LokSabha Elections 2024 | राहुल गांधी रायबरेली से क्यों हार सकते हैं चुनाव?

Why can Rahul Gandhi lose elections from RaeBareli?

LokSabha Elections 2024 | रायबरेली की बात करने जा रहा हूं उम्मीद है आशा है इस विषय से बोर नहीं हुए होंगे चुनाव का समय है तो चुनाव में जो महत्त्वपूर्ण चुनाव क्षेत्र है उनकी बात जरूर होगी क्योंकि राहुल गांधी पहली बार रायबरेली से लड़ने जा रहे हैं तो इसलिए उसकी चर्चा करना जरूरी है। इस चुनाव की चर्चा तथ्यों के आधार पर कि क्यों राहुल गांधी रायबरेली से चुनाव हार सकते हैं देखिए कुछ तथ्यों पर गौर कीजिए, पहला 1952 में इस कांस्टेंसी से पहली बार चुनाव लड़े थे फिरोज गांधी, राहुल गांधी के दादाजी और इंदिरा गांधी के पति फिर वह 57 में चुनाव लड़े और फिर वह 62 में चुनाव लड़े, लगातार तीन बार चुनाव लड़े उसके बाद 1967 में इंदिरा गांधी यहां से लड़ी थी इंदिरा गांधी के पास मौका था 1967 में अपना चुनाव क्षेत्र बदलने का वह अपने पिता की कर्मभूमि फूलपुर भी जा सकती थी फूलपुर का भी आज जिक्र जरूरी है जो बार-बार कहा जाता है कि गांधी परिवार से लगाव है अमेठी रायबरेली के लोगों को तो सवाल यह है कि जवाहरलाल नेहरू गांधी परिवार के नहीं है क्या फूलपुर के लोगों

का लगाव क्यों नहीं हुआ गांधी परिवार से जहां से देश के पहले प्रधानमंत्री जो तीन बार लगातार प्रधानमंत्री बने तीनों बार फूलपुर से जीते तो फिर फूलपुर क्यों नहीं बना नेहरू के निधन के बाद जो बाय इलेक्शन हुआ उसमें विजयलक्ष्मी पंडित उनकी जो बहन थी वह उपचुनाव लड़ी थी और जीती थीउसके बाद गांधी परिवार ने फूलपुर को छोड़ दिया फूलपुर छोड़ दिया क्योंकि इंदिरा गांधी रायबरेली आ गई तो इसलिए रायबरेली उनकी कर्मभूमि बन गई और धीरे-धीरे उसकी पहचान ही इस तरह से माहौल बनाया गया रायबरेली और बाद में अमेठी की पहचान इस परिवार के साथ हो गई अब आप देखिए पूरे उत्तर प्रदेश से कांग्रेस पार्टी का सफाया हो चुका है लेकिन कांग्रेस पार्टी पिछले 25 साल से लगातार रायबरेली का चुनाव जीत रही है अमेठी में एक बार हार भी चुकी है, 2019 में ही स्मृति रानी ने राहुल गांधी को हराया और उनके मन में अमेठी से हार का डर पैदा कर दिया

आप को बता दे की, राहुल गांधी वायनाड से जब दूसरी सीट पर लड़ने आए तो अमेठी नहीं गए, वह रायबरेली गए तो 2022 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी को जब प्रियंका वाड्रा की बंद मुट्ठी खुली यह कहा गया कि बहुत जबरदस्त कैंपेनर है बड़ा अच्छा कनेक्ट स्थापित करती हैं लोग लोगों से उनके भाषण का बड़ा प्रभाव होता है उनमें वह क्षमता है जो राहुल गांधी में नहीं हैउनमें इंदिरा गांधी की छवि नजर आती है यह सब कहा गया और कांग्रेस पार्टी को वोट मिले पूरे उत्तर प्रदेश से 2.36 पर जो आज तक का लोएस्ट है आलम ये हुआ की जो पार्टियां अभी खासतौर से जो चार बड़ी पार्टियां हैं, कांग्रेस सहित उत्तर प्रदेश में उनमें से किसी पार्टी का वोट शेयर सब से खराब दिनों में भी इतना नीचे गया हो 

