यूपी में राहुल और अखिलेश को लगा सबसे बड़ा झटका

Rahul and Akhilesh got biggest shock in UP

राजनीती : इंडि एलायंस यानी विपक्षी दलों का 27 दलों का जो गठबंधन था उसको सबसे बड़ा झटका लगा हैउत्तर प्रदेश से अब यह बिल्कुल स्पष्ट हो गया है कि कांग्रेस पार्टी और समाजवादी पार्टी का गठबंधन सीटों का तालमेल नहीं होने वाला है अखिलेश यादव ने अल्टीमेटम दिया था, कांग्रेस पार्टी को कि 17 सीटें देने को तैयार हैं अगर वह हां कर दे तो वह पहले अमेठी के लिए कह रहे थे फिर रायबरेली में राहुल गांधी की भारत जोड़ न्याय यात्रा में शामिल होंगे कांग्रेस पार्टी ने इस पर अभी तक कोई जवाब नहीं दिया है और अखिलेश यादव अमेठी गए नहीं और रायबरेली भी नहीं जा रहे है। 

तो अब उनकी भारत जोड़ो न्याय यात्रा में अखिलेश यादव शामिल नहीं होने वाले हैतो उत्तर प्रदेश की राजनीति आज से 6 महीने पहले जो थी और आज दोनों में बड़ा जमीन आसमान का अंतर आ गया है छह महीने पहले ऐसा लग रहा था कि अखिलेश यादव का गठबंधन मजबूत हो रहा है और वह अच्छी फाइट देंगे

भारतीय जनता पार्टी को उत्तर प्रदेश में उस समय यह भी थी नजर आ रही थी कि बहुजन समाज पार्टी भी गठबंधन में शामिल हो सकती है उस संभावना को मायावती ने खारिज कर दिया था जब उन्होंने बयान दिया कि उनकी पार्टी किसी भी गठबंधन में शामिल नहीं होगी, तो वह पहला झटका था

इंडि एलायंस को दूसरा झटका दिया आरएलडी ने यानी राष्ट्रीय लोकदल और जयंत चौधरी ने जब उन्होंने तय किया कि वह इंडि एलायंस की बजाय एनडीए के साथ रहेंगे, बीजेपी के साथ रहेंगे तो पश्चिमी उत्तर प्रदेश से कांग्रेस, आरएलडी और समाजवादी पार्टी के गठबंधन से जो संभावना बनी थी, भाजपा के खिलाफ लड़ाई की वो पूरी तरह से खत्म हो गई

उसके बाद से लगातार समाजवादी पार्टी में असंतोष के बगावत के स्वर उठ रहे हैं आज स्वामी प्रसाद मौर्य ने इस्तीफा दे दिया, पार्टी के महामंत्री पद से दो दिन पहले मौर्य इस्तीफा दे चुके थेउसके बाद अब उन्होंने पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा दे दिया और एमएलसी से भी इस्तीफा दे दिया है

उन्होंने घोषणा की है कि वह नई पार्टी बनाएंगे और इस बारे में अंतिम फैसला 22 फरवरी को दिल्ली के जवाहरलाल नेह स्टेडियम में कार्यकर्ताओं की उन्होंने बैठक बुलाई है, उस मीटिंग में वह इसका ऐलान करेंगे आपको याद होगा जब उन्होंने बहुजन समाज पार्टी छोड़ी थी, तब भी यही तरीका अपनाया था उनसे लोग पूछते रहे कि कहां जा रहे हैं तो उन्होंने कहा कि इसके बारे में अभी कुछ नहीं बताएंगे हम कार्यकर्ताओं से अपने सलाह मशवरा करके बताएंगे

उस समय स्वामी प्रसाद मौर्य का कद बड़ा लगता था क्योंकि वह स्वामी प्रसाद मौर्य बहुजन समाज पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष रह चुके थे मायावती की पार्टी में एक तरह से नंबर दो की हैसियत में थे मौर्य  बहुजन समाज पार्टी छोड़कर आ रहे थे इसलिए उनके आने का बड़ा मतलब था, अब स्वामी प्रसाद मौर्य घटी दरों पर जहां भी जाएंगे, उनका वह रुतबा अब पहले जैसा नहीं रहा है। इसीलिए वह अपनी अलग पार्टी बनाने जा रहे हैं 

