बीजेपी की रणनीति : कांग्रेस नेताओं को तोड़कर पार्टी को कमजोर करो, राज करो

PM modi-Rahul Gandhi-Amit Shaha

Politics| महाराष्ट्र के एक कद्दावर नेता मिलिंद देवड़ा कांग्रेस का दामन छोड़कर शिंदे- सेना में शामिल हो गए। उसके बाद कई भाजपा नेताओ ने कांग्रेस के कई नेता जल्द भाजपा में शामिल होने की भविष्यवाणी कर रहे है। लेकिन राजनीती में एक चर्चा जोरों से है की एक के बाद एक नेता कांग्रेस क्यों छोड़ रहे हैं? वो भी राहुल के सबसे करीबी होने के बावजूद? खासकर वे नेता जो बहुत कम उम्र में मंत्री बने और जिनके परिवार कट्टर कांग्रेस समर्थक थे? और इसमें भी कांग्रेस छोड़ने वाले नेताओं की भाषा एक जैसी है।

राहुल गांधी की आलोचना और पीएम मोदी की तारीफ। यहां तक कि एकनाथ शिंदे की पार्टी में शामिल हुए मिलिंद देवड़ा की भाषा भी ऐसी ही है। क्या यह जानबूझकर किया जा रहा है और राहुल और कांग्रेस को निशाना बनाया जा रहा है?

कम से कम बीजेपी की एक रणनीति तो ऐसी ही लगती है। दरअसल, बीजेपी ने विपक्षी दलों के नेताओं को लेकर ऐसी योजना बनाई है। इसमें खासतौर पर कांग्रेस नेताओं को बीजेपी में शामिल करने की रणनीति तय की गई है। इसका मकसद क्या है और इससे बीजेपी को क्या फायदा होगा, यह जानने से पहले आइए जानते हैं कि बीजेपी किस तरह की तैयारी कर रही है।

सत्तारूढ़ भाजपा ने आगामी लोकसभा चुनावों के लिए विभिन्न राजनीतिक दलों, खासकर कांग्रेस से कई नेताओं को शामिल करने की योजना बनाई है। रिपोर्ट्स के मुताबिक, बीजेपी ने संभावित विपक्षी उम्मीदवारों को शामिल करने से पहले उनकी जांच और चयन करने के लिए भूपिंदर यादव, हिमंत बिस्वा सरमा, विनोद तावड़े और बीएल संतोष का एक पैनल गठित किया है।

इंडियन एक्सप्रेस ने सूत्रों के हवाले से बताया कि जहां इन नए लोगों को शामिल करने के पीछे मुख्य उद्देश्य पार्टी को मजबूत करना होगा, वहीं बीजेपी अपने पाले में आने के लिए नेताओं का चयन करते समय विपक्ष को कमजोर करना भी चाहेगी। बीजेपी के एक नेता ने एक अंग्रेजी अखबार को बताया कि बीजेपी उन क्षेत्रों में पार्टी को मजबूत करने के लिए नए लोगों का स्वागत कर रही है।

जहां वह चुनावी और वैचारिक रूप से कमजोर है। चुनाव से पहले इस तरह के जुड़ाव कार्यक्रम समग्र चुनावी माहौल को और बेहतर बनाएंगे। लेकिन इस बार मुख्य निशाना कांग्रेस होगी और प्रमुख प्रभावशाली नेताओं के बाहर जाने से वह पार्टी एक खास क्षेत्र में कमजोर हो जाएगी।

राहुल गांधी भी निशाने पर

कांग्रेस नेता राहुल गांधी भी बीजेपी के निशाने पर हैं। राहुल खुद को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी नीतियों के बड़े आलोचक के तौर पर पेश कर रहे हैं। वह मोदी के खिलाफ एक बड़ा विपक्षी चेहरा बनकर उभर रहे हैं। बीजेपी की रणनीति राहुल को राजनीतिक रूप से कमजोर करने और पार्टी में उनके प्रभाव को कमजोर करने की भी रही है।

