PM Modi India| इस समय भारत में आम चुनाव की शुरुआत हो गई है। दूसरी तरफ दुनिया में बहुत सारी जगह पर हाहाकार मचा हुआ है। आप यूक्रेन और रशिया की ओर देख ले, साउथ चाइना टेंशन है। इजराइल और ईरान के कारण पूरा मिडिल ईस्ट परेशान है। यूक्रेन के कारण पूरा यूरोप परेशान है और अमेरिका हर जगह दखल दे रहा है। क्योंकि उनका दखल और अडंगा हर जगह पर है। ऐसी स्थिति में भारत शांतिपूर्ण तरीके से अपने यहां पर आम चुनाव करवा रहा है। कोई गडबडी नहीं, कोई दंगा फसाद नहीं, कोई बवाल नहीं, यह स्थिति बहुत कुछ बताती है। जिस तरह से दुनिया में हालात बदल रहे हैं और जब कोविड का आउटब्रेक हुआ था।
सबसे पहले ये समझ लीजिये की कोविड के बाद दुनिया का वर्ल्ड ऑर्डर बदल गया है। कारण बहुत सरल और साधा था कि उसके कई कारण है। जिसके कारण पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था में जो बदलाव आएगा। उसका सबसे ज्यादा अगर लाभ कभी किसी देश को मिलने वाला है, तो वह है भारत। उसके क्या कारण है क्यों ऐसी स्थितियां बनेंगी। बदलते दुनिया में जो कुछ जो वास्तविक स्थितियां है। उसके बारे में आज हमें समझना होगा। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि भारत दुनिया का सबसे बड़ा बाजार है। आज भारत की आबादी दुनिया में सबसे ज्यादा है। जहां पर आबादी ज्यादा होती है, वहां पर खपत और पैसे का लेनदेन ज्यादा होता है।
उस बाजार को पाने के लिए हर देश हर कंपनी हर व्यक्ति लालायित रहता है। अब आप इस बात को समझिए कि पूरी दुनिया में अभी तक हर व्यक्ति यह देखता था कि हमें एक्सपोर्ट करना है। हमें यूरोप जाना है। अमेरिका जाना है। मिडिल ईस्ट जाना है, वगैरह वगैरह और यही कारण था कि करीब 20/25 साल पहले हमने एक एग्रीमेंट साइन किया था जिसको वर्ल्ड ट्रेड ऑर्गेनाइजेशन कहते थे। दुनिया में कौनसा देश किस तरह से व्यापार करेगा यह कानून वह संस्था बनाती थी। अगर आप उसकी हकीकत समझे तो आपको पता लगेगा कि वह कानून बनाए थे यूरोपियन कंट्रीज यह सोच के कि आने वाले कम से कम 25 से 50 साल दुनिया की अर्थव्यवस्था पर वह अपना अधिकार जमा लेंगे। शायद उनकी जो कैलकुलेशन थी उनकी जो समझ थी वह उतनी सटीक नहीं रही। क्योंकि दुनिया में परि स्थितियां बहुत तेजी से बदली। 2000 में जब पूरी दुनिया में डब्ल्यूटीओ लागू हुआ, अभी वह अपने आरंभिक दौर में था। तो 2008 का जिसको लेमन ब्रदर्स क्राइसिस बोलते हैं। पूरी दुनिया के स्टॉक मार्केट में, बैंकिंग सिस्टम में, फाइनेंशियल सिस्टम में एक भयंकर त्रासदी हुई। उससे बहुत सारी चीजें बदली और बड़े-बड़े बैंक दिवालिया हो गए। उस चक्कर में बहुत सारी कंपनियों के शेयर प्राइस गिरे। जिसके कारण स्टॉक मार्केट में और पूरी दुनिया में एक स्ट्रक्चरल बदलाव आया।