हालांकि उन्होंने पार्टी का झंडा भी आज जो है वो भी रिलीज कर दिया है तो जाहिर है कि उनको समाजवादी पार्टी से निकला जा रहा है भारतीय जनता पार्टी उनको लेने वाली नहीं और बहुजन समाज पार्टी में उनके जाने की कोई संभावना नहीं है तो उसके अलावा एकमात्र पार्टी बचती है कांग्रेस पार्टी जहां उनके जाने ना जाने का कोई मतलब नहीं है ना वह कांग्रेस पार्टी को कुछ दे सकते हैं ना, कांग्रेस पार्टी उनको कुछ दे सकती है तो ऐसे में उनको लगा होगा कि अलग पार्टी बनाकर, अलग दुकान खोलकर कम से कम बार्गेनिंग तो कर सकते हैं

लेकिन आज उनकी स्थिति वह भी नहीं रही है, जिस तरह से रामचरित मानस के खिलाफ उन्होंने बोला, आपको बता दें की राजनीती में टाइमिंग का बड़ा महत्व होता हैजिस नेता को टाइमिंग का अंदाजा ना हो, उसका ज्ञान ना हो, तो उसकी राजनीति चलती नहीं जब पूरे देश में खास तौर से उत्तर प्रदेश में माहौल राममय बन रहा था, उस समय स्वामी प्रसाद मौर्य ने तय किया कि वह रामचरित मानस के खिलाफ बोलेंगे भगवान राम के खिलाफ बोलेंगे और गोस्वामी तुलसीदास के खिलाफ बोलेंगे तो जाहिर है ऐसे में उनकी राजनीति का यही हश्र होना था

लेकिन आज हम बात स्वामी प्रसाद मौर्य की राजनीति की नहीं कर रहे हैं उनकी राजनीति तो गड़बड़ा गई थी जब उन्होंने बहुजन समाज पार्टी छोड़ा और उसके बाद भाजपा में आए, तब लगा कि उनकी राजनीति शायद रास्ते पर लग रही है भारतीय जनता पार्टी ने उनको तुरंत हाथों हाथ लिया और उनको राज्य में मंत्रिमंडल में कैबिनेट मिनिस्टर बना दिया सीनियर मिनिस्टर बना दिया, लेकिन 2022 के चुनाव से पहले ठीक चुनाव से पहले उन्होंने भारतीय जनता पार्टी का साथ छोड़ दिया और काफी अनाप शनाप बोलकर वह समाजवादी पार्टी के साथ चले गए

जब अखिलेश यादव के साथ चले गए और कहा कि समाजवाद यहीं पर है और आज वह कह रहे हैं कि समाजवाद का जो रास्ता है उसको अखिलेश यादव ने छोड़ दिया है समाजवाद के रास्ते पर तो सिर्फ नेताजी यानी मुलायम सिंह यादव चलते थे उनकी जो राजनीतिक विरासत है, उसको अखिलेश यादव संभाल नहीं पाए 

ऐसे में अब स्वामी प्रसाद मौर्य की अब कोई हैसियत नहीं रही है क्योंकि 20222 में समाजवादी पार्टी के टिकट पर वह अपना विधानसभा का चुनाव हार गए थे उनको उम्मीद थी कि समाजवादी पार्टी उनकी बेटी को एडजस्ट करेगी, तो उन्हें दो तरह की उम्मीदें थी उनको समाजवादी पार्टी और अखिलेश यादव से बड़ी उम्मीद थी की उन्हें राज्यसभा के चुनाव में पार्टी राज्यसभा में भेज देगी दूसरी उम्मीद थी कि बदायूं से उम्मीदवार की घोषणा नहीं करेगी समाजवादी पार्टी वहां से उनकी बेटी को जो है वो टिकट दे देगी

क्योंकि उनको इस बात की आशंका है कि इस बार बीजेपी शायद उनकी बेटी को टिकट ना दे, उनकी बेटी इस समय बदायु से भाजपा के टिकट पर लोकसभा के सदस्य है हालांकि जब उन्होंने भाजपा छोड़ा 2022 में इसलिए उनकी आशंका में उतना दम था नहीं, लेकिन उनको लग रहा था कि बेटी भी साथ में आ जाएगीउनकी बार्गेनिंग पावर बढ़ जाएगी उनकी ताकत बढ़ जाएगी अब हालत यह हो गई है कि जो था उनके पास वह भी चला गया है लेकिन स्वामी प्रसाद मौर्य का स्टेक बहुत बड़ा नहीं था, जो था वह जो चला गया है

