राजनीती | देश में कांग्रेस की हालात देख कर अगर आपसे कोई पूछे कि कांग्रेस को कैसे बचाया जा सकता है। या कांग्रेस का रिवाइवल कैसे हो सकता है, कांग्रेस को पुनर्जीवित कैसे किया जा सकता है। कांग्रेस को फिर से अपने पैरों पर किस तरह से खड़ा किया जा सकता है। तो मुझे पूरा विश्वास है कि आप लोगों में से ज्यादातर लोग बहुत सारे सुझाव दे सकते हैं। सैकड़ों हजारों की संख्या में सुझाव आ सकते हैं कि कांग्रेस को यह करना चाहिए, ऐसा करना चाहिए, वैसा करना चाहिए।
लेकिन आप को बता देते है की, कांग्रेस को तुरंत एक काम करना चाहिए। अगर कांग्रेस पार्टी को बचाना है; तो कांग्रेस पार्टी को राहुल गांधी से मुक्ति पाना चाहिए। आम जिंदगी में गलती किसी से भी हो सकती है, नासमझी किसी से भी हो सकती है। किसी विषय को समझने में कमी किसी से भी रह सकती है।
लेकिन अगर कोई जानबूझकर इस तरह की गलती करें, तो उसे कोई नहीं बचा सकता। आज के दौर में पिछले कुछ दिनों से राहुल गांधी लगातार गलतियाँ कर रहे हैं। जिस तरह से वह राम मंदिर का लगातार अपमान कर रहे हैं। राम मंदिर में राम लला की जो प्रतिमा है। उसकी प्राण प्रतिष्ठा के कार्यक्रम का जिस तरह से अपमान कर रहे हैं।
ऐसी गलती कोई समझदार आदमी सोच भी नहीं सकता। गलती से उसके मुंह से अपशब्द निकल जाए, तो हात जोड़कर माफी मांगेगा और कहेगा कि आगे से ऐसा मैं नहीं बोलूंगा या नहीं करूंगा। लेकिन राहुल गांधी अपनी भारत जोड़ो न्याय यात्रा के दौरान बार-बार ऐसा कर रहे हैं। वह बार-बार सवाल उठा रहे हैं, और कह रहे हैं कि वहां पर तो उस कार्यक्रम में अंबानी और अडानी थे। हमे मंदिर में ऐश्वर्या दिखी, प्रियंका दिखी। हमको अमिताभ बच्चन दिखे और फिर उससे भी घटिया स्तर पर उतरे और उन्होंने कहा कि प्रियंका चोपड़ा वहां नाच रही थी।
अब आप सोचिए एक प्रियंका चोपड़ा एक सम्मानित कलाकार हैं। उनके बारे में इस तरह की टिप्पणी करना और वह भी राम मंदिर के कार्यक्रम के बारे में दोनों का अपमान है। भगवान का तो अपमान है। साथ में भगवान का अपमान करना सनातन का अपमान करना है। हिंदू और सनातन धर्म का अपमान करना कांग्रेस पार्टी की फितरत बनती जा रही है। 1998 से जब से सोनिया गांधी कांग्रेस की अध्यक्ष बनी थी, तब से ये बढ़ रहा है।
आज जो कांग्रेस है व पूरी तरह से सनातन विरोधी हो गई है। पहले बीच-बीच में जो है वह रास्ता बदलती भी थी, कभी नरम कभी गरम होती थी। लेकिन 1998 के बाद से लगातार कांग्रेस का जो एजेंडा रहा है, वह एंटी हिंदुइज्म का रहा है। कांग्रेस की भूमिका लगातार बदलती रही है, वह चाहे आतंकवाद के मुद्दे पर रहे। या राम मंदिर के बारे में हो लगातार हिंदुत्व और हिंदू धर्म का विरोध करना रहा है। यह कांग्रेस का मुख्य एजेंडा बन गया और राहुल गांधी उसको एक और पायदान ऊपर ले गए हैं। उन्होंने रिडिक्यूल करना शुरू कर दिया, मखौल उड़ाना शुरू कर दिया है। हिंदू धर्म का उन्हीं का बयान है। हम अपनी ओर से कुछ नहीं कह रहे है, राहुल की एक विवादित बयान दिया था, मंदिर में लोग जो है लड़कियां छेड़ने जाते हैं।
अब यह बात कौन सा समझदार व्यक्ति बोल सकता है। तो राहुल गांधी की समस्या क्या है? उनको सनातन धर्म की जानकारी नहीं है। एक यह तो सामान्य बात हो गई सनातन धर्म कितना गहरे बैठा हुआ है, लोगों के मन में, दिलों में, इसका उनको कोई एहसास नहीं है। इसका जवाब उनको 2024 में मिलेगा। ज्यादा समय नहीं है, दो ढाई महीने का मुश्किल से समय बचा है। इस देश की जनता कांग्रेस का करारा जवाब देगी। जिस तरह से वह सनातन धर्म का मजाक उड़ा रहे हैं। उसका जवाब उनको बड़ा करारा जवाब मिलेगा। लेकिन पूरी कांग्रेस पार्टी को मिलेगा।