हाल के वर्षों में, भाजपा ने पहले ही राहुल की टीम से कई युवा नेताओं को शामिल किया है और उन्हें प्रमुख पद दिए हैं। इनमें ज्योतिरादित्य सिंधिया, जितिन प्रसाद, आरपीएन सिंह जैसे नेता शामिल हैं।

हालांकि बीजेपी की ओर से सचिन पायलट और मिलिंद देवड़ा को शामिल करने की कुछ कोशिशें की गईं, लेकिन बात नहीं बन पाई। हालाँकि, देवड़ा अंततः पिछले रविवार को एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली शिवसेना में शामिल हो गए। वह महाराष्ट्र में बीजेपी की सहयोगी पार्टी है।

कांग्रेस नेतृत्व पायलट को बनाए रखने में कामयाब रहा और उन्हें एआईसीसी के महासचिव के पद पर पदोन्नत किया गया। इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, एक बीजेपी नेता ने कहा, अब किसी भी नेता के कांग्रेस छोड़ने से राहुल गांधी पर बुरा असर पड़ेगा, इससे उनकी नाकामियां उजागर होंगी।

भले ही विपक्षी दल अभी तक गठबंधन की सीटों पर फैसला नहीं कर पाए हैं, लेकिन बीजेपी एक साथ कई रणनीतियों पर काम कर रही है। ध्रुवीकरण की राजनीति हो या विपक्षी दलों के नेताओं को पार्टी में शामिल करने की रणनीति। चाहे वह कैडर स्तर पर रणनीतिक तैयारी हो या संगठन को स्वस्थ रखने की तैयारी। राम मंदिर को लेकर तो कई रणनीतियां बनाई गई हैं, इसके अलावा दक्षिण भारत के लिए भी अलग से तैयारी की गई है।

लोकसभा चुनाव से पहले दक्षिणी राज्यों और बिहार और पश्चिम बंगाल जैसे अन्य राज्यों में लाभार्थियों तक पहुंचने के लिए ‘तमिल संगमम’ की तर्ज पर विशेष योजनाएं तैयार की गई हैं। पहले बीजेपी ने 160 लोकसभा सीटों को कमजोर बताया था, जिसे अब संशोधित कर 240 सीटें कर दिया गया है। इन सीटों के लिए बीजेपी ने बड़ी तैयारी की है, इन्हें क्लस्टर में बांटकर कई वरिष्ठ नेताओं को इसकी जिम्मेदारी दी गई है।

दरअसल, बीजेपी ने सभी 543 लोकसभा सीटों को 146 समूहों में बांटा है। यानी हर क्लस्टर में 3-4 सीटें होंगी, इकोनॉमिक टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, पार्टी के एक वरिष्ठ नेता को हर क्लस्टर के प्रभारी के तौर पर जिम्मेदारी दी गई है। मंगलवार को बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा और वरिष्ठ बीजेपी नेता अमित शाह के बीच हुई बैठक में यह फैसला लिया गया, बैठक में इन समूहों के प्रभारी और करीब 300 पार्टी नेता शामिल हुए।

बैठक के बाद पत्रकारों से बात करते हुए, भाजपा महासचिव विनोद तावड़े ने कहा कि शाह और नड्डा ने सभी क्लस्टर प्रभारियों के साथ चर्चा की और महिलाओं और पहली बार मतदाताओं तक कैसे पहुंचा जाए, इस पर भी चर्चा की गई। बैठक का फोकस इस बात पर था कि बूथ स्तर पर संगठन को कैसे मजबूत किया जाए, उन बूथों पर विशेष जोर दिया जाए जहां भाजपा अपेक्षाकृत कमजोर है। तावड़े ने कहा कि तमिल संगम की तरह, भाजपा ने दक्षिणी राज्यों, पश्चिम बंगाल और बिहार में मतदाताओं और लाभार्थियों तक पहुंचने के लिए विशेष योजनाएं और कार्यक्रम तैयार किए हैं।