इसी तरह से कमोडिटी मार्केट जो बहुत तेजी से ऊपर जा रही थी। 2008 तक उसमें बहुत तेजी से गिरावट आई। जिसके कारण चाइना ने बहुत सारी दुनिया में उस गिरते हुए बाजार में माइनिंग सेक्टर में अपनी अच्छी पकड़ बनायी थी। जो कभी भी यूरोप और अमेरिकन नहीं चाहते थे। इसका कारण यह था कि वह नहीं चाहते थे कि उनके अलावा दुनिया की अर्थव्यवस्था पर कोई और दादागिरी करें। कोई और दिशानिर्देश करे और दुनिया की अर्थव्यवस्था में दखलंदाजी करें। यह कैलकुलेशन उनके हालात से बिगड़ी, उसके बाद स्थितियां थोड़ी बहुत सुधरी थी। अब 2008 से लेकर आप 2018-19 तक आए। करीब 10 साल आपने अपने आप को स्टेबलाइज किया था। उनकी ग्रोथ की तरफ बढ़ने लगे थे। फिर 2019 में कोविड 2019 के आखिर में और 2020 और 21 पूरी तरह से कोविड के हवाले हो गया। कोविड के कारण जिस तरह से दुनिया में हाहाकार मचा और पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था चौपट हो गई। सारा ट्रेड खत्म हो गया जो इकॉनमी की सहायक समीकरण थी वह सब डिस्टर्ब हो गई थी।
लेकिन कोविड ने एक अच्छा काम किया, जिसके कारण आज पूरे विकसित देश में खासकर यूरोप और अमेरिका में प्रॉब्लम्स है। आप को बता दें की काफी हद तक दुनिया के कई देश चाइना पर निर्भर थे। लेकिन कोविड के बाद हर देश ने अपने आप को आत्मनिर्भर बनाने की तरफ सोचना शुरू किया। क्योंकि जब पूरी दुनिया बंद थी व्यापार नहीं हो रहा था, तो आप चीजें कैसे लाएंगे। कैसे अपने राज्य में या अपने देश के अंदर लोगों की जरूरतों को पूरा करेंगे। हर देश ने अपनी छोटी बड़ी जो जरूरत की चीजें थी, लोगों ने अपने देश में बनाना शुरू किया। जो वह बना सकते थे, उन्होंने बनाई और आत्मनिर्भर होने का प्रयास करने में जुट गए। इसके कारण हुआ यह कि जो पहले कंपनियां बाजार में स्थापित थी। कोविड से पहले उनकी जगह नई कंपनियों ने ली थी और स्थिति ये उत्पन्न हुई कि वहां पर जो इंपोर्ट होता था, उसका बाजार घटा और जो आसपास के देश थे उनमें एक दूसरे के बीच में समन्वय बढ़ा।
इसका एक बेहतरीन उदाहरण हमारा कोविड वैक्सीन जिसने पूरी दुनिया के करीब 160 देशों के आसपास लोगों को वैक्सीन उपलब्ध करायी। उस वैक्सीन को लेकर दुनिया यह उम्मीद कर रही थी कि शायद दुनिया की जो तीन चार बड़ी फार्मास्यूटिकल कंपनीज है, वह उस वैक्सीन को बनाएंगी और पूरी दुनिया में लूट मचायेंगी। जैसा अक्सर हुआ है और होते आया है। जिस तरह से फाइजर ने टर्म्स एंड कंडीशन रखी और बाकी देशों को दबाव डाला कि वह क्यों फाइजर की दवाइयां खरीदे। लेकिन जिस तरह से भारत के वैज्ञानिकों ने और भारत के वैक्सीन इंडस्ट्री ने आगे बढ़कर भारत सरकार की जरूरतों का साथ दिया।
भारत सरकार और हम हिंदुस्तानी लोगों ने वैक्सीन मैत्री के नाम से ‘वैक्सीन फ्रेंडशिप’ के नाम से पूरी दुनिया में पहुंचाई। वह दुनिया में सबसे सस्ती और सबसे अच्छी वैक्सीन के रूप में आज जानी जाती है। कोविड क्राइसिस के कारण जो यह वैक्सीन डिप्लोमेसी हुई। भारत का आंतरराष्ट्रीय कद सबसे ज्यादा बढ़ गया। यह चीजें वेस्टर्न वर्ल्ड को, चाइना को, जो भारत के प्रतिद्वंदी है। यह चीजें उनको समझ में नहीं आई उनके लिए उनकी कैलकुलेशन के हिसाब से यह सब आउट ऑफ कंट्रोल था। अभी वह इस चीज को समझ ही पाते यूक्रेन की लड़ाई शुरू हो गई। आज करीब दो साल हो गए इस बात को, यूक्रेन और रशिया के बीच में लड़ाई हो रही है।
