Farmers Delhi Chalo Protest : क्यों फिर एक बार दिल्ली की ओर बढ़ रहा है किसान मार्च? जानिए हर सवाल का जवाब

Delhi Chalo Protest

Farmers Delhi Chalo Protest : किसानों ने एक बार फिर दिल्ली चलो का नारा दिया है। हरियाणा-पंजाब और देश के अन्य राज्यों से किसान एक बार फिर दिल्ली की ओर बढ़ रहे हैं। साल 2020-21 में करीब एक साल तक चले आंदोलन की मदद से किसानों ने नरेंद्र मोदी सरकार के 3 कृषि कानूनों को रद्द करवाया। लेकिन अब ऐसा क्या हो गया कि कुछ महीनों के बाद किसान फिर से अपनी मांगों को लेकर सड़कों पर आ गए हैं?

दरअसल, किसान आंदोलन की खबरों के बीच 12 फरवरी 2024 को केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल और कृषि मंत्री अर्जुन मुंडा की किसानों के साथ बैठक हुई, लेकिन वह बैठक बेनतीजा रही। जिसके बाद 13 फरवरी को किसान ट्रैक्टरों से दिल्ली मार्च के लिए निकल पड़े।

Delhi Chalo Protest

अब राकेश टिकैत ने भी किसानों के मार्च का समर्थन किया है. उन्होंने कहा, अगर सरकार दिल्ली की ओर मार्च कर रहे इन किसानों के लिए कोई समस्या पैदा करती है, तो हम उनसे दूर नहीं हैं, हम उनके समर्थन में, उनके साथ खड़े हैं।”

अब सवाल ये है कि आखिर किसान दोबारा प्रदर्शन क्यों कर रहे हैं, उनकी मांगें क्या हैं? किसानों के दिल्ली चलो मार्च से जुड़ें, यहां जानें हर सवाल का जवाब।

दरअसल, नवंबर 2021 में सरकार ने 3 कृषि कानूनों को रद्द करने का ऐलान किया था, जिसके बाद किसानों ने अपना आंदोलन वापस ले लिया. उस दौरान सरकार ने उन्हें न्यूनतम समर्थन मूल्य की गारंटी देने का वादा किया था। इसके साथ ही कुछ अन्य मांगों को भी पूरा करने का वादा किया गया। लेकिन दो साल बाद अब किसान अपनी बाकी मांगों को लेकर दिल्ली वापस आना चाहते हैं। 13 फरवरी का ‘दिल्ली चलो’ का नारा उनकी रणनीति का हिस्सा है।

क्या हैं किसानों की मांगें?

  • सभी फसलों की खरीद पर एमएसपी गारंटी कानून बनाया जाए।
  • स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट में किसानों को उनकी फसल की लागत का डेढ़ गुना मूल्य देने की सिफारिश की गई है।
  • सभी फसलों का मूल्य डॉ. स्वामीनाथन आयोग के निर्देशानुसार सी2+50% फार्मूले के तहत दिया जाए।
  • गन्ने की फसल के लिए डॉ. स्वामीनाथन आयोग की सिफ़ारिश के अनुसार एसएपी दिया जाए।
  • हल्दी सहित सभी मसाला वस्तुओं की खरीद के लिए एक राष्ट्रीय आयोग का गठन किया जाना चाहिए।
  • किसानों और खेत मजदूरों का संपूर्ण कर्ज माफ किया जाए।
  • पिछले दिल्ली आंदोलन की लंबित मांगों को पूरा किया जाए।
  • लखीमपुर खीरी नरसंहार मामले में न्याय हो, दोषी अजय मिश्रा को कैबिनेट से बर्खास्त कर गिरफ्तार किया जाये. आशीष मिश्रा की जमानत रद्द की जाए और समझौते के मुताबिक घायलों को 10 लाख रुपये दिए जाएं।

