Varun Gandhi’s Clash with BJP Leadership | वरुण गांधी पीली भीत से भाजपा के सांसद थे, और उनका टिकट कट गया, टिकट कटना था, यह लगभग तय था। वरुण गांधी का वक्तव्य और बर्ताव देखते हुये इस बार पार्टी टिकट नहीं देगी ये तय था। पार्टी के प्रति उनका जो रवैया उनका रहा है, जिस तरह के वह भाषण दे रहे हैं, जिस तरह की बयानबाजी कर रहे हैं, जिस तरह से बेतुके बयान दे रहे हैं। उसके बाद पार्टी के खिलाफ इतना कुछ बोलने के बाद उनका यह उम्मीद करना कि पार्टी उनको टिकट देगी, यह उनकी सबसे बड़ी गलतफहमी थी।
वरुण गाँधी पिछले कई साल से पार्टी के उपर खुद को रख रहे थे, खुद को सर्व शक्तिमान समझ रहे थे। उनको टिकट मिलेगा, उनका टिकट काटने की पार्टी में हिंमत नहीं है, और ना हिंमत होगी यह वहम उनको हुआ था। यही होता है टिपिकल एंटाइटल डायनास का रिएक्शन कि हम कानून से ऊपर हैं। हम किसी भी अनुशासन से ऊपर है। हम किसी संगठन से ऊपर हैं। हम जो चाहे मर्जी बोल सकते हैं। हमको बोलने से कोई रोक नहीं सकता। पार्टी का या, संगठन का अनुशासन भी हम पर लागू नहीं होता। पार्टी के नियम और कायदे बाकी लोगों पर होते है। भारतीय जनता पार्टी अनुशासन के लिए जानी जाती है। लेकिन भारतीय जनता पार्टी एक और चीज के लिए जानी जाती है; वह है अपने नेताओं को मनमानी करने देती है, ढील देती है, और सही समय आने पर एक पल में कन्नी काट देती है। हवा में उड़ रहे नेता कटी पतंग की तरह यहाँ वहाँ अटक और लटक जाते है।
भाजपा के नेता और पार्टी लगातार पिछले दो ढाई साल से वरुण गांधी के प्रहार सहती आ रही थी और इस उम्मीद में शायद अब सुधर जाए, तब सुधर जायें. सही समय रहते उनका रवैया बदल जाएगा। लेकिन उनका रवैया नहीं बदला, वरुण गांधी के बारे में पार्टी की राय क्या है, इसका पार्टी समय समय पर संकेत देती रही। वरुण गांधी एक समय भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय महामंत्री थे। उनको राष्ट्रीय महामंत्री के पद से हटा दिया गया। उसके बाद उन्होंने अपने एक और बड़ी हिमाकत और कोशिश की और खुद को उत्तर प्रदेश के भावी मुख्यमंत्री के दावेदार के रूप में पेश किया।
प्रयागराज में भारतीय जनता पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक थी। नरेंद्र मोदी उस समय तक प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार घोषित हो चुके थे और उस कार्यकारिणी की बैठक से पहले पूरे रास्ते पर जहां कार्यकारिणी की बैठक का स्थल था। उन्होंने वहां पोस्टर लगाये, खुद को मुख्यमंत्री समझ बैठे थे। तभी उनके करनी में माँ मेनका गांधी ने कथनी की झालर लगा दिया। वरुण गांधी के समर्थन में और उत्तर प्रदेश के भावी मुख्यमंत्री के रूप में उनकी मां मेनका गांधी ने भी बयान दे दिया। मेनका गाँधी ने कहा की, वरुण गांधी में क्षमता है। योग्यता है। वो उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बन सकते हैं। इस आशय का बयान आया और पार्टी ने उनको बुलाकर कहा कि हमारी पार्टी में इस तरह से नहीं होता, भाजपा इस तरह से नेता नहीं तय करती और नेता नहीं चुनती, आप बयानबाजी से बचें। भाजपा में इस तरह की राजनीति नहीं होती। मेनका गांधी को समझ में आ गया।