सवाल यह है कि उत्तर प्रदेश में अगर कांग्रेस का वोट शेयर सिर्फ 2.36 पर रह गया है तो रायबरेली की सीट कांग्रेस पार्टी क्यों जीतती रही अब यह जो है गांधी परिवार का तिलिस्म के तौर पर पेश किया गया कि परिवार से जुड़ाव है, वहां कांग्रेस का वोट नहीं है, इसलिए जीतते हैं क्योंकि वहां परिवार का वोट है रायबरेली में परिवार का वोट है इसलिए गांधी परिवार से जुड़ाव है अब आपको जरा जुड़ाव की भी कहानी सुनाते है, 1980 में इंदिरा गांधी वहां से चुनाव लड़ी। और 1984 में उनकी हत्या हो गई उसके बाद से गांधी परिवार का कोई सदस्य अगले 24 साल तक वहां से नहीं लड़ा जी हाँ, ये सच है की 1980 के बाद 24 साल तक गांधी परिवार का कोई सदस्य चुनाव लड़ने रायबरेली नहीं गया 2004 में सोनिया गांधी इसलिए गई कि राहुल गांधी को भी चुनाव लड़ना था और उनके लिए अमेठी सीट उनको ज्यादा सही लग रही थी ज्यादा सेफ लग लग रही थी क्योंकि वहां से राजीव गांधी सांसद रह चुके थे, तो पिता की विरासत उनको मिल रही है यह संदेश देना था पिता की राजनीतिक विरासत राहुल गांधी को मिलेगी यह भी पूरे देश को और खास तौर से कांग्रेसियों को संदेश देना थाइसलिए राहुल गांधी को अमेठी से उतारना था जहां से 1999 में सोनिया गांधी चुनाव लड़ी और जीती 2004 में भी वह लड़ सकती थी और राहुल गांधी को रायबरेली भेज सकती थी

Why can Rahul Gandhi lose elections from RaeBareli

लेकिन ऐसा उन्होंने नहीं किया, वह खुद रायबरेली चली गई तो 1980 के बाद गांधी परिवार का कोई सदस्य रायबरेली में चुनाव लड़ने गया तो वह गया 2004 में अब जरा रायबरेली का चुनावी गणित समझने की कोशिश करते है पूरे प्रदेश में कांग्रेस पार्टी हार रही है उसका सफाया हो रहा है1985 का वह आखिरी साल था जब कांग्रेस पार्टी उत्तर प्रदेश में सत्ता में आई थी उसके बाद से कांग्रेस पार्टी को सत्ता के दर्शन नसीब नहीं हुए उत्तर प्रदेश में और वहां से उसका जो ग्राफ गिरना शुरू हुआ तो लगातार गिरता गया अभी लोएस्ट पर है 2.36 पर वोट

मतलब मार्जिनल पार्टी जिसका कोई अस्तित्व नहीं है जिसका चुनावी अस्तित्व नहीं है पार्टी के केवल दो विधायक हैं दोनों अपने ने अपनी लोकप्रियता के आधार पर विधायक चुने गए हैं पार्टी का वोट नहीं है तो अब सवाल यह है कि रायबरेली से राहुल गांधी को क्यों लड़ाया गया क्योंकि अमेठी में हार का डर था तो क्या रायबरेली जीतना पक्का है यह कांग्रेस पार्टी को ऐसा लगता है कि सोनिया गांधी 25 साल से जीत रही है लेकिन सोनिया गांधी की जीत के पीछे का रहस्य समझिए उसका गणित अगर आप समझेंगे तब शुरू में बात कही कि राहुल गांधी रायबरेली से चुनाव हार भी सकते हैं, तो उसका आधार क्या है?

1999 से जब से सोनिया गांधी चुनाव लड़ रही है और 2004 से जब से रायबरेली से लड़ रही हैं तो रायबरेली से उनके चुनाव जीतने के पीछे कांग्रेस की ताकत, या गांधी परिवार की मोहब्बत है, गांधी परिवार से लगाव राय बरेली का है यह एक झूठा नैरेटिव खड़ा किया गया इसको स्थापित किया गया और जिसे आज तक चलाया जा रहा है और कहा जा रहा है कि यह परिवार की पारंपरिक सीट हैयह परिवार की पारंपरिक सीट होती, यह परिवार का गढ़ होता परिवार के लोगों से रायबरेली के लोगों का लगाव होता अगर रायबरेली में कांग्रेस सबसे बड़े जनाधार वाली पार्टी होती

जरा विधानसभा चुनाव पर नजर डाल लीजिये 2022 का विधानसभा चुनाव हुआ उस समय 2019 में सोनिया गांधी रायबरेली की लोकसभा सीट जीत चुकी थी वहां से सांसद थी रायबरेली में पांच की पांचों विधानसभा सीटें जो एक लोकसभा क्षेत्र में आती हैं, पांच विधानसभा सीटें पांचों कांग्रेस हार गई चार सीटें समाजवादी पार्टी जीती और एक सीट भारतीय जनता पार्टी जीती इस तरह से नतीजा आया, पांच विधानसभा सीटों का जबकि प्रियंका वाड्रा ने सबसे सघन प्रचार उत्तर प्रदेश में अगर किया तो अमेठी और रायबरेली में किया

