कांग्रेस और सपा का गठबंधन दिल की तसल्ली के लिए गुड का मलीदा

rahul gandi - akhilesh yadav

राजनीती : उत्तर प्रदेश के काशी में आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कांग्रेस के वरिष्ठ नेता राहुल गांधी को बहुत जोरदार थप्पड़ मारा हैजिसकी गूंज पूरे चुनाव तक राहुल गांधी को सुनाई देती रहेगी राहुल गांधी भारत जोड़ो न्याय यात्रा पर है आपको पता है, उनकी यात्रा इस समय उत्तर प्रदेश में चल रही है उत्तर प्रदेश में चलते हुए उन्होंने एक दिन पहले यह कहा कि, बनारस के जो युवा हैं वह नशेड़ी हो गए हैं उन्होंने कहा कि उन्होंने रात में देखा कि बाजा बज रहा था और युवा जमीन पर लेटे हुए नाच रहे थे

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज उसका जवाब दिया हालांकि प्रधानमंत्री कभी भी व्यक्तिगत आक्षेप करते नहीं लेकिन आज उनकी प्रतिक्रिया से ऐसा लगा कि उनके लिए अपने को रोकना बड़ा मुश्किल हो रहा था क्योंकि हमला काशी के युवाओं पर था, जो उनका चुनाव क्षेत्र है और उनको उनकी सबसे प्रिय जगह है वहां के युवाओं विशेष योगदान है वहां के युवाओं की प्रगती हो रही है उसको देखने के बाद कोई भी इस तरह की छोटी बात नहीं कर सकता

प्रधानमंत्री ने कहा कि, जिन्हे खुद के होश का पता नहीं, वह बनारस के युवाओं को नशेड़ी बता रहे हैं और यह पहला मौका नहीं है राहुल गांधी इससे पहले भी उत्तर प्रदेश के युवाओं का अपमान कर चुके हैं आपको याद होगा कि एक समय उन्होंने कहा था कि, उत्तर प्रदेश के युवा भिखारी हैं भीख मांगने मुंबई और महाराष्ट्र जाते हैं तो राहुल गांधी के लिए यह कोई नई बात नहीं है

वह क्या बोलते हैं, उनको समझ में आता है कि नहीं, उनको कोई समझानेवाला है कि नहीं यह तो पता नहीं लेकिन राहुल गांधी ने अपना जो किया, उनकी छवि पर इसका कोई असर नहीं पड़ेगा उनकी जो छवि बनी हुई है, उसमें कोई बेहतरी या सुधार होने की कोई उम्मीद दिखाई नहीं देती जब भी कुछ लोगों को गलतफहमी होती है कि, कुछ अच्छा और बेहतर हो रहा है, तब वो कुछ ऐसा बोल देते हैं। जिससे उनके किये कराये पर पानी फिर जाता है।

कल का उनका वाक्य है, ये उनकी जो टिप्पणी है यह पूरे लोकसभा चुनाव तक कांग्रेस पार्टी को सताती रहेगी कांग्रेस पार्टी को परेशान करती रहेगी लेकिन कांग्रेस के साथ-साथ उन्होंने समाजवादी पार्टी के अखिलेश यादव के लिए भी मुश्किल खड़ी कर दी है बनारस पूर्वांचल का मुख्य केंद्र है पूरे पूर्वांचल की राजनीतिक गतिविधियां बनारस से केंद्रित है यहां से नियंत्रित होती हैं

इसीलिए 2014 में प्रधानमंत्री ने उत्तर प्रदेश से जब चुनाव लड़ने का फैसला किया है आप को बता दें की यहां पर एक गड़वा घाट है यादवों का यादव समाज का मठ है सबसे बड़ा मठ है, सबसे प्रतिष्ठित मठ है इस मठ की यादव समाज में बड़ी प्रतिष्ठा है 2017 के चुनाव में अखिलेश यादव बनारस गए लेकिन इस मठ में नहीं गए

लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस मठ में गए थे 6 मार्च 2017 को उत्तर प्रदेश विधानसभा के चुनाव चल रहे थे, उस समय बड़ी प्रशंसा हुई थी मठ के जो पीठाधीश्वर हैं उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को आशीर्वाद दिया था और उनका व आशीर्वाद पूरे उत्तर प्रदेश के लिए था उत्तर प्रदेश में बीजेपी अपने सहयोगियों के साथ 403 में से 325 सीटें जीती थी