केवल राहुल गांधी को सबक नहीं मिलेगा। अगर वह वायनाड से चुनाव ना लड़े, तो जहां से भी लड़ेगें। वह लोकसभा चुनाव नहीं जीत सकते। वह लोकसभा चुनाव सिर्फ उसी निर्वाचन क्षेत्र से जीत सकते हैं जहां 50 फीदी से ज्यादा मुस्लिम मतदाता हो। यानी जहां सनातन धर्म के विरोधी हो और कट्टर विरोधी हो, वायनाड जैसी सीट पर दूसरी सीटों की बात नहीं कर रहे है।
ऐसी भी देशभर में कुछ सीटें हो सकती हैं, जहां मुस्लिम आबादी 50 फीदी से ज्यादा हो फिर भी राहुल गांधी हार जाए। लेकिन वायनाड जैसी सीट पर जीत जाएंगे। क्योंकि वह इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग का गढ़ है। उसका जो है मुख्य जनाधार वाला इलाका है। तो इसलिए वहां से वह जीत सकते हैं। उसके अलावा कहीं से जीत नहीं सकते।
राहुल गांधी यह साहस नहीं कर सकते कि वो रायबरेली या अमेठी से चुनाव लड़े। या उत्तर प्रदेश के किसी भी 80 में से किसी भी लोकसभा सीट से चुनाव लड़ने की हिम्मत नहीं कर सकते। वह जिस तरह की टिप्पणी कर रहे हैं, उनको दिखाई नहीं देता, उनको पता नहीं कहां दिखा कि प्रियंका चोपड़ा वहां नाच रही थी। ऐश्वर्या राय या अमिताभ बच्चन य यह लोग कोई आतंकवादी नहीं है। आतंकवादियों को इनकी पार्टी के लोग सम्मान से बुलाते हैं और देश के कलाकारों का अपमान करते हैं।
देश के कलाकारों तक बात रही होती तो फिर भी गनीमत थी, कि भाई उनसे कुछ व्यक्तिगत उनका विरोध है। अमिताभ बच्चन के परिवार से उनकी निजी खुन्नस है। यह बात समझ में आ सकती है। लेकिन भगवान राम से उनसे क्या नाराजगी हो सकती है। उनका अपमान करने की क्या जरूरत है और राहुल गांधी बार-बार कर रहे हैं।
उन्हें दिखाई नहीं दिया अयोध्या में कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मंदिर निर्माण में लगे मजदूरों का किस तरह से सम्मान किया। उनको दिखाई नहीं दिया कि जो लाखों लोग आ रहे हैं। वह फिल्म कलाकार या उद्योगपति नहीं है। वहां 40 लाख से ज्यादा लोग आए हैं, वह सब अंबानी और अडानी नहीं थे। लेकिन राहुल गांधी को बोलना यही है, यह उस तरह का है कुछ कुछ ऐसे छात्र होते हैं। जो अपने विषय की कोई तैयारी नहीं करते, इम्तहान के लिए वह पांच प्रश्नों के जवाब रटक जाते हैं। प्रश्न कोई भी आए, प्रश्न पत्र कुछ भी हो, वह उन्हीं पांच प्रश्नों के जवाब लिखकर आ जाते हैं।
राहुल गांधी उसी तरह के छात्र हैं। उनको इस बात से कोई मतलब नहीं कि प्रश्न पत्र में क्या है। उन इस बात से कोई मतलब नहीं कि किस विषय का प्रश्न पत्र है। उनको जो आता है, जो सिखाया गया है, जो उनको समझाया गया है, वही उतना ही बोल देते हैं। हमें ज्यादा चिंता राहुल गांधी की नहीं है, जो वह बोल रहे हैं। उससे ज्यादा चिंता है, उनके सलाहकारों की जो उनको सलाह दे रहे हैं। उससे भी ज्यादा चिंता जो चुप है।
दरअसल उन्हीं को इसकी कीमत चुकानी पड़ेगी। राहुल गांधी को कोई कीमत नहीं चुकानी पड़ेगी। उनको पैसे की कमी नहीं है। उनको साधन संसाधन की कमी नहीं है। अभी भी वह पाच दिन जो है, अपनी भारत जोड़ो न्याय यात्रा रोककर विदेश यात्रा पर जा रहे हैं। तो यह इस तरह का नेता आपने इससे पहले इस देश में देखा नहीं होगा। जो एक आंदोलन को बीच में रोककर विदेश यात्रा पर घूमने चला जाए। तो इससे आप अंदाजा लगा सकते हैं कि, आप बाकी तो छोड़ दीजिए। चुनाव की बात ही छोड़ दीजिए।
वह इस भारत जोड़ो न्याय यात्रा को लेकर कितने गंभीर हैं। इसका अंदाजा लगा लीजिए उनके लिए राजनीति उनके लिए इस तरह की यात्रा एक पिकनिक है। जो उनको एक थ्रिल देती है। इस तरह का अनुभव किया नहीं है। उनको मालूम नहीं है कि आंदोलन होता क्या है? तो उनके लिए आंदोलन एक पॉलिटिकल पिकनिक है। जिसमें उनको थ्रिल मिलता है । जिसमें उनको मजा आता है। इसलिए वह कर रहे हैं, ऐसे समय जब दो महीने मुश्किल से रह गए हैं।