Lok Sabha Elections 2024

आप को बता दे की आज सिर्फ रायबरेली की बात कर रहे हैरायबरेली में पांचों सीटें गांधी परिवार से इतना लगाव है रायबरेली के लोगों को कि उन्होंने विधानसभा की एक भी सीट जिताने की जरूरत नहीं समझी एक भी सीट जिताने की जहमत नहीं उठाई, तो कांग्रेस का रिजेक्शन वह थोड़ा सा आप मैक्रो से माइक्रो लेवल पर आएंगे तो साफ-साफ दिखाई देगा  स्थानीय निकाय चुनाव की बात ही नहीं कर रहे है, जहां कांग्रेस की दुर्दशा बहुत ज्यादा हो चुकी है पूरे राज्य में हो चुकी है और अमेठी रायबरेली में भी हो चुकी है तो उसका जिक्र नहीं करेंगे, हम केवल विधानसभा चुनाव की बात करेंगे

आप को याद दिला दे की, मुद्दा है आज का कि सोनिया गांधी 25 साल से क्यों जीत रही है इसका रहस्य क्या है इसका रहस्य यह मैंने अभी जो आपको विधानसभा चुनाव के नतीजे बताए और उससे पहले के भी नतीजे देख लीजिए और उससे पहले के चुनाव परिणाम आप अगर आप देख लीजिए विधानसभा के तो आपको एक बात बड़ी स्पष्ट नजर आएगी कि रायबरेली में खास तौर से लोकसभा क्षेत्र की अगर बात करें, तो वहां सबसे बड़ा सबसे ताकतवर जनाधार अगर किसी पार्टी का है उत्तर प्रदेश में चार बड़ी पार्टियां हैं अब कांग्रेस को बड़ी पार्टी में शामिल करना पड़ रहा है क्योंकि अतीत में रही है तो कांग्रेस, भारतीय जनता पार्टी, समाजवादी पार्टी, और बहुजन समाज पार्टी सोनिया गांधी जब से चुनाव लड़ रही हैं अमेठी में भी 1999 में और 2004 में रायबरेली 2004 से अब 2024 है पिछले 20 साल में समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी ने उनके खिलाफ उम्मीदवार नहीं खड़ा किया जिस पार्टी का सबसे बड़ा जनाधार है वहां उस चुनाव क्षेत्र में उसने सोनिया गांधी के खिलाफ उम्मीदवार खड़ा नहीं किया यानी रायबरेली में नॉर्मल चुनाव सामान्य चुनाव हुआ ही नहीं सामान्य चुनाव यह है कि जो भी पार्टियां चुनावी मैदान में हैं वह सब अपना उम्मीदवार खड़ा करें या उनका अगर गठबंधन है तो गठबंधन का उम्मीदवार खड़ा हो तो 2019 में गठबंधन था

सपा बसपा और आरएलडी का गठबंधन था तो यह उम्मीद की जानी चाहिए थी कि रायबरेली से सपा बसपा और आरएलडी का जो गठबंधन है वह अपना उम्मीदवार खड़ा करता लेकिन दो सीटें उस गठबंधन ने छोड़ दी जबकि कांग्रेस पार्टी उस गठबंधन में शामिल नहीं थी कौन सी रायबरेली और अमेठी रायबरेली में 2019 में सपा, बसपा, आरएलडी ने अपना उम्मीदवार खड़ा नहीं किया लेकिन 2014 में जितने वोट मिले थे जो विक्ट्री मार्जिन था, सोनिया गांधी का उससे 2 लाख की कमी आ गई इसके बावजूद कि सपा बसपा का उम्मीदवार नहीं था अब आप जरा कल्पना करके देखिए अगर सपा और बसपा का उम्मीदवार होता तो सोनिया गांधी के चुनाव का नतीजा क्या आता तो रायबरेली से गांधी परिवार उखड़ चुका है जैसे पूरे उत्तर प्रदेश से उखड़ चुका है उस परिवार का तिलसम रखने के लिए एक समझौता खास तौर से समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के बीच में है कि आप जो कहेंगे आपकी शर्तें मानने को तैयार हैं इन दो सीटों पर हमारे परिवार का जो भ्रम बना हुआ है यह हमारा गढ़ है यह हमारा किला है और यह हमारा इसलिए बचा हुआ है कि अमेठी और रायबरेली के लोगों को बड़ा प्रेम है गांधी परिवार से और यहां कांग्रेस का वोट भले ना हो लेकिन परिवार का वोट है परिवार के नाम पर लोग वोट देते हैं। यह धारना बिल्कुल गलत है जो परिस्थिति बदली है अब आप कह सकते हैं कि 2024 में भी तो सपा ने उम्मीदवार खड़ा नहीं किया