यह सब बातें अखिलेश यादव को जरूर याद होंगी भले ही उनको समझ में ना आ रहा हो कि राहुल गांधी ने उनका कितना बड़ा नुकसान किया है बनारस के युवाओं को नशेड़ी बताकर उन्होंने एक तरह से सारे उत्तर प्रदेश के युवाओं का अपमान किया है अभी-अभी ताजा-ताजा गठबंधन हुआ है अखिलेश यादव की पार्टी और कांग्रेस के बीच में यह दूसरी बार है 

इन दोनों पार्टियों के बीच गठबंधन का इससे पहले तक राजनीति में साथ तो कई बार समर्थन लिया है पहले भी मुलायम सिंह यादव ने अखिलेश यादव के पिता ने राजनीतिक रूप से कभी भी गठबंधन नहीं किया 2017 में भी वह इस गठबंधन के खिलाफ थे लेकिन अखिलेश यादव ने गठबंधन किया और नारा लगा यूपी के दो लड़के

आप को अच्छे से पता है की यूपी के दो लड़कों का जो हाल हुआ सबसे बुरा हुआदोनों लड़कों ने अपनी-अपनी पार्टी को डुबो दिया समाजवादी पार्टी उस समय 2017 में 224 सीटें थी विधानसभा में वह 224 से घटकर 47 पर आ गई कांग्रेस पार्टी जिसकी 26 सीटें थी, विधानसभा में वह घटकर 7 पर आ गई हालात ऐसे बने की दोनों पार्टियां डूब गई उससे अब तक वो उभर नहीं पाई हैं पिछले विधानसभा चुनाव में जरूर अखिलेश यादव की पार्टी को ज्यादा सीटें मिली है यानी उन्हें 111 सीटें मिली हैंलेकिन वह ओम प्रकाश राजभर के समर्थन के संभव हो सका है  

अब हालात बदल चुके है,  ओम प्रकाश राजभर अब उनके साथ नहीं है अखिलेश यादव अकेले पड़ने के डर से और कांग्रेस को डराकर उन्होंने यह समझौता किया है  जब लग रहा था कि कांग्रेस समझौता नहीं करना चाहती अखिलेश यादव को एक डर हमेशा सता रहा है, कांग्रेस पार्टी के पास कोई वोट नहीं है, जो वो ट्रांसफर कर सके इसलिए कांग्रेस पार्टी साथ नहीं होगी, तो वोट में कमी आ जाएगी; ऐसी आशंका नहीं थी

उनको डर था कि जिस तरह का ट्रैक्शन कांग्रेस पार्टी को मुस्लिम समुदाय के बीच मिल रहा है उत्तर प्रदेश में उसकी वजह से अगर कांग्रेस अलग लड़ेगी तो मुस्लिम वोट काट सकती है वह यह नहीं चाहते थे कि उनका मुस्लिम वोट बटे और पार्टी को नुकसान उठाना पड़े उसको कंसोलिडेट करने के लिए उन्हें कांग्रेस से समझौता करना मजबूरी कारण बना है। जो कहा और बताया जा रहा है, वह एक छल है।

कांग्रेस और सपा के बीच में समझौता हुआ है, और जिस तरह से हुआ है, उससे आप अंदाजा लगा सकते हैं अगर आपने वो वीडियो देखा हो, अगर वो दृश्य देखा हो, तो आपको समझ में आ जाएगा कि बॉडी लैंग्वेज दोनों पार्टियों के नेताओं की क्या थी यह समझौता शीर्ष स्तर पर नहीं हुआ है, जो कैमरे के सामने जो लोग आए उसमें समाजवादी पार्टी की ओर से उदयवीर सिंह और कांग्रेस की ओर से अविनाश पांडे आये, जो उत्तर प्रदेश के प्रभारी हैं

समाजवादी पार्टी ने कांग्रेस पार्टी को ज्यादातर वो सीटें दी हैं, जो पिछले चुनाव में यानी 2019 के चुनाव में बसपा लड़ी थी जहां मुस्लिम बहुल सीटें दी हैं जिससे उसका मुस्लिम वोट इधर-उधर ना जाए, समाजवादी पार्टी और अखिलेश यादव को एक और डर है और वो डर कांग्रेस-बसपा कही एक ना हो जाये, और वह अभी बना हुआ हैवह डर अभी खत्म नहीं हुआ है और कांग्रेस पार्टी का बसपा से हात मिलाने का इंतजार भी अभी खत्म नहीं हुआ है