लोकसभा चुनाव को लोकसभा टिकटों का फैसला होना है। जो गठबंधन के साथी दल बचे हुए हैं उनके साथ सीटों के तालमेल की बात करनी है। इलेक्शन कैंपेन प्लान करना । कहां से शुरू होगा क्या मुद्दे होंगे, उन विषयों पर जो है ब्रेन स्टॉर्मिंग का समय है। ऐसे समय में व एक तो यात्रा पर निकले जो यात्रा चली भले हो मणिपुर से लेकिन यह यात्रा कहीं पहुंचने वाली नहीं है।
इससे वह अंदाजा लगा लीजिए कि व कितने गंभीर है। दूसरा एक बड़ा मुद्दा जो कांग्रेस के लोगों को सोचना चाहिए। राहुल गांधी की जो सबसे बड़ी खामी है, उस पर विचार करना चाहिए। उनको किसी विषय की कोई समझ नहीं है। उस विषय की गहराई में जाने की उनकी प्रवृत्ति नहीं है। कोई भी विषय हो, जो राष्ट्रीय महत्व का हो, अंतरराष्ट्रीय महत्व का हो, स्थानीय महत्व का हो, उनको समझ में नहीं आता। दूसरा उनको इस बात का कोई अंदाजा नहीं है।
किस बात पर लोग समर्थन करने को तैयार होंगे और किस बात पर लोग विरोध करने को तैयार होंगे। उनको यह समझ में नहीं आता कि उनकी विश्वसनीयता पिछले 20 साल में लगातार क्यों घटती गई है। उनकी साथ क्यों घट रही है कि उनकी पार्टी का जनाधार क्यों घट रहा है। इसके बारे में उनकी कोई सोच हो, उनका कोई विचार हो, उनकी कोई राय हो, ऐसा सुनने में देखने में आया नहीं और अंतिम बात जो सबसे महत्त्वपूर्ण है।
मेरी नजर में कि देखिए पब्लिक लाइफ में खास तौर से चुनावी राजनीति में अगर आप हैं। तो कम्युनिकेशन स्किल सबसे बड़ा हथियार या सबसे बड़ा गुण होना चाहिए। आपका कि आप अपनी बात को लोगों तक पहुंचा सक सके तो पब्लिक स्पीकिंग एक आर्ट है। जिस आर्ट का एबीसी भी राहुल गांधी को पता नहीं है। उनको मालूम ही नहीं है कि कैसे जनता से कम्युनिकेट होना चाहिए। कैसे अपनी बात लोगों तक पहुंचाई जाती है। कैसे अपनी बात का प्रभाव पैदा किया जाता है। कैसे अपनी बात को इस तरह से रखें कि विश्वसनीय लगे।
उनके डीएनए में है कोई बदल नहीं सकता है और सबसे बड़ी बात यह है कि राहुल गांधी बदलना भी नहीं चाहते बदलने की कोई इच्छा का इरादा इसका यह भी नजर नहीं आता है। तो वह बदलना नहीं चाहते और कांग्रेस की हालत सुधरने वाली नहीं है। तो अगर कांग्रेस को बचाना है तो उसको सबसे पहले राहुल गांधी से बचाना होगा।
राहुल गांधी से मुक्ति दिलाए बिना कांग्रेस की मुक्ति का मार्ग नहीं खुलने वाला है। यह बात कांग्रेस के लोग जितनी जल्दी समझ ले उतना जल्दी कांग्रेस का भला होगा। देश को एक मजबूत विपक्षी दल चाहिए। एक राष्ट्रीय दल चाहिए। जो भारतीय जनता पार्टी के सामने कम से कम लड़ाई में खड़ा तो हो सके। जीतने की तो बात बाद में आती है। कम से कम लड़ने का उसमें जिगरा हो। लड़ने की इच्छा शक्ति हो। एक पॉलिटिकल विल हो कि हमको लड़ना है और जीतना है। भले ही ना जीते। लेकिन आप लड़ने से पहले आप हारने से पहले हार मान लेते हैं। तो आप कभी नहीं जीत सकते। जीवन में यही हो रहा है।
कांग्रेस के साथ राहुल गांधी के नेतृत्व में व चाहे भले किसी पद पर ना हो कांग्रेस पार्टी कहीं नहीं पहुंचने वाली है। जैसे उनकी यह यात्रा कहीं नहीं पहुंचने वाली है। उसी तरह से कांग्रेस पार्टी भी कहीं नहीं पहुंचने वाली है और यह बात कांग्रेस पार्टी के ज्यादातर लोगों को समझ में आ रही है। लेकिन सवाल यह है कि बिल्ली के गले में घंटी बांधे? बिल्ली के गले में अगर आप घंटी नहीं बांधी गई, तो बिल्ली जो उत्पात कर रही है। उसमें सिर्फ और सिर्फ सर्वनाश होगा। जो कांग्रेस पार्टी का होता हुआ दिखाई दे रहा है।