NITI Aayog Report | पिछले 10-11 वर्षों में देश में गांव और शहर के बीच का अंतर कम हुआ है। अब गांव के लोग भी शहरों की तरह खर्च करने लगे हैं। इस दौरान लोगों का खाने पर खर्च कम हुआ है जबकि अन्य चीजों पर खर्च बढ़ा है। इस दौरान देश में गरीबी भी कम हुई है। ये सारी जानकारी केंद्र सरकार द्वारा जारी एक रिपोर्ट में सामने आई है.
केंद्र सरकार के सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय (MoSPI) ने कल (25 फरवरी, 2024) देश के परिवारों द्वारा किए जाने वाले खर्च पर पारिवारिक उपभोग व्यय सर्वेक्षण के आंकड़े जारी किए हैं। यह सर्वेक्षण अगस्त 2022 से जुलाई 2023 के बीच आयोजित किया गया था। यह इस सर्वेक्षण का 76वां संस्करण था। इसमें कई अहम जानकारियां सामने आई हैं. इस रिपोर्ट में एक व्यक्ति के मासिक खर्चों के बारे में जानकारी दी गई है। इसमें गांव में रहने वाले लोगों और शहरों में रहने वाले लोगों के लिए अलग-अलग आंकड़े दिए गए हैं.
गांवों में भी खर्च बढ़ रहा है, शहरों की तुलना में अंतर हुआ है कम
सर्वे के मुताबिक, देश के गांवों में रहने वाली आबादी के बीच प्रति व्यक्ति मासिक खर्च 3773 रुपये है, जबकि शहर में रहने वाला व्यक्ति अपने ऊपर औसतन 6459 रुपये प्रति माह खर्च करता है। यह खर्च 2011-12 में हुए सर्वे की तुलना में करीब 2.5 गुना है. 2011-12 में, गाँव में रहने वाला प्रत्येक व्यक्ति अपने ऊपर ₹ 1430 खर्च करता था, जबकि शहरी व्यक्ति ₹ 2630 खर्च करता था। गाँव में रहने वाला व्यक्ति अपने कुल खर्च का 46% खर्च करता था, जबकि शहर में रहने वाला व्यक्ति भोजन पर 39% खर्च करता था।
नई रिपोर्ट के आंकड़ों से पता चलता है कि गांवों और शहरों के खर्च के बीच का अंतर भी कम हुआ है. अब दोनों के खर्च में 71 फीसदी का अंतर है जबकि 2011-12 में यह करीब 84 फीसदी था. इसका मतलब यह है कि अब जो सुविधाएं केवल शहरों में उपलब्ध थीं, वे अब गांवों तक पहुंच रही हैं और लोग उन पर खर्च भी कर रहे हैं।
रिपोर्ट से पता चलता है कि शहरों में शीर्ष 5% लोग प्रति माह ₹20,824 खर्च कर रहे हैं, जबकि गांवों में शीर्ष 5% लोग प्रति माह ₹10,501 खर्च कर रहे हैं। सबसे कम शहरी 5% प्रति माह ₹2001 खर्च कर रहे हैं जबकि ग्रामीण 5% प्रति माह ₹1373 खर्च कर रहे हैं। खाने पर होने वाले खर्च पर नजर डालें तो गांवों में एक व्यक्ति एक महीने में 1750 रुपये खर्च करता है जबकि शहर में एक व्यक्ति 2530 रुपये खर्च करता है। रिपोर्ट बताती है कि देश में लोगों के खर्च में खाने पर होने वाले खर्च की हिस्सेदारी कम हो रही है।
इसके मुताबिक, जहां साल 1999-2000 में ग्रामीण व्यक्ति के कुल खर्च का 59 फीसदी सिर्फ खाने पर खर्च होता था, वहीं ताजा सर्वे में यह बढ़कर 46 फीसदी हो गया है। शहरों में इसी अवधि में यह 48% थी, जो अब 39% हो गयी है। इस रिपोर्ट में राज्यवार आंकड़े भी दिये गये हैं।
किस राज्य के लोग हैं ज्यादा खर्चीले?