उसका शिकार हो रहे हैं अखिलेश यादव आप याद कीजिए 2022 के विधानसभा चुनाव में ओम प्रकाश राजभर उनके साथ थे ओम प्रकाश राजभर ने उनको कम से कम 25-30 विधानसभा सीटें जिताने में मदद की थी लेकिन चुनाव खत्म होते ही उन्होंने ओमप्रकाश राजभर को अपमानित किया वह मजबूर होकर गठबंधन से बाहर निकल जाएं और ओम प्रकाश राजभर निकल भी गए

वह फिर से बीजेपी के साथ आ गए जब से आए हैं तब से बीजेपी के साथ है हालांकि उनको बड़ी उम्मीद थी थी कि तुरंत उनको मंत्री बना दिया जाएगा मंत्री नहीं बनाया गया फिर भी अब उन्होंने पार्टी के खिलाफ बोलना या असंतोष वाली बातें करना बंद कर दिया है उनको समझ में आ गया है कि अगर उनको जो कुछ मिलना है वो भारतीय जनता पार्टी से ही मिल सकता है

इसके अलावा कोई पार्टी उत्तर प्रदेश में उनको कुछ देने की स्थिति में नहीं है उनसे लेने की ही स्थिति में है जो अखिलेश यादव ने उनके साथ किया वही अखिलेश यादव भारतीय जनता पार्टी को तानाशाह बताते हैं और अपनी पार्टी को और अपने को डेमोक्रेट बताते हैं जनतांत्रिक बताते हैं, हालत यह देखिए कि ओमप्रकाश राजभर छोड़कर चले गए, जो उनके चाचा थे वह असंतुष्ट हो गए थे, वे भी उन्हें छोड़कर चले गए लेकिन परिवार की एकता के नाम पर फिर से जुड़ गए

सलीम शेरवानी जो उनका प्रमुख मुस्लिम चेहरा है आजम खान के बाद उन्होंने महामंत्री पद से इस्तीफा दे दिया है क्योंकि उनको राज्यसभा नहीं भेजा गया इसके अलावा जयंत चौधरी से जो उनकी दोस्ती थी, वह खत्म हो गई उन्होंने नाता तोड़ लिया और एनडीए के साथ चले गए पल्लवी पटेल अपना दल कमेरा वादी नेता हैं और और विधानसभा के सदस्य हैं हालांकि वह समाजवादी पार्टी के सिंबल पर चुनाव लड़नी थी तो इसलिए तकनीकी रूप से समाजवादी पार्टी की सदस्य हैं वह बगावत की मुद्रा में है

उन्होंने साफ-साफ घोषणा कर दी है कि राज्यसभा के चुनाव में वह अखिलेश यादव के कैंडिडेट यानी समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार को वोट नहीं देंगी अब उसके बाद स्वामी प्रसाद मौर्य का इस्तीफा आया है पार्टी से भी इस्तीफा आया है, एमएलसी से भी और महामंत्री पद से पहले इस्तीफा दे दिया है

उन्होंने कहा उनके साथ भेदभाव हो रहा था और अखिलेश यादव से वैचारिक मतभेद थे इसलिए उन्होंने पार्टी से इस्तीफा देने का फैसला किया है, तो अखिलेश यादव चौतरफा मुश्किल में है कांग्रेस पार्टी से एलायंस की संभावना खत्म हो गई है इसलिए अब उनका कोई साथी ही नहीं बचा है अखिलेश यादव के साथ पहली बार ऐसा हो रहा है है कि प्रदेश की राजनीति में बिल्कुल अकेले और अलग थलग पड़ गए हैंअखिलेश का हाल यह है की किसी के साथ आने की संभावना भी नहीं है कम से कम 2024 के लोकसभा चुनाव में तो किसी के साथ आने की संभावना नहीं है अखिलेश यादव जो 2022 में थे या 2019 में थे या 2017 में थे या 2014 में थे उनकी जो ताकत थी

उससे बहुत कम हो गई है 2024 के लोकसभा चुनाव की दृष्टि से देखें तो उनको उनके ईगो ने कांग्रेस के साथ नहीं जाने दिया कांग्रेस का ईगो और राहुल गांधी का ईगो उनसे बड़ा हैकांग्रेस और राहुल गांधी के इगो ने समाजवादी पार्टी से गठबंधन नहीं होने दिया जिस कांग्रेस पार्टी की बात कर रहे है, उसका हाल ये है की 80 में से सिर्फ एक सीट हैसबसे बड़े हैरानी की बात यह वह जीती हुई सीट भी छोड़कर सोनिया गांधी राज्यसभा की और चले गईं है। 