इस कारण से पूरी की पूरी जो यूरोपियन अर्थव्यवस्था है। जो अपनी एनर्जी रिक्वायरमेंट के लिए रशिया पर निर्भर थी। उन्होंने उसको छोड़कर महंगा ऑप्शन अपनाना शुरू किया। इसके कारण यूरोप की स्थिति और खराब हो गई। इसके कारण वहां पर इन्वेस्टमेंट्स नहीं आए, जो फैक्ट्रीज का कैपेसिट लाइजेशन था, वह नहीं बढ़ा। बहुत सारे बड़े उद्योग शिफ्ट होकर चाइना चले गए और वहां पर जो इन्वेस्टमेंट होना था, उसमें कमी आई एंप्लॉयमेंट में कई बदलाव हुये।
उसके साथ-साथ जो वहा डेमोग्राफी है, जो एजिंग पॉपुलेशन है उसने ओवरऑल यूरोप को एक स्टैग्नेंट इकॉनमी बना दिया। जब यूरोप स्टैग्नेंट हो गया तो चाइना से बहुत माल यूरोप जाता था। तो चाइना में उसका असर पड़ा। अमेरिका से बहुत माल यूरोप जाता था। उसका असर अमेरिका में पड़ा, तो अमेरिका और चाइना में स्थिति नाजुक हुई। क्योंकि वहां पर जो इकॉनमी रफ्तार थी वह स्लो डाउन हुई। दूसरी तरफ भारत में नरेंद्र मोदी सरकार ने ‘मेक इन इंडिया’ प्रोग्राम की शुरुआत करी और बहुत सारी जगह पर यह कोशिश की गई कि हम आयात पर पूर्ण रूप से प्रतिबंध लगाएंगे।
हमें इस बात की समझ आ गई कि अगर कोविड जैसी स्थिति दोबारा होती है तो हम अंतरराष्ट्रीय बाजार पर निर्भर नहीं हो सकते। क्योंकि बाकी जो छोटे देश है। वह तो जरूरत के हिसाब से कंटेनर खरीद के गुजारा कर लेंगे। लेकिन 140 करोड़ का देश कुछ कंटेनर से गुजारा नहीं कर पाएगा और यही कारण था कि भारत सरकार ने बहुत सारी स्कीमें लांच करी। जिससे हम आत्मनिर्भरता की तरफ आगे बढ़े। पहले ही यूरोप के कारण चाइना और अमेरिका की इकॉनमी डाउन जा रही थी। अब भारत ने जब आत्मनिर्भरता को अपनाया, अपने यहां पर लोकल टू ग्लोबल निति को अपनाया। उस पॉलिसी को लोगो ने काफी पसंद किया, हर कोई उद्योग आत्मनिर्भर होने की होड़ में शामिल होने की कोशिश करने लगा।
तब हालात ऐसे थे की दूसरे देशों में कोई नहीं चाहता कि भारत आगे बढ़े। हर देश हर व्यापारिक संस्था भारत को बाजार के रूप में देखते हैं। मतलब कि भारत सिर्फ खरीदे एक्सपोर्ट भी ना करे। आत्मनिर्भर भारत एक बहुत बड़ी चुनौती के रूप में उन सबके सामने खडा हो गया है। इसीलिए वो नहीं चाहते कि कोई भी ऐसा व्यक्ति भारत में आए जो भारत को आत्मनिर्भरता की तरफ लेकर जाए। क्योंकि अगर भारत आत्मनिर्भर होगा तो वह माल किसको बेचेंगे। उनके लिए तो भारत एक बाजार था। इसलिए उनको उनके अनुकूल एक ऐसा पॉलिसी एनवायरमेंट चाहिए था, एक ऐसा नेता चाहिए था जो रिश्वत लेकर करप्शन करके उनके हिसाब से पॉलिसिया बनाए।
लेकिन शायद मोदी सरकार में यह बात उनके हिसाब से नहीं हो रही थी। इसीलिए उनके लिए मोदी और मोदी सरकार एक समस्या बन गई है। अभी तक वह अपने उस सिस्टम को संभाल ही पाते कि कोविड आया, कोविड से निकले थे की यूक्रेन का संकट आया। इस कठीन स्थिति को जब तक वह समझ पाते एक नया तमाशा गाजा में शुरू हो गया और गाजा का तमाशा इतना हुआ कि अगर आप पिछले आप करीब छ महीने की हडबडी देख ले। अक्टूबर से अब तक तो आज स्थिति हुई वह क्या है? आज स्थिति यह है कि गाजा के अलावा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर और कोई न्यूज है भी नहीं। इवन साउथ चाइना का जो टेंशन बढ़ रहा था वह भी काफी हद तक बैकग्राउंड में चला गया है।
