शरद पवार के फैसले पर निर्भर महाविकास आघाडी का भविष्य, लोकसभा चुनाव से पहले बड़ा झटका

Sharad Pawar Resign

Sharad Pawar Resign: महाराष्ट्र ही नहीं अगला साल यानी 2024 देश की राजनीति के लिए काफी अहम है। अगले साल जहां देशभर में लोकसभा चुनाव होंगे, वहीं महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव होंगे, लेकिन उससे पहले मंगलवार को राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP) प्रमुख शरद पवार ने एक ऐसा ऐलान कर दिया, जिसने सभी को हैरान कर दिया।

इस फैसले ने जहां राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के नेता और कार्यकर्ताओं को चौंका दिया, वही दूसरी और महाविकास आघाडी का गठबंधन भारी सदमे में चला गया है। आज हाल ये है की गठबंधन में कांग्रेस के पास जनाधार नहीं है, उद्धव ठाकरे के पास पार्टी नहीं है, और एनसीपी के पास फिलहाल अध्यक्ष नहीं है। महाराष्ट्र की राजनीती आज बड़े दुविधा में है।

जैसे पवार ने एनसीपी प्रमुख के पद से इस्तीफा देने का फैसला किया, ये फैसला काफी अहम माना जा रहा है क्योंकि ये शरद पवार ही हैं जिन्होंने महाराष्ट्र में बिल्कुल विपरीत विचारधारा वाली पार्टियों को साथ लाया।  साल 2019 में विधानसभा चुनाव के बाद शिवसेना, कांग्रेस और एनसीपी के सहयोग से महाविकास अघाड़ी का गठन किया गया, जिसके बाद उद्धव ठाकरे मुख्यमंत्री बने।

हालांकि ढाई साल तमाम विवादों से जूझने के बाद शिवसेना बंट गई और पिछले साल बीजेपी और एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाले शिवसेना गुट ने सरकार बनाई। अब जब लोकसभा चुनाव से पहले शरद पवार ने इस्तीफा दिया तो इसके कई मायने निकाले जा रहे हैं।

उथल-पुथल से गठबंधन कमजोर होगा

महा विकास अघाड़ी की टीमें पिछले कई दिनों से राज्य में रैलियां कर रही हैं, जिसमें भारी भीड़ जुट रही है. ऐसे में माना जा रहा था कि अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव में बीजेपी को महा विकास अघाड़ी से कड़ी टक्कर मिल सकती है. राज्य में 48 सीटें हैं, जो एनडीए और यूपीए दोनों के लिए सरकार बनाने के लिए महत्वपूर्ण हैं।

पिछले चुनाव में राज्य में एनडीए को प्रचंड जीत मिली थी। बीजेपी ने 25 सीटों पर चुनाव लड़ा और 23 सीटों पर जीत हासिल की, जबकि शिवसेना ने 23 में से 18 सीटों पर जीत हासिल की. NCP को चार और कांग्रेस और AIMIM को एक ही सीट मिल सकी थी। उद्धव के नेतृत्व वाली शिवसेना का बीजेपी से अलग होना एक बड़ा झटका माना जा रहा था.

हालांकि भाजपा ने एकनाथ शिंदे गुट को समर्थन देकर प्रभाव बनाने की कोशिश की है, लेकिन हाल के दिनों में एमवीए की रैलियों से ऐसा लगता है कि उद्धव की शिवसेना के पास अभी भी काफी समर्थन है। अब शरद पवार के इस्तीफे के बाद साफ है कि एमवीए गठबंधन में उथल-पुथल मचने वाली है. अब तीनों दलों को अगले लोकसभा और विधानसभा चुनाव तक साथ रखना किसी चुनौती से कम नहीं होगा। इसका सीधा फायदा बीजेपी को चुनाव में मिल सकता है।

