कांग्रेस का घोषणा पत्र बताता है, उन्हें देश और देशवासियों के भविष्य की कोई चिंता नहीं

Congress manifesto shows that they are not worried about future of country

Congress Manifesto | कांग्रेस पार्टी का चुनाव घोषणा पत्र आया। 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए जिसे पार्टी ने न्याय पत्र का नाम दिया ‘पांच न्याय 25 गारंटी’ सुनने में बहुत अच्छा लगता है। इसमें ज्यादातर फ्री बीज की बात की गई है। महिलाओं को एक लाख रुपए देने की बात कही गई है। उसके अलावा युवाओं को नौकरी की गारंटी दी गई। तमाम इस तरह की बातें कही गई हैं, अगर आप पूरा चुनाव घोषणा पत्र पढ़े और अपनी आंखें थोड़ी देर के लिए बंद कर ले और सोचे तो आपको लगेगा कि आप लौटकर नेहरू के युग में आ गए है। आपको लगेगा कि नेहरू की समाजवादी नीतियों के तहत यह चुनाव घोषणा पत्र बना है।

आज की जो वर्तमान परिस्थितियां है, जो जरूरतें हैं, देश की समाज की युवा वर्ग की किसान की महिलाओं की उनके बारे में इस न्याय पत्र में कुछ नहीं है। तो सार्वजनिक जीवन में वैसे भी जीवन के हर क्षेत्र में एक चीज होती है, इतिहास बोध और वर्तमान बोध। इस घोषणा पत्र से या न्याय पत्र कहे जो कांग्रेस पार्टी कहती है। न्याय पत्र ही इसको कहक संबोधित करते हैं। इससे पता चलता है, कि कांग्रेस को ना तो इतिहास का बोध रह गया है ना वर्तमान का बोध रह गया। वर्तमान का बोध नहीं रह गया है। यह तो उसकी जो जिस तरह से लोग पार्टी छोड़ रहे हैं और पार्टी छोड़ते समय जो कुछ बोल रहे हैं। उससे बड़ा स्पष्ट है, यह प्रमाणित होता है। वह किसी विरोधी के आरोप की जरूरत नहीं है। वह बीजेपी के या आरएसएस के किसी पदाधिकारी के बोलने की जरूरत नहीं है; और ना ही किसी कांग्रेस विरोधी को बोलने की जरूरत है।

कांग्रेस पार्टी के अपने लोग जो 5 साल, 10 साल और कुछ तो ऐसे भी हैं जो 50 साल कांग्रेस में रहे है। वो पार्टी छोड़कर जा रहे हैं। पार्टी के बडे और अनुभवी नेता जो कुछ बोल रहे हैं उस पर कांग्रेस पार्टी के नेतृत्व का कोई ध्यान नहीं है, यह बात समझ में आती है। इतिहास बोध की जो बात के लिये एक उदाहरण काफी है। उसी प्रेस कॉन्फ्रेंस में जिसमें मल्लिकार्जुन खरगे जो राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं, सोनिया गांधी जो पूर्व अध्यक्ष है, राहुल गांधी पूर्व अध्यक्ष मौजूद थे, उसके अलावा पी चिदंबरम जो चुनाव घोषणा पत्र की जो कमेटी बनी थी उसके अध्यक्ष थे। इन सभी लोगों की मौजूदगी में बात शुरू की पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने और उन्होंने याद किया बाबू जगजीवन राम को, बाबू जगजीवन राम को याद करते हुए उन्होंने कहा कि आज उनका जन्मदिन है। वह कांग्रेस में लंबे समय तक रहे 1984 तक कांग्रेस में रहे।

Congress manifesto

आपको बता दे कि, इतिहास बोध का आलम यह है। अगर कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष का जो 80 साल से ऊपर की आयु के हैं और पूरा दौर उन्होंने खुद अपनी आंखों से देखा है। बाबू जगजीवन राम ने 1977 में कांग्रेस पार्टी छोड़ दी। वे लौटकर फिर कभी कांग्रेस पार्टी में नहीं गए और कांग्रेस पार्टी छोड़ दी। अब उनका जिक्र अगर कांग्रेस करती है। तो कांग्रेस को इतिहास बोध नहीं है, कोई बात नहीं है। एक अपराध बोध तो होना ही चाहिए।