उन्होंने उसके बाद कभी भी इस बारे में कोई कोई बयान नहीं दिया। कोई बात नहीं कही। वह समझदार थी, ख़ामोश हो गई। लेकिन वरुण गांधी की समझ में नहीं आया, उन्हें लगा कि उनकी मां ने गलत किया। जो चुप हो गई। वरुण गांधी चुप नहीं हुए। उसके बाद पार्टी ने अगला कदम उठाया। उनको पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी से हटा दिया और पार्टी की जो संसदीय दल की बैठक होती है। उनको औपचारिक रूप से बैठकों में शामिल होने से मना किया गया होगा। क्योंकि वह सांसद थे, पार्टी ने उनको निलंबित नहीं किया था। लेकिन उनको यह संकेत और संदेश काफी स्पष्ट रूप से दिया गया कि वह बागी नेता बन गये है। पार्लियामेंट्री पार्टी की बैठक में वरुण गांधी जाते भी तो उनकी बाते दरकिनार कर दी जाती थी। उन्हें इग्नोर किया जाने लगा था।
कोरोना के दौरान वह सरकार के खिलाफ बोले। उसके बाद अग्निवीर योजना में जो भर्ती हुई उसके खिलाफ बोले और कहा कि यह बच्चे एक दिन बर्तन माज रहे होंगे। इस तरह की बेतुकी बात कही, और सरकार को निशाने पर लेने लगे, अपने अपमान का बदला लेने के लिए सरकार को खरी खोटी सुनाने लगे। दुनिया भर में जब भारतीय अर्थव्यवस्था की सुधार को लेकर प्रशंसा हो रही थी, उस समय वरुण गांधी भारतीय अर्थव्यवस्था की और भारत सरकार की आलोचना करने लगे।
वरुण गाँधी ने आर्थिक नीतियों का मुद्दा हो, चाहे किसान आंदोलन का रहा हो, चाहे कोई और मुद्दा रहा हो। ऐसा मुद्दा नहीं रहा, जिस पर वह सरकार के खिलाफ ना बोले हो। उन्होंने ऐसे भी बयान दिए, ऐसी भी बातें कही, जो भारतीय जनता पार्टी के कट्टर विरोधी भी शायद नहीं बोले होंगे। इतना कुछ होने के बाद भी वो उम्मीद कर रहे थे कि उनको पार्टी का टिकट मिल जाएगा। उनको पिली भीत से टिकट नहीं मिला, उन्हें पिली भीत से क्या, कहीं से भी टिकट नहीं मिला। पीली भीत से जितेन्द्र प्रसाद जो योगी आदित्यनाथ की सरकार में मंत्री हैं। इस समय और विधायक हैं, उन्हें पीली भीत से उम्मीदवार बनाया गया है। दूसरी ओर सुल्तानपुर से मेनका गांधी को टिकट दिया गया है। मेनका गांधी को टिकट मिलेगा और वरुण गांधी को नहीं मिलेगा यह लगभग तय था। क्योंकि वरुण गाँधी ने खुद के पाँव पे कुल्हाड़ी मार ली है।
भारतीय जनता पार्टी ने वरुण गांधी के द्वारा पार्टी के सभी नेताओं को छुपा संदेस दिया है कि सुधर जाओ, अब भी मौका है। वरुण गाँधी जैसे नेता असल में पॉलिटिकल डायनास होते हैं। इनकी एक बड़ी समस्या होती है, इन्हें सामान्य व्यक्ति की तरह, सामान्य कार्यकर्ता की तरह, काम करने की आदत नहीं होती और सामान्य लोगों की तरह इनसे व्यवहार किया जाए। यह इनको पसंद नहीं होता। वरुण गांधी के साथ भी यही समस्या है। उनको अपनी डायनेस्टी का घमंड है। उन्होंने काम क्या किया है, उनका योगदान क्या है पार्टी के लिए यह सवाल किया जाए तो उनके घमंड को चोट लगती है। वरुण गाँधी पार्टी के समर्थन से 2009 में 2014 में और फिर 2019 इसमें लोकसभा में पहुंचे। लेकिन उनको शायद यह गलतफहमी हुई कि पार्टी का इसमें कुछ योगदान नहीं है। यह तो उनकी योग्यता और क्षमता है। जिसके कारण वह लोकसभा सदस्य चुने गए।