बिल्कुल सही बात है बसपा ने इस बार उम्मीदवार खड़ा किया है रायबरेली से और बसपा का उम्मीदवार है अब वह कितने वोट ले जाएगा, नहीं ले जाएगा वह चुनाव का नतीजा बताएगा लेकिन रायबरेली में जो सबसे ताकतवर पार्टी थी समाजवादी पार्टी वह 2019 से 2024 के बीच में कमजोर हुई है पहला कारण समाजवादी पार्टी के मुखिया और उसके जन्मदाता मुलायम सिंह यादव अब इस दुनिया में नहीं है तो जाहिर है कि राजनीति में भी सक्रिय नहीं है 2014 का अमेठी का चुनाव राहुल गांधी को जिताने के लिए पूरी ताकत लगाई थी मुलायम सिंह यादव ने क्योंकि सोनिया गांधी ने उनको फोन किया था कि मदद चाहिए आपकी और पूरी मदद की थी मुलायम सिंह यादव ने तो मुलायम सिंह यादव नहीं है एक बात समाजवादी पार्टी और ज्यादा कमजोर हुई हैउसके चार विधायक हैं चार में से दो भागी हो गए हैं और दो में से एक जो है मनोज पांडे जो रायबरेली के ऊंचाहार से विधायक हैं रायबरेली की जो पार्लियामेंट्री कांस्टेंसी है उसी का हिस्सा है उचार वहां से विधायक है और बड़े मजबूत और बड़े जुझारू नेता है मुलायम सिंह का बड़ा भरोसा था उन पर मुलायम सिंह ने उनकी प्रतिभा जो है बहुत कम उम्र में उनकी पहचान ली थी और अपने साथ जोड़ा था उनको लंबे समय से जोड़ रखा था मनोज पांडे की नाराजगी समाजवादी पार्टी से उतनी नहीं है जितनी अखिलेश यादव और उनके कामकाज के तरीके से तो वोह एक अलग किस्सा है उसमें नहीं जाते हैं लेकिन मनोज पांडे भारतीय जनता पार्टी में आ चुके हैं और रायबरेली शहर के सीट जिसको रायबरेली सदर कहते हैं वो सीट भारतीय जनता पार्टी की अदिति सिंह के पास है तो अदिति सिंह के बारे में जान लीजिए थोड़ा केवल वो एक विधायक नहीं हैं उनके पिता अखिलेश सिंह राय बरेली के बड़े कद्दावर नेता थे और गांधी परिवार का एक स्तंभ थे रायबरेली में जो गांधी परिवार की ताकत थी जो कांग्रेस की ताकत थी उसका सबसे ज्यादा श्रेय अगर किसी एक व्यक्ति को आप देना चाहे तो वो अखिलेश सिंह थे जब तक वो जीवित थे तब तक गांधी परिवार को और कांग्रेस पार्टी को रायबरेली में कोई ज्यादा दिक्कत नहीं आती थी चुनाव जीतने में

अखिलेश सिंह अब जीवित नहीं है,  उनकी बेटी अदिति सिंह बीजेपी में शामिल हो चुकी है और बीजेपी के विधायक हैं तो उनका जो पूरा इकोसिस्टम है उनका जो पूरा जनाधार है वह भारतीय जनता पार्टी की ओर शिफ्ट हो चुका है तो आप रायबरेली की इस जमीनी हकीकत को अगर नहीं समझेंगे नहीं जानेंगे तो नतीजे के बारे में आपकी धारणा जो बनी हुई है कि राहुल गांधी इसलिए गए हैं कि वह जीत ही जाएंगे रायबरेली से

राहुल गांधी इसलिए गए हैं कि उनको लगता है कि अमेठी की तुलना में रायबरेली आसान है अमेठी में हार पक्की है, यह कांग्रेस पार्टी को भी पता था राहुल गांधी को को भी पता था इसलिए अमेठी नहीं गए वरना अगर उनको लौटकर उत्तर प्रदेश से चुनाव लड़ना था, तो वो अमेठी जाते तो अमेठी में हार का डर पक्का था और उस हार के डर के कारण रायबरेली गएपूरे परिवार की बॉडी लैंग्वेज आप देखते तो ऐसा आपको लगता दिखाई देगा कोई उत्साह, कोई उमंग, कोई खुशी राहुल गांधी में नहीं दिख रहा था