कांग्रेस पार्टी को बचाना है; तो कांग्रेस पार्टी को राहुल गांधी से मुक्ति पाना चाहिए।

कांग्रेस पार्टी को अभी भी इंतजार है, बसपा के साथ आने का और अखिलेश यादव को यही डर है कि अगर बसपा कांग्रेस के साथ आ गई तो उनके लिए ज्यादा बड़ी मुश्किल हो जाएगी फिर मुस्लिम वोट का बंटवारा निश्चित रूप से होगा और इसका सबसे बड़ा नुकसान समाजवादी पार्टी को होगा लेकिन बसपा अपने पत्ते खोल नहीं रही है

हालांकि मायावती साफ-साफ कह चुकी हैं सार्वजनिक रूप से कह चुकी हैं वो किसी गठबंधन में शामिल नहीं होंगी किसी से गठबंधन नहीं करेंगी लेकिन कांग्रेस पार्टी ने अभी तक उम्मीद छोड़ी नहीं है लेकिन एक और बात है, जिसकी ओर पता नहीं शायद आपका ध्यान गया कि नहीं पता नहीं जवाहरलाल नेहरू देश के पहले प्रधानमंत्री उनका चुनाव क्षेत्र था फूलपुर जो प्रयागराज के बगल में है जो पहले इलाहाबाद था, उसके बगल में है फूलपुर से उनके खिलाफ एक बार डॉक्टर राम मनोहर लोहिया भी लड़े थे, लेकिन वह चुनाव हार गए उसके बाद यानी जवाहरलाल नेहरू के निधन के बाद जो बाय इलेक्शन हुआ, वहा उस उस सीट से उनकी बहन विजयलक्ष्मी पंडित लड़ी थी और जीती थी उसके अलावा जब जनता पार्टी बनी तो जनता पार्टी की ओर से विजयलक्ष्मी पंडित चुनाव लड़ी थी और जीती थी

पहली बार ऐसा होगा और यह भी याद दिला दें 2019 का के लोकसभा चुनाव या 2017 के विधानसभा चुनाव के कैंपेन की शुरुआत राहुल गांधी ने फूलपुर से की थी या अपनी लीगेसी याद दिलाने के लिए यह यह जो वंशवाद होते हैंइनकी यह बड़ी खराब आदत होती है, लेकिन इनके लिए अपने लिए अच्छी आदत होती है याद दिलाते हैं कि हमारा वंश क्या था, हम क्या थे, तो वह अपनी लीगसी याद दिलाने की कोशिश करते हैं अपने वंश का जो प्रभाव था उसको बताकर आज वह प्रभाव पैदा करने की कोशिश करते हैं तो फूलपुर से उन्होंने कैंपेन की शुरुआत की थी

आज हालात ऐसे है की, पहली बार ऐसा होगा 1952 के बाद जब फूलपुर से कांग्रेस पार्टी का कोई उम्मीदवार नहीं होगा गांधी परिवार का तो बहुत पहले ही नाता टूट गया था विजयलक्ष्मी पंडित के बाद वहां से कोई गांधी परिवार का व्यक्ति जो है फूलपुर से चुनाव नहीं लड़ा लेकिन कांग्रेस पार्टी लड़ती रही है यह पहली बार होगा कि फूलपुर लोकसभा सीट से कांग्रेस का कोई प्रत्याशी 20224 के लोकसभा चुनाव में नहीं होगा यह होता है लीगेसी को भूलना, यह होता है जब आप दूसरों को नशेड़ी कहे और आपको खुद का होश ना हो तब यह होता है कैसे इस समझौते में कांग्रेस पार्टी मान गई कि फूलपुर की सीट उसके पास नहीं होगी