अब जिस तरह से ईरान और इजराइल के बीच में झगड़ा है और दूसरी तरफ नेटो यूक्रेन के साथ है। अमेरिका इजराइल के साथ खड़ा है। मिडिल ईस्ट में क्राइसिस है। यह कुल मिला के स्थिति ऐसी है कि पूरी दुनिया इस समय बड़ी विचित्र स्थिति में खडी है। हर देश चाहता है कि भारत उसके पीछे खड़ा हो, भारत उसका समर्थन करें। लेकिन भारत की इंडिपेंडेंट फॉरेन पॉलिसी ने सबको हैरत में डाल रखा है। क्योंकि उनको यह पता है कि भारत सबसे मुद्दे की बात करेगा और ब्लाइंडली किसी को फॉलो नहीं करेगा। तो पहले था इकोनॉमिक रीजन जो भारत का आत्मनिर्भरता का एजेंडा था। वह दुनिया को पसंद नहीं आया। खासकर विकसित देशों के सत्ताधीशों को, जिनके यहां पर प्रोडक्शन कम हो रहा है।
जिनकी फैक्ट्रियों का माल भारत में बिकना चाहिए था अब वो उतना नहीं बिक पा रहा है व उतना एक्सपोर्ट भारत नहीं कर पा रहे हैं। दूसरी तरफ जी-20 के बाद और जिस तरह से भारत ने कोविड के बाद अपने यहां पर इंफ्रास्ट्रक्चर और साइंटिफिक डेवलपमेंट को दुनिया के सामने रखा और डिप्लोमेटिक फ्रंट पर कई बड़े काम हुए है। कहीं पर क्राइसिस हुआ और भारत ने दौड़ के वहां पर जो मदद करी इससे भारत का अंतरराष्ट्रीय कद बहुत बढ़ गया। एक आर्थिक कारण और दूसरा राजनीतिक कारण या आप कह सकते हैं डिप्लोमेसी के कारण राजनयिक कारणों से भारत का कद काफी बढ़ा है।
इसकी समस्या यह हुई कि पूरी दुनिया में जो बड़े देश थे, उनको लगा कि अब भारत को ही कंट्रोल करना जरूरी है। अगर मोदी को खुली छूट दे दी तो अगले पांच साल में यह हमारे लिए और समस्याएं खड़ी करेगा। उसका परिणाम यह हुआ कि आजकल आपको अंतरराष्ट्रीय मीडिया में भारत के खिलाफ बहुत सारे आर्टिकल या इंटरव्यूज देखने को मिलते है। वह कहीं ना कहीं उनको यह पता है कि इंटरनेट के माध्यम से, सोशल मीडिया के माध्यम से, इंटरनेट के माध्यम से और बाकी प्लेटफॉर्म के माध्यम से मोदी के खिलाफ अगर प्रचार करना जरुरी है। जो लोग मोदी के कट्टर समर्थक नहीं है, जो फेंस सेटर्स है जो मिडिल क्लास है, उनके आगे मोदी सरकार की नीतियों को टारगेट करना आसान है। लेकिन जो लोग मोदी के खिलाफ प्रचार कर रहे हैं, उनकी मजबूरियां कुछ और है। उनकी मजबूरियां यह हो गई है कि उनको मोदी के अल्टरनेट में अपोजिशन में कोई लीडर आज तक नहीं मिला।
जब उनको अपोजिशन में कोई लीडर नहीं मिला तो फिर वह आईडियोलॉजी और हिंदुत्व को क्रिटिसाइज करने लगे है। इसका परिणाम यह हुआ कि बीजेपी को अपना कैंपेन और एग्रेसिवली हिंदुत्व के नाम पर राष्ट्रवाद के नाम पर आगे बढ़ाने का पूरा मौका मिला और यह जो वोट कंसोलिडेशन है। शायद इसका असर हमें चुनाव रिजल्ट पर देखने को मिलेगा। आज स्थिति यह है कि भारत जिस तरह से ग्रो कर रहा है और अब मोदी ने तो बोल दिया है कि 2047 में भारत विकसित देश बनेगा। अब वक्त कितना रहा है अगर आप देखें तो मुश्किल से 22-25 साल बचे है। मोदी का उद्देश पाना है तो आपके पास बाकी 20 साल के अंदर आपको देश को विकसित करना है। क्या हो पाएगा और जिस तरह से मोदी सरकार ने इंफ्रास्ट्रक्चर और टेक्नोलॉजिकल डेवलपमेंट, आईटी सिस्टम, ई गवर्नेंस और नई टेक्नोलॉजीज में सबसे आगे है।