मल्लिकार्जुन खरगे ने जब जिक्र किया बाबू जगजीवन राम का तो उनको सबसे पहले माफी मांगनी चाहिए कि उनके साथ जो दुर्व्यवहार किया कांग्रेस पार्टी ने उसके लिए वह क्षमा मांगते हैं। वह कांग्रेस का गलत कदम था। वह गलत फैसला था। उसके लिए वह क्षमा प्रार्थी हैं। लेकीन ऐसा उन्होंने कुछ कहा नहीं। ऐसा कोई संकेत भी नहीं दिया कि उनके साथ कांग्रेस पार्टी ने कुछ गलत किया। आपको एक छोटी सी घटना याद दिला देते है, छोटी सी नहीं बड़ी राजनीतिक घटना है। पूरी देश की राजनीति बदल सकती थी। उस घटना से और वो घटना है 1979 की जब चौधरी चरण सिंह की सरकार को समर्थन देने से संसद में कांग्रेस पार्टी इंदिरा गांधी ने मना कर दिया। समर्थन की घोषणा करके चिट्ठी देकर राष्ट्रपति को सरकार बनवाई जब वह पहली बार संसद का सामना करने जा रहे थे। रास्ते में थे उस समय घोषणा हुई कि कांग्रेस पार्टी ने समर्थन विड्रॉ कर लिया है।

चौधरी चरण सिंह संसद नहीं गए, राष्ट्रपति भवन गए और इस्तीफा दे दिया। उसके बाद बात होने लगी वैकल्पिक सरकार की लोकसभा में कौन बना सकता है। राष्ट्रपति का यह दायित्व था, इस बात को एक्सप्लोर करना। इस बात की संभावना तलाश करना कि क्या कोई वैकल्पिक सरकार बनने की संभावना है। अगर उनको लगता कि नहीं, कोई वैकल्पिक सरकार बनने की संभावना नहीं है। तो वह लोकसभा भंग कर के नए चुनाव का ऐलान कर सकते थे। लेकिन हुआ क्या वैकल्पिक सरकार बनाने का दावा जनता पार्टी जो बची हुई थी, जनता दल का एक हिस्सा चौधरी चरण सिंह के साथ निकल गया था। उसके बाद जो जनता पार्टी बची हुई थी उसमें कांग्रेस वो के लोग थे, कुछ सोशलिस्ट भी बच गए थे। उसके अलावा जनसंघ घटक था और छोटी-छोटी पार्टियां थी जो जनता पार्टी के रूप में मौजूद थी।

उन्होंने अपनी बैठक बुलाई और तय किया कि हम सरकार बनाने का दावा पेश करेंगे और हमारे नेता होंगे बाबू जगजीवन राम वो देश के प्रधानमंत्री होंगे। समर्थन जुटा लिया गया। जितने क्षेत्रीय दल हैं, डीएम के, अकाली दल, इस तरह की कई पार्टियां समर्थन देने के लिए राजी हो गई कि लोकसभा चुनाव को टाला जा सके। इस कारण से और समर्थक सांसदों की सूची बनाई जा रही थी। राष्ट्रपति की चिट्ठी के साथ वो सूची टाइप की जा रही थी। तब तक राष्ट्रपति भवन से संदेश आया कि राष्ट्रपति ने लोकसभा भंग कर दी है और नए चुनाव का ऐलान कर दिया है।

कांग्रेस पार्टी और इंदिरा गांधी जानती थी कि अगर बाबु जगजीवन राम प्रधानमंत्री बन गए तो 1982 तक जो लोकसभा का कार्यकाल था तब तक वह प्रधानमंत्री रहेंगे और उनकी सरकार अच्छी चलेगी। बाबू जगजीवन राम के खिलाफ आपके मन में उनके बारे में आपकी कोई भी धारणा हो वह बहुत अच्छे प्रशासक थे। यह उनके विरोधी भी मानते हैं, पहली बार देश में कोई दलित प्रधानमंत्री बनता। देश को पहला दलित प्रधानमंत्री बनने से अगर किसी ने रोका तो कांग्रेस पार्टी ने रोका था।

अब यह सब पाप जो पार्टी कर चुकी हो वह बाबू जगजीवन राम का नाम ले यह सबसे बडी विडंबना है। ये बात तभी कही जा सकती है जब आपको अतीत का ज्ञान ना हो, अतीत का बोध ना हो और आपको अपनी गलती का भी एहसास ना हो। यह एक बात कही जो तथ्यात्मक रूप से जो गलती मल्लिकार्जुन खरगे ने की उसके बारे में तो कांग्रेस का इतिहास बोध इस तरह का है और कांग्रेस का वर्तमान बोध, उसके बारे में तो कुछ कहना ही नहीं चाहिए। सब कुछ बड़ा स्पष्ट सा है। कांग्रेस को जो लोग छोड़कर जा रहे हैं। वह जो बातें कह रहे हैं, वह वही बातें कह रहे हैं जो 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद ए.के. एंटोनी के नेतृत्व में चुनाव में हार की समीक्षा पर विचार करने के लिए एक कमेटी बनी थी।