उन्होंने बाद में ट्वीट किया वहां कुछ नहीं बोले, एक शब्द नहीं बोले, बाद में उन्होंने ट्वीट किया एक्स पर जो है सोशल मीडिया पर कि मां ने अपनी कर्मभूमि उनको सौंप दी हैयह सब व वहां भी बोल सकते थे दिन भर टेलीविजन चैनल पर चलता, अगर वहां बोले होते लेकिन बाद में वह आफ्टर थॉट है आपने कोई रोड शो नहीं किया कोई प्रेस कॉन्फ्रेंस नहीं की वहां कुछ बोले नहीं, जिस तरह से चुपचाप गए और नॉमिनेशन करके चले आए ऐसा लगा कि जैसे एक औपचारिकता पूरी करनी थी और वह पूरी करके चले आए तो कुल मिलाकर गांधी परिवार की जो भाव भंगिमा थी वह यह थी कि हमारे लिए यह सीट जीतना उतना आसान नहीं है जितना इससे पहले हुआ करता था क्योंकि जिस बैसाखी पर रायबरेली में कांग्रेस पार्टी और गांधी परिवार खड़ा था, वह बैसाखी ही कमजोर हो गई है यानी समाजवादी पार्टी ही कमजोर हो गई है और समाजवादी पार्टी केवल रायबरेली में नहीं पूरे उत्तर प्रदेश में कमजोर हो गई है

अखिलेश यादव और डिंपल यादव के लिए भी चुनाव जीतना कठिन है लेकिन आप मानकर चलिए कि समाजवादी पार्टी के लिए जो 2014 हो या 2019 में वो पांच सीटें जीती थी वो पांच की संख्या को बरकरार रखना बहुत बड़ी चुनौती है उसको पार पाना अखिलेश यादव के लिए बहुत मुश्किल है और अखिलेश यादव आज से नहीं 2022 से कह रहे हैं कि 2024 का लोकसभा चुनाव उनके लिए नहीं है उनकी नजर 2027 के विधानसभा चुनाव पर है जाहिर है कि 2024 में हार लगातार उनके नेतृत्व में पांचवी हार होगी 2014, 2017, 2019, 2022 और अब 2024 तो अखिलेश यादव के नेतृत्व का जो प्रभाव है उनकी जो लोकप्रियता समाजवादी पार्टी में थी उनके पिता के कारण वह घटती जा रही है

यह पहला चुनाव हो रहा है लोकसभा का समाजवादी पार्टी के गठन के बाद से जब मुलायम सिंह यादव नहीं है उसका असर, उसका प्रभाव और अभाव आपको चुनाव नतीजों में दिखाई देगा जो परिवार के लोग जितने लड़ रहे हैं इनमें से एक भी जीत जाए तो मेरी नजर में चमत्कार होगालेकिन राहुल गांधी रायबरेली से जीत सकते हैं इस पर बहुत शक है आज के हालत में उनके जीतने की संभावना बहुत ही कम है क्योंकि उनके खिलाफ जो दिनेश प्रताप सिंह खड़े हैं वह जमीनी नेता है स्थानीय नेता हैं और सोनिया गांधी का मार्जिन 2 लाख वोट का घटा चुके हैं 2019 के चुनाव में जब समाजवादी पार्टी मजबूत थी जब समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी का गठबंधन था और समर्थन था कांग्रेस को इस बार बहुजन समाज पार्टी का समर्थन नहीं है

समाजवादी पार्टी का समर्थन जरूर है, लेकिन कमजोर समाजवादी पार्टी का समर्थन और राहुल गांधी हार के डर से अमेठी से भागकर रायबरेली आए हैं और उनसे पहले हार के डर से सोनिया गांधी चुनाव मैदान छोड़कर राज्यसभा में चली गई इन सब तथ्यों पर आप गौर कीजिए तो आप इसी नतीजे पर पहुंचेंगे कि राहुल गांधी रायबरेली से चुनाव हार सकते हैं चुनाव तो चुनाव होता है उसके बारे में जो है कोई भविष्यवाणी नहीं करनी चाहिए लेकिन आकलन जरूर करना चाहिए आकलन अगर तथ्यों पर आधारित है अगर जमीनी हकीकत पर आधारित है, तो उसके आधार पर जो निष्कर्ष निकाला जाएगा उसके सही होने की संभावना बहुत ज्यादा बढ़ जाती है इसलिए एक बार फिर दोहरा देते है कि राहुल गांधी रायबरेली से चुनाव हार सकते हैं