सबसे बड़ी चीज जो हमारा सबसे बड़ा आयात का सिर दर्दी है वह है पेट्रोलियम। उसका अल्टरनेट चाहे वह ईवी के माध्यम से, या हाइड्रोजन के माध्यम से प्रमोट करने की, या इथेनॉल के माध्यम से प्रमोट करने की, कोशिश करी है। इससे भी दुनिया को परेशानी है कि अगर भारत उर्जा क्षेत्र में आत्मनिर्भर हो जाता है। तो भारत की रफ्तार कोई रोक नहीं पाएगा। यही कारण है कि पूरी दुनिया ऐसा कोई नेता भारत का प्रधानमंत्री नहीं चाहती जो भारत के लिए राष्ट्रीयता की बात करें। आत्मनिर्भरता की बात करें और हमारे देश में ऐसे उनको बहुत सारे एजेंट मिल जाते हैं। जो पैसे लेकर भारत के खिलाफ भारत की आत्मनिर्भरता के खिलाफ जो एजेंडा है उसको लागु करने के लिए कुछ भी करेंगे।
अब तो देश की जनता को सोचना है कि हमें किसका साथ देना है। आत्मनिर्भर भारत का या विदेशी ताकतों के हाथ में खलनेवाले नेताओं का। यह चुनाव जनता का है। यह चुनाव आपका भी है। क्योंकि आप भी इस देश के वोटर है। अभी शायद आपको भी वोट देना बाकी है। इसीलिए यह चर्चा महत्त्वपूर्ण है कि अगर भारत को विकसित देश बनाना है, तो हमें एक ऐसा नेतृत्व चाहिए जो आत्मनिर्भर भारत पर पूरी तरह से वचनबद्ध हो। अगर आज भी हम क्रिटिकल और स्ट्रेटेजिक टेक्नोलॉजी अंतरराष्ट्रीय बाजार से लेते हैं तो यह भारत की आत्मनिर्भरता में सबसे बड़ा रोड़ा साबित होता है।
इसके लिए जो प्लान और कमिटमेंट चाहिए वह एक विजनरी लीडर ही कर पाएगा। अब देश की जनता किसको सुनेगी और चुनेगी यह तो वक्त बताएगा। लेकिन फिलहाल जो सरकार है, भारत में मौजूद सरकार जो उस दिशा में आगे बढ़ रही है। उसको अंतरराष्ट्रीय बिरादरी है जो भारत को केवल बाजार की तरह देखती थी। जो कभी नहीं चाहती थी कि, भारत का अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्टेटस बढ़े। आज अंतरराष्ट्रीय बिरादरी भारत की प्रगति से खुश नहीं हैं, जी 20 में आएंगे, गले भी मिलेंगे, फोटो भी खिंचवायेंगे, लेकिन अंदर ही अंदर भीतर से घात भी करेंगे। आप को तय करना है आप कौनसा देश चाहते हैं, कैसा देश चाहते है।
अगर आप चाहते हैं की भारत तरक्की करे और अगर यह चुनौती है, तो इस चुनौती का सामना करने के लिए भारत सरकार को क्या करना चाहिए। भारत की जनता को क्या करना चाहिए। आप एक जिम्मेदार वोटर है, नागरिक है तो आंतरराष्ट्रिय षड्यंत्र को समझे, ओ सारे क्यों एकाएक बड़े बड़े लेख लिख रहे है, बदनामी कर रहे है। हर राज्य में अशांति पैदा करना चाहते है। चुनावी माहौल को क्यों बिगाड़ना चाहते है। मोदी को और उनकी नीतियों को क्यों टारगेट कर रहे है। ओ कौनसी ताकतें है जो मोदी को पसंद नहीं करती है। क्यों मोदी को हटाना चाहती है। जरुर विचार करे, सही फैसला करे।