अव्यवस्था को व्यवस्था और अर्थव्यवस्था की कुव्यवस्था सब कुछ शामिल है। तो केवल नेगेटिव ही नेगेटिव है. 10 साल का यूपीए का शासन नकारात्मक चीजों के अलावा कोई सकारात्मक बात उस दौरान हुई नहीं। नहीं तो उनके सामने यह उदाहरण पेश करने का कोई औजार ही नहीं है, जिससे वह बता सके कि हमारी सरकार बेहतर थी, अगर उनकी सरकार ना रही होती तो उनके लिए ज्यादा आसान होता, तब वह वादा कर सकते थे।

लेकिन चूंकि सरकार रह चुकी है इसलिए वादा नहीं उनको दावा करना चाहिए था कि देखिए हम हमने यह करके दिखाया और यह लोग यह नहीं कर पा रहे हैं। तो भारत जोड़ो न्याय यात्रा का कोई असर पूरे देश में कहीं हो नहीं रहा है। अब तो हालत यह हो गई है कि वह यात्रा चर्चा से भी बाहर हो गई। अब आप देखिए जिन लोगों ने इस यात्रा की योजना बनाई उनकी समझ देखिए उससे एक बात पता चलता है कि वहां कोई राजनीतिक समझ वाला व्यक्ति नहीं है। जब 17वीं लोकसभा का आखिरी सत्र चल रहा हो, सबसे महत्त्वपूर्ण सत्र चल रहा हो उस समय राहुल गांधी का संसद से अनुपस्थित रहना यह अपने आप में में सबसे बड़ी राजनीतिक रणनीति की गलती है।

संसद में राहुल गांधी मौजूद होते तो कांग्रेस पार्टी और अपनी बात को ज्यादा प्रभावी ढंग से पेश कर पाते, कह पाते। लोकसभा के इस आखिरी सत्र में कांग्रेस जैसे बिना सेनापति की फौज थी। तो कांग्रेस पार्टी को जो थोड़ा बहुत फायदा मिल सकता था, वह भी नहीं मिला। अब यह किसने रणनीति बनाई कि राहुल गांधी संसद के सत्र में शामिल नहीं होंगे. जबकि वह यात्रा के बीच में से दो दिन की हर हफ्ते छुट्टी लेकर दिल्ली आते हैं। 

दिल्ली आने के बावजूद वो जिस समय छुट्टी लेते है, वह कौनसा दिन होता है, किसी की पता नहीं. शायद शनिवार या रविवार आते हैं, या कौन से दिन आते हैं पता नहीं। लेकिन वो दो दिन वह ऐसे रख सकते थे। जब संसद की कार्यवाही चल रही होती, उसमे शामिल होते, अपनी बात रखते। जनता के हितों की बात करते. लेकिन अब नतीजा यह हुआ कि वह संसद के सत्र में नहीं आए. तो उनकी न्याय यात्रा धीरे-धीरे खबरों से बाहर चली गई।

खबरें क्या बनी कांग्रेस छोड़ने वालों की मिलिंद देवड़ा, बाबा सिद्दीकी, और अब अशोक चौहाण के पार्टी छोड़कर जाने की खबरे बड़ी बनी. उसके अलावा इंडी गठबंधन के टूटने की खबर एक सप्ताह तक छाई रही। नीतीश कुमार छोड़कर इंडी गठबंधन एनडीए में चले गए भगवंत सिंह मान और अरविंद केजरीवाल ने घोषणा कर दी कि वह पंजाब की 13 और चंडीगढ़ की एक मिलाकर 14 की 14 सीटों पर चुनाव लड़ेंगे और आज उन्होंने घोषणा कर दी कि दिल्ली में वह कांग्रेस के लिए सात में से एक सीट सिर्फ छोड़ने के लिए तैयार है।

राहुल गांधी

ममता बनर्जी ने उस समय घोषणा कर दी जब उनकी यात्रा बंगाल पहुंचने वाली थी। पहले कांग्रेस को दो से ज्यादा सीटें नही देंगी, लेकिन पहले जो कह रही थी दो जगह देगी, बाद में कहा वह भी नहीं दे सकती। इसी तरह से समाजवादी पार्टी ने अपनी ओर से घोषणा कर दी कि कांग्रेस को 11 सीटें देंगे। कोई बातचीत नहीं हुई, वह ११ कौन सी सीटें होंगी, इस पर कोई समझौता नहीं हुआ। इस पर कोई चर्चा नहीं हुई। जून में बना था इडी एलायंस और हम फरवरी में हैं अभी तक सीटों के तालमेल की कोई बातचीत नहीं हुई है। 

क्या इसके लिए राहुल गांधी जिम्मेदार नहीं है। क्या उनकी यह भारत जोड़ो न्याय यात्रा से चुनाव की दृष्टि से यह ज्यादा महत्त्वपूर्ण नहीं था क्या उनकी भारत जोड़ो न्याय यात्रा को जिन लोगों ने प्लान किया रणनीति बनाई। उन्होंने उसको रिएसेस करने की कोशिश की स्ट्रेटेजी में एक चीज होती है, री स्ट्रेटजा इज करना कि आकलन कीजिए कि कहां सही जा रहा है। कहां गलत जा रहा है। जहां सही जा रहा है। वहां ज्यादा रिसोर्सेस लगाइए जहां गलत हो रहा है, उसको ठीक करने की कोशिश कीजिए।

लेकिन राहुल गांधी की जो यात्रा है, वह अपना एक गति में जैसे बाल बैलगाड़ी का बैल चलता है। सीधी लकीर में उस तरह से चलती जा रही है, उसका फायदा हो रहा है, नुकसान हो रहा है। उसका कोई लाभ मिल रहा है नहीं मिल रहा है। इसका कोई जैसे आकलन ही नहीं हो रहा हो. अगर आकलन हो रहा है और फिर भी सुधार नहीं हो रहा है तो यह और चिंता की बात है।

राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा हो या भारत जोड़े न्याय यात्रा दोनों में कोई अंतर नहीं है, दोनों यात्रायें बुरी तरह से फ्लॉप रही हैं। उससे ना तो राहुल गांधी की छवि पर कोई असर पड़ा है. सकारात्मक असर ना कांग्रेस पार्टी की ताकत बढ़ी है। बल्कि दोनों पर बुरा असर नकारात्मक असर पड़ा है. यह है कांग्रेस पार्टी इसलिए कांग्रेस पार्टी का 2024 में तो कुछ होना नहीं है। उसके बाद भी कुछ होगा।