पार्टी के लगातार हार के कर्ण तलाशने के लिएए के एंटोनी के नेतृत्व में कमेटी बनी थी। तब उस कमेटी ने कहा था जो उसका निचोड़ था, की कांग्रेस पार्टी के हार में सबसे बड़ा कारण है उसका ‘हिंदू विरोधी रवैय्या और उस तरह की छवि का बन जाना। उसकी हिंदू विरोधी छवि बन गई है और मुस्लिम परस्त पार्टी के रूप में पहचान बन गई है। कांग्रेस पार्टी की और अगर आप एक नजर डाले और उनके 10 साल देखें तो कमेटी की रिपोर्ट एकदम सही थी। कांग्रेस ने जो कुछ किया है उस धारणा को और पुष्ट करने के लिए किया है। यह बात कांग्रेस छोड़ने वाले कह रहे हैं।

इनमे दो घटनाओं का जिक्र करना बहुत जरूरी है। जिनसे इस बात की पुष्टि होती है पहला उदय निधि स्टालिन ने जो कुछ कहा सनातन धर्म के बारे में और उसके बाद कांग्रेस जिस तरह से चुप रही, चुपचाप एक छोटा सा बयान देकर कि हम उनकी बात से सहमत नहीं है। यह उनकी व्यक्तिगत राय हो सकती है। इसके अलावा कांग्रेस ने विरोध का कोई स्वर, या कोई आवाज नहीं उठाई। सनातन का विरोध भारत में हो यह बात आम आदमी के एकदम कल्पना से परे है। लेकिन कांग्रेस पार्टी के लिए यह बड़ी सामान्य सी बात है। कांग्रेस पार्टी के लिए उदय निधि का यह बयान कोई बड़ी बात नहीं थी।

जिस बात पर कांग्रेस विरोध करती तो उनकी छवि अलग बनती, अगर विरोध करते, अपनी बात रखते तो क्या होता डीएम के उसके साथ गठबंधन नहीं करती। नौ सीटें जो मिली है गठबंधन में वह नहीं मिलती। इस गठबंधन में हो सकता है नौ की नौ सिट कांग्रेस जीते जाये और या इस बात की आशंका हो सकती थी कि वह हार जाती अगर गठबंधन नहीं होता। लेकिन कांग्रेस सिर्फ गठबंधन के लिये कितनी बड़ी किंमत चुकाने को तैयार हैं। कांग्रेस ने अपने हिंदू विरोधी अजेंडे पर अडिग रहने के रवय्ये से साफ़ साफ बताया की, उदय निधि स्टालिन ने जो कहा, भले ही उनकी आवाज रही हो, उनके शब्द रहे हो, लेकिन हम उस पर विश्वास करते हैं। हमारी मजबूरी है कि चुनावी राजनीति के चलते हम वो बात सार्वजनिक रूप से बोल नहीं सकते।

लेकिन हम जब सत्ता में थे तो हम भी वही कर रहे थे, हम ‘सैफरन टेररिज्म’ की बात कर रहे थे, हम हिंदू धर्म को खत्म करने के लिए या हिंदू धर्म को कलंकित करने के लिए, सनातन धर्म को कलंकित करने के लिए जो कुछ संभव सरकारी तंत्र के द्वारा हो सकता था, वह सब कुछ कर रहे थे। सार्वजनिक रूप से तो उदय निधि स्टालिन जो बोल रहे थे दरअसल वह कांग्रेस की विचारधारा है। जिसका प्रकटीकरण वह अपने शब्दों में कर रहे थे। उनकी बात तमिलनाडु तक सीमित है। कांग्रेस की बात पूरे देश में जाती है। आज विद्यमान हालात में कांग्रेस उस विचारधारा से सहमत है, यही संदेश कांग्रेस पार्टी ने दिया।

फिरभी आपको कोई शंका बची रह गई हो, अगर आपके मन में कोई सवाल बाकी रह गया हो, तो उसका जवाब कांग्रेस पार्टी ने दिया 22 जनवरी के कार्यक्रम को लेकर जाहिर तौर पे दिया है। अयोध्या में 22 जनवरी 2024 को प्राण प्रतिष्ठा का कार्यक्रम हुआ, अयोध्या में भव्य राम मंदिर में रामलला की जो मूर्ति स्थापित की गई। उसकी प्राण प्रतिष्ठा का कार्यक्रम था, उसका निमंत्रण कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं को भी गया। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता तो गए नहीं, वह एक बात है लेकिन जो बात उन्होंने कही वह उनका अजेंडा स्पष्ट करने के लिए काफी है।