ऐसी पार्टी 17 सीटों के ऑफर को भी स्वीकार करने को या उस पर बातचीत करने को तैयार नहीं हैइससे आप समझ सकते हैं कि उनका अहंकार किस पायदान पर खड़ा हैदोनों पार्टियों में एक बात कॉमन है, अखिलेश यादव हो या राहुल गांधी दोनों को पॉलिटिकल मैनेजमेंट नहीं आता है। दोनों को पॉलिटिकल भाषा नहीं आती, राजनेता को किस भाषा में बोलना चाहिए यह समझ ना राहुल गांधी में है और ना ही अखिलेश यादव में हैतो इस मामले में दोनों एक जैसे हैं दोनों अपनी-अपनी पार्टी का नुकसान कर रहे हैं

दोनों के रुख और रवय्ये के कारण लगातार दोनों पार्टियों का पतन हो रहा हैकांग्रेस का जो हाल है देशभर में आप देख ही रहे हैं, समाजवादी पार्टी जो नंबर दो की पार्टी है इस समय उत्तर प्रदेश में भाजपा के मुकाबले में और खास तौर से 2022 के चुनाव में जिस मजबूती से लड़ी थी वहां से आज उसकी स्थिति बहुत कमजोर हो चुकी है अगर समाजवादी पार्टी को 80 में से एक सीट भी मिल जाए, लोकसभा की तो यह समझिए कि उनकी बड़ी सफलता होगी जो पार्टी की स्थिति है उसमें एक सीट मिलने की भी संभावना दिखाई नहीं दे रही है

लेकिन अखिलेश यादव को इससे कोई फर्क नहीं पड़तावह अब भी अपनी अलग दुनिया में जी रहे हैं वह जो कुछ हो रहा है, उसके लिए मीडिया को जिम्मेदार मानते हैं व मीडिया के लोगों को दोषी ठहराते हैं उन्होंने मीडिया से बात करते हुए अभी दो दिन पहले कहा कि, जिसको बजट अच्छा लगता है वह तो उन्हीं की भाषा बोलेगा बजट आया है अगर प्रदेश सरकार का, उसको अच्छा मत कहिए, उसकी आलोचना कीजिए तो वो मुख्यमंत्री जब थे तब जिस तरह से मीडिया मैनेजमेंट था, उनकी पार्टी का सरकार का उसी तरह का मैनेजमेंट आज भी चाहते हैं वह उसी दुनिया में अभी भी जी रहे हैं उनको लगता है वह आज भी मुख्यमंत्री हैं और मुख्यमंत्री अगर औपचारिक रूप से नहीं है, तो उनको वही अधिकार या वही विशेषाधिकार प्राप्त होने चाहिए

जो मुख्यमंत्री के रूप में उन्हें प्राप्त थे इसलिए लगातार उनके साथी उनसे छूटते जा रहे हैं अब साथियों के बाद पार्टी के नेताओं की बारी है 2024 के चुनाव की घोषणा होते-होते और कौन समाजवादी पार्टी छोड़कर चला जाएगा, इसका कोई भरोसा नहीं है लेकिन राहुल गांधी की ही तरह अखिलेश यादव को भी समझ में नहीं आ रहा है कि जमीन पर हो क्या रहा है वह अब भी अपने सपनों की दुनिया में जी रहे हैं और उनको लग रहा है कि वह बड़ी कड़ी टक्कर देने वाले हैं

भारतीय जनता पार्टी को 2024 के लोकसभा चुनाव में इसकी वजह से समाजवादी पार्टी के अंदर नेताओं और कार्यकर्ताओं में बेचैनी बढ़ती जा रही है उनको समझ में नहीं आ रहा है कि अखिलेश यादव को समझाएं कैसे कि स्थिति बदल रही है, पार्टी और उनके पैर के नीचे से जमीन खिसक रही है लेकिन अखिलेश यादव से यह बात कहे कौन?

आज जो राहुल गांधी की स्थिति है वही अखिलेश यादव की स्थिति है कभी भी कोई बुराई या आलोचना, कोई बुरी खबर सुनना ही नहीं चाहते ऐसे लोगों से दूर रहना चाहते हैं जो उन्हें सच्चाई बता सके यही वजह है कि दोनों को कोई समझाने वाला नहीं है दोनों की स्थिति और उन दोनों की पार्टियों की स्थिति लगातार खराब होती जा रही है ऐसे में बिगड़ते हालात को सवारना दोनों के बस की बात नहीं है, चुनाव का ऐलान होते ही दोनों का जो हाल होगा, वह उनका खुद का चुना हुआ फैसला और नसीब होगा