अब उनको आटे दाल का भाव मालूम हो जाएगा। इस बार इस बार अगर वह इंडिपेंडेंट के रूप में चुनाव लड़ते हैं तो उनकी हार तय है। दुसरे किसी और पार्टी में उनके लिए गुंजाइश नहीं है। समाजवादी पार्टी में अखिलेश यादव कभी नहीं चाहेंगे कि एक पॉलिटिकल डायनास इस तरह का उनकी पार्टी में आ जाए। उनके अलावा जो डायनेस्टी में उनके मुकाबले बेहतर बैठता हो। इसी तरह से कांग्रेस पार्टी में कोई जगह नहीं है। राहुल गांधी सार्वजनिक रूप से बोल चुके हैं कि वरुण गांधी और मेरी आयडोलोजी बहुत अलग है। वह बहुत दूर निकल चुके हैं। सबसे बड़ा यह आश्चर्य है की राहुल गांधी को पता कैसे चला कि वरुण गांधी की आयडोलोजी क्या है? वह जिस पार्टी में है पार्टी की आयडोलोजी से सहमत नहीं है। उस पर लगातार हमला कर रहे हैं। जिस पार्टी में नहीं है। उस पर तो हमला करते ही है, उसके खिलाफ बोलते ही हैं, तो उनके लिए कांग्रेस में कोई जगह बन सकती है। क्योंकि राहुल बनाम वरुण सीधा मुकाबला होगा, जो कांग्रेस कभी नहीं चाहेगी।
आजकल बड़ी चर्चा चल रही है, क्या वरुण गांधी कांग्रेस पार्टी में जा सकते हैं? आमतौर पे देखा जाए तो वरुण गांधी को कांग्रेस पार्टी में लेने के लिए पूरी पार्टी तैयार भी हो जाए, तो क्या सोनिया गांधी तैयार होंगी? सोनिया गांधी कई साल से राहुल गांधी की लीडरशिप को स्थापित नहीं कर पाई है। कई मौके दिए है पर राहुल का करिअर नही बना पाई है। वह वरुण गांधी को पार्टी में लेकर राहुल गांधी के लिए खुद के हात से एक चैलेंजर खड़ा करेंगी। उन्हें हाल फिलहाल प्रियंका आणि राहुल में फैसला लेना मुश्किल होता जा रहा है। वहा वरुण गाँधी का कांग्रेस में आना प्रियंका और राहुल के लिए बड़ा चैलेंज साबित होने वाला है।
आज के राजनैतिक परिपेक्ष में वरुण गांधी के लिए कम से कम 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए संसद के दरवाजे बंद हो चुके हैं। आप अगर भाजपा के विद्यमान नेताओं को सही से जानते हो, तो ये माना जाना चाहिए की भारतीय जनता पार्टी ने उनको सुधारगृह में भेजा है। उनकी मां के जरिए यह संदेश दिया है कि, अगर वह अपना रवैया सुधार लेते है, अपना व्यवहार सुधार लेते है, अपने कामकाज के तरीके में सुधार कर ले तो उनके बारे में पार्टी फिर से विचार कर सकती है।
पार्टी ने पूरी तरह से पतंग काटी नहीं है, अब यह वरुण गांधी पर निर्भर है कि उनको यह संदेश समझ में आता है, या नहीं। वह जो हवा के घोड़े पर सवार हैं। उससे नीचे उतरने को तैयार हैं कि नहीं। उनको यह बात समझ में आनी चाहिए कि पार्टी ने अपने कैडर जो नीचे से उठकर आए हैं उनमें से ज्यादातर जैसे प्रज्ञा ठाकुर जैसे लोगों के टिकट काट दिए जिन्होंने सिर्फ विवादास्पद बयान दिए थे। ऐसे लोगों का भी टिकट काट दिया है। इसलिए वरुण गांधी का यह उम्मीद करना कि वह लगातार पार्टी और सरकार के खिलाफ बोलते रहेंगे।
प्रधानमंत्री की नीतियों के खिलाफ बोलते रहेंगे और पार्टी उनको सर माथे पर बिठाकर रखेगी। इससे बड़ी गलतफहमी वाला व्यक्ति आपको खोजे नहीं मिलेगा। अब उनको सच्चाई का एहसास हुआ होगा कि उन्होंने क्या किया है। यह उनके लिए एक आखरी मौका है, उनके लिए सोचने की जरूरत है। पिछले ढाई-तीन साल से बचकानी बाते कर रहे थे। उससे उनका कितना फायदा हुआ, उससे उनका राजनीतिक करियर कितना आगे बढ़ा। अब उनके लिए चारों तरफ अन्धेरा छाया हुआ है। उम्मीद की कोई किरण नहीं है। उम्मीद की किरण एक ही हो सकती है कि वह बदलने को तैयार हो जाए। तो सवाल यह है कि क्या वरुण गांधी बदलने को त तयार हैं। इसके कोई संकेत अभी तो नहीं है। आने वाले दिनों में मिलेंगे जब लोकसभा का चुनाव संपन्न हो जाएगा। चुनाव के नतीजे आ जाएंगे और वह संसद में नहीं होंगे। तब उनको समझ में आएगा कि उन्होंने कितनी बड़ी गलती की है।