कांग्रेस और उनके नेताओं ने कहा कि, यह बीजेपी का प्रोपेगेंडा है। यह बीजेपी का कार्यक्रम है। ये उसी तरह की बात थी जब कोरोना के दौरान यह कहा गया। कई पार्टियों के कई नेताओं द्वारा कही गई, कोरोना को रोकने के लिए जो वैक्सीन बनी है वो वैक्सीन बीजेपी की वैक्सीन है। हम वैक्सीन नहीं लगवाएगे, वैक्सीन के खिलाफ अभियान चलाने की कोशिश हुई। अगर वो सफल हो जाते तो लाखों लोग मरते। लाखों लोगों का जीवन खतरे में डालकर अपनी राजनीति चमकाने की कोशिश हुई।

आप को समझना चाहिये की, यह उससे भी बड़ा अपराध है कि आप अपने देश की अपने समाज की संस्कृति के खिलाफ खड़े हो जाए, राम का विरोध का मतलब है, भारत की संस्कृति का विरोध। राम इस देश की प्राण वायु है। इस देश की संस्कृति की पहचान है, इस देश के करोड़ों लोगों की आस्था है। प्रभु राम का विरोध करने का मतलब है कि आप इस देश की सनातन सभ्यता को नष्ट करना चाहते हैं। आप उसके विरोध में खड़े हैं, जो काम मुगलों ने किया। मुस्लिम शासकों ने किया। अंग्रेजों ने किया। उसी काम को आप आगे बढ़ाना चाहते हैं। यह संदेश आप दे रहे हैं और कांग्रेस पार्टी ने वह किया।

यह बात जाहीर तौर पे ओ लोग कर रहे हैं जो नेता कांग्रेस छोड़ रहे हैं। उनका कहना है कि इस घटना के बाद उनका दम कांग्रेस में घुटने लगा था। उन्होंने कहा कि हम कैसे सनातन धर्म के विरोध में, भगवान राम के विरोध में बोले। कैसे हम यह कामना कर सकते हैं उदय निधि स्टालिन की तरह कि सनातन धर्म का नाश हो जाए। सनातन धर्म एक बीमारी है, संक्रामक रोग है। इसको समूल नष्ट कर देना चाहिए। यह उदय निधि स्टालिन का बयान था। जिसका विरोध कांग्रेस ने नहीं किया। कांग्रेस अगर उस दिन सड़कों पर उतर आई होती, उसका विरोध किया होता तो उसके बारे में जो छवि बनी है। उसकी जो धारणा बनी है। उसके बारे में हिंदू विरोधी होने की शायद वह छवि थोड़ीसी धूमल हो जाती। हिंदू विरोधी छवि पूरी तरह से तो नहीं बदलती, वो दाग पूरी तरह से तो नहीं हटता, लेकिन उसकी शुरुआत हो जाती। लेकिन कांग्रेस पार्टी ने ऐसा कुछ भी नहीं किया। क्योंकि कांग्रेस पार्टी उस बात को मानती है, जो उदय निधि स्टालिन ने कहा।

दूसरी बात जो लोग कांग्रेस छोड़ रहे हैं, उन्होंने कहा है की वर्तमान में कांग्रेस पार्टी के लिए सोचने का मुद्दा नरेंद्र मोदी नहीं है। भारतीय जनता पार्टी नहीं है। 10 साल की भाजपा की और मोदी की सरकार नहीं है। सोचने की बात यह है कि उसके अपने लोग जो लंबे समय से पार्टी से जुड़े हुए थे। वह छोड़कर क्यों जा रहे हैं और जो जा रहे वो जो बातें कह रहे हैं, उस पर विचार करने की जरूरत है। तो समझ में आता कांग्रेस का वर्तमान बोध समाप्त हो गया है। समाज और देश किस तरह से बदल रहा है। उसका असर उसकी अपनी पार्टी पर क्या पड़ रहा है। यह बात कांग्रेस की समझ में नहीं आ रही है। जो लोग पार्टी छोड़कर जा रहे हैं आप हेमंत विश्व शर्मा से शुरू कीजिए और गौरव वल्लभ तक चले आइए। संजय निरूपम तक चले आइए। सबका एक स्वर में एक ही एक ही बात कहना है, भले ही शब्द सबके अलग-अलग हैं। लेकिन उसका निष्कर्ष एक ही है।