आपको बता दें कि 2021 में, लखीमपुरी खीरी में कृषि कानूनों के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे चार किसानों को कथित तौर पर गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा टेनी की कार से कुचल दिया गया था। किसान सरकार से उस घटना में मारे गए लोगों के परिवारों को नौकरी और दोषियों को सजा देने की मांग कर रहे हैं।

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दिल्ली आंदोलन सहित देशभर में सभी आंदोलनों के दौरान किसानों पर दर्ज सभी प्रकार के मुकदमे रद्द किए जाएं। आंदोलन के दौरान शहीद हुए किसानों व मजदूरों के परिवारों को मुआवजा दिया जाए। दिल्ली आंदोलन के शहीद स्मारक के लिए मुआवजा, सरकारी नौकरी और दिल्ली में जमीन दी जाए।

दिल्ली आंदोलन के दौरान उपभोक्ताओं को विश्वास में लिए बिना बिजली संशोधन बिल लागू नहीं करने पर सहमति बनी थी, लेकिन इसे पिछले दरवाजे से अध्यादेश के जरिए लागू किया जा रहा है, इसे खारिज किया जाना चाहिए।

जैसा कि वादा किया गया था, कृषि क्षेत्र को प्रदूषण अधिनियम से बाहर रखा जाना चाहिए। भारत को डब्ल्यूटीओ समझौतों से बाहर आना चाहिए, विदेशों से कृषि वस्तुओं, दुग्ध उत्पादों, फलों, सब्जियों और मांस आदि पर आयात शुल्क कम नहीं बल्कि बढ़ाना चाहिए और भारतीय किसानों की फसलें प्राथमिकता के आधार पर खरीदी जानी चाहिए।

58 वर्ष से अधिक आयु के किसानों और खेतिहर मजदूरों के लिए 10,000 रुपये प्रति माह की पेंशन योजना लागू की जानी चाहिए। सरकार को चाहिए कि खेत को इकाई मानकर स्वयं प्रीमियम भुगतान कर फसल बीमा योजना लागू करे।

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भूमि अधिग्रहण अधिनियम 2013 को उसी स्वरूप में लागू किया जाये तथा केंद्र सरकार द्वारा राज्यों को भूमि अधिग्रहण के संबंध में दिये गये निर्देश एवं भूमि अधिग्रहण अधिनियम में किये गये संशोधन को रद्द किया जाये।

इस किसान आंदोलन में मनरेगा मजदूरों के लिए 200 दिन की दैनिक मजदूरी और 700 रुपये प्रति दैनिक मजदूरी की भी मांग है. इस योजना में कृषि कार्य को शामिल किया जाना चाहिए।

कितने किसान संगठन इस मार्च से जुड़े हैं?

इस ‘दिल्ली चलो मार्च’ का नेतृत्व विभिन्न किसान संगठन कर रहे हैं। संयुक्त किसान मोर्चा (गैर राजनीतिक) और किसान मजदूर मोर्चा ने ‘दिल्ली चलो 2.0’ का ऐलान किया। एसकेएम (गैर-राजनीतिक) नेता जगजीत सिंह दल्लेवाल और किसान मजदूर मोर्चा (केएमएम) के महासचिव सरवन सिंह पंढेर इस मार्च के मुख्य चेहरे हैं। इकोनॉमिक्स टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, उन्होंने इस मार्च में 17 संगठनों के समर्थन का दावा किया है।

क्या सरकार ने किसानों से बात की?

इस बार केंद्र सरकार ने किसानों के ‘दिल्ली चलो मार्च’ से पहले ही बातचीत का सिलसिला शुरू कर दिया है. किसान नेताओं और केंद्रीय मंत्रियों के बीच पहली बैठक 8 फरवरी को हुई थी। दूसरी बैठक 12 फरवरी को हुई। खाद्य और उपभोक्ता मामलों के मंत्री पीयूष गोयल और कृषि मंत्री अर्जुन मुंडा सहित केंद्रीय मंत्रियों ने चंडीगढ़ में महात्मा गांधी राज्य लोक प्रशासन संस्थान में किसान नेताओं के साथ दूसरे दौर की वार्ता की।