राजनीति में गलती किसी से भी हो सकती है। लेकिन एक चीज होती है इंट्रोस्पेक्शन आत्मचिंतन। अगर आप सुधार करने को तैयार नहीं है, तो आप बहुत लंबा रास्ता राजनीति में तय नहीं कर सकते। वरुण गांधी को जो कुछ मिला वह उनके सरनेम के कारण मिला। उनकी किसी योग्यता के कारण नहीं मिला। अगर ‘गांधी’ सरनेम नहीं होता उनके नाम के साथ, तो शायद उनको 2009 में भी भारतीय जनता पार्टी का टिकट नहीं मिलता।
उनकी मां लंबे समय से भारतीय जनता पार्टी से जुड़ी हुई हैं। यह भी एक कंसीडरेशन था और वह संजय गांधी के पुत्र हैं और कांग्रेस पार्टी ने संजय गांधी से दूरी बना ली है। संजय गांधी की के जन्मदिन पर या उनकी पुण्यतिथि पर कांग्रेस पार्टी में कोई समारोह आयोजित नहीं होता। कांग्रेस के किसी दफ्तर में संजय गांधी की फोटो नहीं लगती, एक तरह से एक ऐसे तिरस्कृत गांधी है, जिन्हें कांग्रेस अपना नहीं मानती। संजय गाँधी आज इस दुनिया में नहीं है, फिर भी उपेक्षा के पात्र है, उनको कांग्रेस पार्टी आज भी स्वीकार नहीं कर पा रही है। जो प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के सबसे प्रिय बेटे थे। इंदिरा गांधी अपना राजनितिक वारिस संजय गांधी को ही मानती थी। उसी रूप में आगे बढ़ा रही थी। उनकी असमय मृत्यु नहीं हुई होती तो शायद राजीव गांधी कभी राजनीति में आते ही नहीं।
लेकिन अब उस बात का जिक्र करने का फायदा नहीं है। लेकिन इतना तो तय है कि कांग्रेस पार्टी ने और खास तौर से कहे तो सोनिया गांधी की पार्टी ने संजय गांधी को पूरी तरह से भुला दिया है। ऐसे में वरुण गांधी को कांग्रेस पार्टी अपना लेगी, यह सोचना कुछ ज्यादा ही धाडस का हो जाएगा। आज के माहौल में वरुण गांधी के लिए कम से कम 2024 के लोकसभा चुनाव में अब कोई विकल्प बचा नहीं है। समाजवादी पार्टी उनको लेगी नहीं और समाजवादी पार्टी में पता नहीं वह जाने के लिए इच्छुक होंगे भी या नहीं। कांग्रेस पार्टी के दरवाजे राहुल गांधी उनके लिए पहले ही बंद कर चुके हैं।
भारतीय जनता पार्टी ने उनके लिए वापसी का दरवाजा तो पूरी तरह बंद नहीं किया है, लेकिन उनको सुधार गृह में जाने का एक मौका दिया है। अब इस मौके को इस अवसर को वह चुनौती के रूप में लेते हैं और अपने आप में सुधार लाते हैं, तो उनके लिए आगे का भविष्य का रास्ता खुल सकता है। अगर नहीं ऐसा करते हैं तो 2024 के बाद उनका कोई राजनीतिक भविष्य नहीं है।
वरुण गांधी ऐसे जनाधार वाले नेता नहीं है कि वह लोकसभा की सीट अपनी क्षमता पर अपने बूते पर जीत सके। उनको जीत के लिए लोकसभा में पहुंचने के लिए या फिर किसी भी सदन में पहुंचने के लिए एक पार्टी की जरूरत है और वह पार्टी भारतीय जनता पार्टी के अलावा कोई हो नहीं सकती थी। उस पार्टी के साथ ही उन्होंने सबसे बुरा किया, जिसने उनको तीन बार लोकसभा में पहुंचाया। तो अब उनके पास सोचने का काफी समय होगा। अगले 5 साल उनके पास काफी लंबा समय है।
5 साल से पहले भी उनका पुनर्वास हो सकता है, किसी ना किसी रूप में अगर उनके व्यवहार में बदलाव दिखा। तो भारतीय जनता पार्टी ने अतीत में ऐसे बहुत से लोग हुए हैं जिन्होंने पार्टी के खिलाफ बहुत कुछ बोला है और उसके बाद उन्होंने अपना रवैया बदल लिया। तो पार्टी ने उनको एक और मौका दिया। क्या वरुण गांधी को एक और मौका मिलेगा, यह निर्भर करता है उनके व्यवहार पर और उनके आगे के चाल चलन पर, लेकिन उनके स्वभाव में कोई बदलाव नहीं आता है, तो उनका राजनीतिक सफर दुखद हो सकता है।