उनका आरोप है की, राहुल गांधी में नेतृत्व की क्षमता नहीं है। जो अपनी पार्टी के लोगों को न्याय नहीं दिला सकता। वह देश को न्याय दिलाने की बात करेगा, तो उस पर भरोसा कौन करेगा। तो सबसे बड़ी समस्या कांग्रेस की है कि उसके शीर्ष नेतृत्व पर देश के लोगों का भरोसा नहीं है, विश्वास नहीं है। तो वो न्याय की बात करें, या गारंटी की बात करें। उस गारंटी की कोई गारंटी नहीं है। उस न्याय को अन्याय में बदलते हुए लोग देख रहे हैं। लंबे समय से देख रहे हैं। कैसे विश्वास कर ले कि कांग्रेस पार्टी न्याय दिला सकती है।

आज हार से परेशान कांग्रेस पार्टी दावा कुछ भी करें, कांग्रेस पार्टी को यह बात कांग्रेस पार्टी और खास तौर से राहुल गांधी की बात पर कोई यकीन नहीं करेगा, क्योंकि वह कांग्रेस पार्टी के सर्वोच्च नेता हैं। उन्होंने कभी सोचा कि उन्होंने 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले देश भर में घूम घूम कर प्रचार किया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने दोस्त अनिल अंबानी की जेब में करोड़ों रुपए डाल दिए। यह बात सरासर झूठ सफेद झूठ साबित हुई। संसद से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक राहुल गांधी ने आज तक उस पर कोई अफसोस जाहिर नहीं किया। जनता ने उसका जवाब दिया। जनता की अदालत में भी उसका जवाब मिला। लेकिन राहुल गांधी पर उसका कोई असर नहीं पड़ा।

इसी तरह से हिंडन बर्ग की रिपोर्ट आई। एक प्राइवेट संस्था की रिपोर्ट आई, अडानी के बारे में और वह रिपोर्ट पूरी तरह से झूठी साबित हुई। राहुल गांधी आज तक उसका प्रचार करते हैं कि सरकार ने किस तरह से आउट ऑफ द वे जाकर कानून तोड़कर कानून को धता बताकर अडानी की मदद की और अब उन्होंने जो इलेक्शन एफीडेविट फाइल किया है, उससे पता चल रहा है कि पिछले 5 साल में उनकी आमदनी जो बढ़ी है।

उन्होंने कॉर्पोरेट सेक्टर में निवेश किया है जिसके बारे में वो कहते हैं कि नरेंद्र मोदी ने बर्बाद कर दिया पूरी अर्थव्यवस्था को खत्म कर दिया। उसी के निवेश में उनकी आमदनी बढ़ी है। क्योंकि उन कंपनियों का कारोबार बढ़ा है। क्योंकि देश की अर्थव्यवस्था में सुधार हुआ है। देश की अर्थव्यवस्था में तेजी से प्रगति हुई है। इस कारण उन कंपनियों की स्थिति सुधरी है। उनका लाभ बढ़ा है, उनका कारोबार बढ़ा है। इसलिए राहुल गांधी का मुनाफा बढ़ा है। यह इसका निजी और व्यक्तिगत रूप से मिले लाभ होने के बाद, खुद का अनुभव होने के बाद भी अगर वह कह रहे हैं। तो इसका मतलब है कि उनको झूठ बोलने में कोई संकोच नहीं होता। वह गलत बयानी करने को अपना सबसे बड़ा हथियार मानते हैं और उनको लगता है कि वह कहेंगे और लोग विश्वास कर लेंगे।

पहले उनको इस बात का आकलन करना चाहिए कि लोग देश के लोग उनकी बात पर विश्वास क्यों नहीं करते और उससे पहले उनको इस बात का आकलन करना चाहिए कि उनकी अपनी पार्टी के लोग, उनकी अपनी पार्टी के नेता कार्यकर्ता उनकी बात पर विश्वास क्यों नहीं करते। क्या किसी सुधार की जरूरत है। क्या किसी बदलाव की जरूरत है। यह प्रश्न तभी पूछे जा सकते हैं। उनके मन में तभी आ सकते हैं, जब उनको वर्तमान का बोध हो कि कैसे देश बदल रहा है। समाज बदल रहा है।लोगों की सोच बदल रही है। उनकी अपनी पार्टी के लोगों की सोच बदल रही है। तो जिसको अपनी पार्टी का अपने घर का कोई पता ना हो वह देश को न्याय दिलाने की बात करें, उस बात पर तो केवल हंसा जा सकता है। उस पर विश्वास करने का कोई कारण नहीं बनता है।