साढ़े पांच घंटे से अधिक समय तक चली बैठक में एसकेएम (गैर-राजनीतिक) नेता जगजीत सिंह दल्लेवाल और किसान मजदूर संघर्ष समिति के महासचिव सरवन सिंह पंधेर सहित अन्य लोग शामिल हुए। हालांकि ये बातचीत बेनतीजा रही।
किसानों के विरोध प्रदर्शन को लेकर केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा ने कहा की,

मैं किसानों से आग्रह करूंगा कि समाधान बातचीत से ही निकलेगा। हम अभी भी आशान्वित हैं और उन्हें बैठक के लिए आमंत्रित करेंगे। हमने दो दौर की वार्ता की है और मैंने केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल के साथ उनमें भाग लिया, हम भी गए थे। इस संबंध में समाधान खोजने के लिए चंडीगढ़ और राज्य सरकारों को भी आमंत्रित किया गया था।

किन राज्यों और किन जगहों से किसान आंदोलन में शामिल हो रहे हैं?

विरोध करने वाले ज्यादातर किसान पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश से हैं। 13 फरवरी को पंजाब के फतेहगढ़ साहिब और शंभू बॉर्डर से किसान ट्रैक्टरों से दिल्ली के लिए रवाना हुए।

आंदोलन का समय?

दरअसल, इस बार जो आंदोलन हो रहा है वह 2024 के लोकसभा चुनाव से ठीक पहले हो रहा है। मतलब किसानों को पता है कि इसका असर चुनाव पर पड़ सकता है और सरकार अपने लिए कोई परेशानी नहीं चाहेगी। ऐसे में जब चार महीने बाद चुनाव होने हैं तो ये सही वक्त है कि, सरकार पर अपने वादे पूरे करने का दबाव बनाया जाए।

इसके अलावा किसानों को विपक्ष का भी समर्थन मिल रहा है। विपक्षी दल सरकार पर अन्नदाता को रोकने और उनकी मांगों को भूलने का आरोप लगा रहे हैं। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने मोदी सरकार पर किसानों को धोखा देने का आरोप लगाया है. उन्होंने सोशल मीडिया पर लिखा, 10 साल तक दिन-रात झूठ की खेती करने वाले मोदी ने किसानों को सिर्फ धोखा दिया है। दोगुनी आय का वादा कर मोदी ने किसानों को एमएसपी के लिए तरसा दिया है।

सरकार ने अपने पिछले वादे पूरे नहीं किये?

19 नवंबर, 2021 को प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने तीन विवादास्पद कृषि कानूनों को रद्द कर दिया। जिसके बाद दिल्ली की सीमाओं पर तेरह महीने से चल रहा किसान आंदोलन खत्म हो गया, लेकिन किसानों का आरोप है कि सरकार ने अपने पिछले वादे पूरे नहीं किए हैं। किसानों की एक मांग है कि सरकार पिछली बार उठाई गई मांग को पूरा करे।

एनडीटीवी की रिपोर्ट के मुताबिक, 12 जुलाई 2022 को ही केंद्र ने एक विशेषज्ञ समिति की स्थापना की, जिसमें पूर्व कृषि सचिव संजय अग्रवाल को इसका अध्यक्ष बनाया गया. समिति में 29 सदस्य शामिल थे, जिनमें से चार ने केंद्र सरकार के सचिवों का प्रतिनिधित्व किया और अन्य चार ने राज्यों का प्रतिनिधित्व किया।

पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश को समिति में कोई प्रतिनिधित्व नहीं मिला, इसकी आलोचना की गई. समिति में कृषि कानूनों का विरोध करने वाले किसी भी अर्थशास्त्री या विशेषज्ञ की अनुपस्थिति पर भी चिंता व्यक्त की गई। केंद्र ने पिछले साल 18 अक्टूबर को छह रबी फसलों के लिए एमएसपी में बढ़ोतरी की घोषणा की थी।