रिपोर्ट के मुताबिक, राज्यों में सिक्किम के लोग सबसे ज्यादा खर्च कर रहे हैं. सिक्किम में, एक ग्रामीण व्यक्ति ₹7731 खर्च करता है जबकि एक शहरी व्यक्ति ₹12,105 खर्च करता है। इसके विपरीत छत्तीसगढ़ में खर्च सबसे कम है. यहां एक ग्रामीण व्यक्ति ₹2466 खर्च करता है जबकि एक शहरी व्यक्ति ₹4483 खर्च करता है। उत्तर प्रदेश में यही खर्च ₹3191 और ₹5040 है। बिहार में यह खर्च ₹3384 और ₹4768 है। इन आंकड़ों में अलग-अलग नौकरी वाले लोग कितना खर्च करते हैं इसका भी जिक्र होता है।
गांवों में खेती करने वाले लोग प्रति माह ₹3702 खर्च करते हैं जबकि नौकरीपेशा लोग ₹4533 खर्च करते हैं। वहीं, शहरों में स्वरोजगार करने वाले लोग ₹6067 खर्च करते हैं जबकि नौकरीपेशा लोग ₹7146 खर्च करते हैं। सामाजिक ताने-बाने से देखा जाए तो अनुसूचित जनजाति के लोग देश के ग्रामीण क्षेत्रों में प्रति माह ₹3016 और शहरी क्षेत्रों में ₹5414 खर्च करते हैं। अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए यही खर्च गांवों में 4392 रुपये जबकि शहरों में 7333 रुपये है।
गांवों और शहरों दोनों में अनाज और सब्जियों पर खर्च कम हुआ और कोल्ड ड्रिंक और फलों पर खर्च बढ़ गया। सर्वे में लोगों के खर्च करने के तरीके के बारे में भी जानकारी दी गई है। इसके मुताबिक, 2011-12 के दौरान गांवों में लोग अपने खर्च का 10.6 फीसदी अनाज पर खर्च कर रहे थे, जो अब घटकर 4.89 फीसदी रह गया है। इसी तरह दालों पर खर्च 2.76% से घटकर 1.77% हो गया है। सब्जियों पर खर्च 6.6% से घटकर 5.38% हो गया है।
इसके विपरीत, फलों पर व्यय 2.25% से बढ़कर 2.54% हो गया है और पेय पदार्थों और पके हुए खाद्य पदार्थों पर व्यय 7.9% से बढ़कर 9.62% हो गया है। यही चलन शहरों में भी देखने को मिला है. 2011-12 के दौरान शहरों में रहने वाले लोग अनाज पर 6.6% खर्च कर रहे थे, जो अब घटकर 3.62% रह गया है। दालों पर खर्च 1.93% से घटकर 1.21% हो गया है. इसके विपरीत, पके हुए भोजन और पेय पदार्थों पर खर्च 8.9% से बढ़कर 10.6% हो गया है।
ये आंकड़े देश में गरीबी की हकीकत बयां कर रहे हैं
इस सर्वे में सामने आए आंकड़े देश में गरीबी की असली तस्वीर भी पेश कर रहे हैं। नीति आयोग के सीईओ बीवीआर सुब्रमण्यम ने कहा है कि इन आंकड़ों पर गौर करें तो देश में गरीबी का स्तर 5% या उससे भी कम हो सकता है। उनका कहना है कि इस डेटा के मुताबिक अब गांवों में भुखमरी की कोई स्थिति नहीं है। उन्होंने इस दावे को खारिज कर दिया कि गांवों में खर्च कम हो रहा है और उनकी स्थिति में कोई बदलाव नहीं आया है।
उन्होंने कहा, मेरा मानना है कि देश में गरीबी अब इकाई के आंकड़े तक पहुंच गई है और इस आंकड़े के हिसाब से देखें तो यह 5% है। उन्होंने कहा कि लोग 2011-12 की तुलना में 2.5 गुना अधिक खर्च कर रहे हैं और यह भारत की सफलता की कहानी है, जिससे पता चलता है कि देश की समृद्धि कुछ लोगों तक सीमित नहीं है बल्कि इससे बड़ी आबादी को फायदा हो रहा है। गौरतलब है कि इससे पहले भी एक रिपोर्ट में कहा गया था कि पिछले 9 साल में 25 करोड़ लोग गरीबी से बाहर आए हैं।