अजित पवार की बीजेपी से बढती नजदीकियां  

साल 2019 में महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के बाद का वह दिन याद कीजिए जब एनसीपी नेता अजीत पवार ने एक सुबह सबको चौंका दिया था। अजित पवार के साथ पूर्व मुख्यमंत्री और बीजेपी नेता देवेंद्र फडणवीस ने शपथ ली. इससे न केवल महाराष्ट्र बल्कि देश की राजनीति में भी हलचल मच गई।

अजित पवार के पास एनसीपी के कई विधायकों के नामों की सूची थी और उन्होंने दावा किया था कि ये विधायक बीजेपी के साथ मिलकर सरकार बनाने को तैयार हैं।  शरद पवार ने हालांकि सावधानी से भतीजे अजित पवार से बात की और तय हुआ कि एनसीपी, शिवसेना और कांग्रेस मिलकर सरकार बनाएंगे।

इसके बाद जब ढाई साल सरकार चलाने के बाद एमवीए की सरकार गिरी तो फिर से अजित पवार की बीजेपी से नजदीकियों की खबरें आने लगीं. सूत्रों के हवाले से कहा गया था कि अगर अजित पवार समेत एनसीपी में कोई धड़ा है तो वह बीजेपी के साथ मिलकर सरकार बनाना चाहता है. हालांकि आधिकारिक तौर पर अजित पवार इससे इनकार करते रहे.

टूट न जाये विपक्ष की उम्मीदें?

शरद पवार के इस्तीफे को लेकर बैठकों का दौर जारी है।  एनसीपी के तमाम कार्यकर्ताओं, नेताओं का कहना है कि शरद पवार को अपना इस्तीफा वापस ले लेना चाहिए। इस बीच मंगलवार शाम एक अहम बैठक के बाद अजित पवार ने दावा किया कि शरद पवार को अपने फैसले पर दोबारा विचार करने में दो से तीन दिन लगेंगे।

अगर शरद पवार अपना फैसला वापस लेते हैं तो भविष्य में एमवीए के टूटने की संभावना काफी कम हो जाएगी, लेकिन अगर वह इस्तीफा देने पर अड़े हैं तो यह विपक्ष के लिए किसी बड़े झटके से कम नहीं होगा. NCP में शरद पवार के बाद अजित पवार अध्यक्ष बनने के सबसे बड़े दावेदारों में से एक हैं।

अगर वह अध्यक्ष बनते हैं, तो यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या एनसीपी भविष्य में एमवीए का हिस्सा बनी रहेगी। वहीं, शरद पवार के इस्तीफे के बाद कई जानकार यह सवाल भी उठा रहे हैं कि क्या उन्होंने लोकसभा और विधानसभा चुनाव से पहले उद्धव ठाकरे की शिवसेना और महाराष्ट्र कांग्रेस के साथ ‘राजनीती का खेल’ तो नहीं किया? अगर अजीत अध्यक्ष बनते हैं तो वे जो भी फैसले लेंगे उनकी जिम्मेदारी उनकी होगी न कि शरद पवार की होगी।

वहीं, कई जानकारों का यह भी मानना है कि शरद पवार ने इस इमोशनल कार्ड को खेलकर एनसीपी में किसी भी संभावित दरार को पूरी तरह से खत्म कर दिया है। उनके अचानक इस्तीफे की घोषणा के बाद लगभग पूरी पार्टी उनसे फैसला वापस लेने की मांग कर रही है।  अगर वह अपना मिजाज और फैसला बदलते हैं तो साफ हो जाएगा कि अजित पवार को लेकर तमाम कयासों के बावजूद शरद पवार अभी भी एनसीपी पर हावी हैं और भविष्य को लेकर सारे फैसले वही लेंगे।

इस तिकड़म बाजी में सारे विपक्ष की जान अटक गई है, अगर पवार फैसले पर अड़ जाते है और अगर अजित पवार अध्यक्ष बनते है; तो महाविकास आघाडी का भविष्य नही है। अजित पवार का मिजाज और फैसलों का झुकाव बीजेपी की ओर रहेगा, जिसके चलते उद्धव सेना और कांग्रेस का रास्ता अलग होना तय है, महाविकास आघाडी का भविष्य अब शरद पवार के फैसले पर निर्भर है।