महाराष्ट्र : ओबीसी आंदोलन के लिए मैदान में क्यों उतरे दिग्गज नेता?

छगन भुजबल के नेतृत्व में ओबीसी नेताओं की बैठक

राजकरण | राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के अजित पवार गुट के नेता छगन भुजबल ने सहयोगी महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे द्वारा मराठा कोटा की मांग स्वीकार करने के खिलाफ 1 फरवरी को विधायकों, सांसदों और तहसीलदारों के आवासों के बाहर विरोध प्रदर्शन और आंदोलन की घोषणा की है, यानी सत्ता में रहते हुए भी वे छगन भुजबल आंदोलन का रास्ता चुन रहे हैं।

शिंदे सरकार ने मराठा आरक्षण आंदोलन के नेता मनोज जारांगे पाटिल को बहुत सफलतापूर्वक मना लिया था। हालांकि, अब उस आंदोलन और उसे खत्म करने के तरीके पर सवाल उठ रहे हैं, ओबीसी आंदोलन 1 फरवरी से शुरू होगा। 3 फरवरी को महाराष्ट्र दौरे की योजना बनाई गई है।

ओबीसी नेताओं ने अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लोगों से अपने आंदोलन में शामिल होने का आह्वान किया है। ओबीसी नेताओं ने दलित संगठनों को जारी संदेश में कहा कि आरक्षण पर नया खतरा मंडरा रहा है। इसलिए अगर हम अभी नहीं जागे तो सब कुछ छिन जाएगा।

ओबीसी नेता छगन भुजबल ने अपने आधिकारिक आवास पर एक बैठक की जिसमें ओबीसी विधायक, नेता और अन्य लोग शामिल हुए। महाराष्ट्र के खाद्य, नागरिक आपूर्ति और उपभोक्ता संरक्षण मंत्री भुजबल ने कहा कि इस बैठक में एक प्रस्ताव पारित किया गया जिसमें 26 जनवरी को मराठा आरक्षण के मसौदे को स्वीकार करने वाले मुख्यमंत्री की अधिसूचना को रद्द करने की मांग की गई।

आपको बता दें कि मराठा आरक्षण कार्यकर्ता मनोज जारांगे शिंदे सरकार ने मांगों को स्वीकार कर लिया है। मंत्री छगन भुजबल ने अपनी ही सरकार के खिलाफ आंदोलन की घोषणा करते हुए कहा, ”हम मराठा समुदाय को आरक्षण का लाभ देने के राज्य सरकार के मौजूदा फैसले के खिलाफ विरोध करने के लिए विधायकों, सांसदों और तहसीलदारों के आवास के बाहर इकट्ठा होंगे, वे अवैध तरीके अपना रहे हैं। हम इसके खिलाफ ओबीसी को एकजुट करने के लिए मराठवाड़ा से एक यलगार रैली भी आयोजित करेंगे।”

महाराष्ट्र के सीएम शिंदे के ऐलान के बाद ओबीसी नेता एकजुट नजर आए। शिंदे ने ऐलान किया है कि जब तक मराठों को आरक्षण नहीं मिल जाता, तब तक उन्हें ओबीसी को मिलने वाले सभी लाभ दिए जाएंगे। सरकार द्वारा एक मसौदा अधिसूचना जारी की गई थी जिसमें मराठा समुदाय के सदस्यों के सभी रक्त संबंधियों को कुनबी के रूप में मान्यता दी गई थी, जिनके कुनबी जाति के रिकॉर्ड पाए गए हैं, जिससे वे कुनबी (ओबीसी) प्रमाण पत्र का दावा करने के पात्र बन गए हैं। बन गए हैं।

भुजबल ने कहा “राज्य में ओबीसी को मूर्ख बनाने के लिए कदम उठाए गए हैं। जब कानून में स्पष्ट परिभाषा दी गई है, तो अवैध रूप से बदलाव क्यों किए गए हैं? ओबीसी में मराठों को शामिल करने से मौजूदा पिछड़ा वर्ग बाहर हो जाएगा और वे आरक्षण के लाभ इससे वंचित हो जाएंगे।”

ओबीसी नेताओं में छगन भुजबल शामिल हैं, जो अजीत पवार के नेतृत्व वाले एनसीपी गुट से हैं, जो पिछले जुलाई में सरकार में शामिल हुए थे। भुजबल मराठा कोटा मुद्दे से निपटने के शिंदे के नेतृत्व वाली सरकार के आलोचक रहे हैं। लेकिन जब अधिसूचना जारी हो रही थी तो उन्होंने कोई विरोध नहीं किया।

इस मुद्दे पर उन्होंने अभी तक राज्य मंत्रिमंडल से इस्तीफा नहीं दिया है। इसीलिए उनके इस कदम को फिलहाल संदेह की नजर से देखा जा रहा है। क्योंकि सरकार में मंत्री रहते हुए अपनी ही सरकार के खिलाफ आंदोलन करना कैसे संभव है? क्या वे उम्मीद कर रहे हैं कि शिंदे उन्हें बर्खास्त करेंगे? जिसकी संभावना कम है।

क्या बीजेपी वाले भी नाराज हैं?

ओबीसी नेताओं में बीजेपी नेता भी शामिल हैं जो मराठा कोटा देने के सरकार के फैसले से सहमत नहीं हैं। छगन भुजबल की बैठक में बीजेपी एमएलसी राम शिंदे और गोपीचंद पडलकर भी मौजूद थे और उन्होंने भुजबल की मांगों और प्रस्तावों का समर्थन किया है।

लेकिन यहीं संदेह पैदा होता है कि बेहद अनुशासन वाली पार्टी बीजेपी के नेता अपनी ही सरकार की पार्टी लाइन के खिलाफ कैसे जा सकते हैं, कुल मिलाकर स्थिति अभी स्पष्ट नहीं हो पाई है। बिहार में नीतीश की पलटी का उदाहरण देखें तो नेताओं की पलटी पर यकीन करना मुश्किल है।

मंत्री छगन भुजबल खुलेआम खुद के सरकार पर आरोप लगा रहे हैं, लेकिन पहले तो वह चुप रहे। भुजबल का कहना है कि हमें (ओबीसी) बताया गया था कि ओबीसी के आरक्षण को नहीं छुआ जाएगा। लेकिन राज्य (सरकार) अब मराठों को कुनबी जाति प्रमाण पत्र जारी करके उन्हें पिछले दरवाजे से प्रवेश देने की कोशिश कर रही है। यह कदम अधिक से अधिक लोगों से आरक्षण का लाभ छीन लेगा। छगन भुजबल का कहना है कि 300 ओबीसी जातियां हैं जिन पर इसका सीधा असर पड़ेगा।