सच मानिये यह एक प्रतीकात्मक सीट है, कांग्रेस जीत जाएगी ऐसा नहीं है कांग्रेस किसी भी हालत में नहीं जीतेगी हमारा मानना है कांग्रेस पार्टी 2024 में लोकसभा की कोई सीट उत्तर प्रदेश से नहीं जीतने वाली है लेकिन कांग्रेस के लिए फूलपुर को भूल जाना यानी नेहरू की लीगेसी को भूल जाना हैनेहरू की राजनीति को भूल जाना हैअपने परिवार की लीगेसी को बचाए रखने की जो कोशिश सिमट कर रह गई है अमेठी और रायबरेली तक उस पर टिप्पणी है ये गठबंधन की घोषणा हो गई है समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के बीच में

लेकिन अभी तक अखिलेश यादव सामने नहीं आए हैं एक ट्वीट उन्होंने जरुर किया और कहा कि सौहार्दपूर्ण वातावरण में सब कुछ हो गया है लेकिन उन्होंने कांग्रेस पार्टी का नाम नहीं लिया इससे आप अंदाजा लगा सकते हैं कि दोनों पार्टियां सहज नहीं है इस गठबंधन से दोनों पार्टियों ने मजबूरी में गठबंधन किया है दोनों के दिल में डर है कही झूटी जिद के कारण अलग थलग ना पड़ जाए समाजवादी पार्टी की मजबूरी यह थी कि उसको किसी भी तरह से कांग्रेस रोकना था 

सपा के डर के दो बड़े कारण है, एक कांग्रेस के बहुजन समाज पार्टी के करीब ना चली जाए और दूसरा डर मुस्लिम वोटों के बंटवारा ना हो जाएसपा को मालूम था कि कांग्रेस पार्टी का अपना कोई जनाधार नहीं है लेकिन कांग्रेस पार्टी अगर अलग लड़ेगी, तो मुस्लिम बहुल इलाकों में समाजवादी पार्टी के वोट में सेंध लगाएगी और कांग्रेस को यह डर था कि वह पूरी तरह से अलग थलग पड़ जाएगी

उसके लिए अमेठी और रायबरेली में जीतना तो बहुत दूर की बात है लड़ना भी कठिन हो जाएगा तो इसलिए दोनों ने मजबूरी में दोनों ने एक दूसरे के डर से किया है अखिलेश यादव ने आखिर में जब देखा कि तमाम कोशिश के बावजूद कांग्रेस समझौते के लिए गठबंधन के लिए सीटों के तालमेल की बातचीत के लिए सामने गंभीर होकर नहीं आ रही है

तो उन्होंने अपनी तीसरी लिस्ट जारी की तीन लिस्ट में उन्होंने 31 उम्मीदवारों के नामों की घोषणा की है तिसरी लिस्ट में वाराणसी से सुरेंद्र पटेल का नाम घोषित किया। ऐसे में वाराणसी से कैंडिडेट घोषित करने का संकेत बड़ा साफ था, अखिलेश यादव की ओर से कि अब कोई गठबंधन की बात नहीं होगी जैसे ही यह घोषणा हुई कांग्रेस पार्टी तुरंत बातचीत की टेबल पर आ गई और सीटों का समझौता हो गया वाराणसी कांग्रेस को मिल गई और उसके अलावा जो सीटें मिली हैं उनमें से कांग्रेस के किसी भी सीट पर जीतने की कोई दूर-दूर तक संभावना नहीं है सिर्फ इतना है कि कांग्रेस के साथ गठबंधन के कारण सपा का मुस्लिम वोट शायद बचा रहे लेकिन बहुत बड़ा लेकिन है, यह निर्भर करता है कि मायावती और बहुजन समाज पार्टी अपने कैंडिडेट किस तरह के खड़े करती हैं। 

अगर बहुजन समाज पार्टी और भारतीय जनता पार्टी के बीच में कोई अंडरस्टैंडिंग है जिसका आरोप कांग्रेस और समाजवादी पार्टी समय-समय पर लगा ते रहते हैं तो आपको उसका संकेत या उसका प्रमाण देखने को मिलेगा बसपा की कैंडिडेट लिस्ट में यह बड़े आश्चर्य की बात है, जब से बहुजन समाज पार्टी बनी है तब से यह पहली बार हो रहा है कि चुनाव इतना करीब आ गया है और बसपा ने अपने उम्मीदवारों की घोषणा नहीं की है

इससे पहले तक होता यह था कि लगभग एक साल पहले बसपा अपने उम्मीदवारों की घोषणा कर देती थी लेकिन अभी तक बसपा के उम्मीदवारों की घोषणा नहीं हुई है इसका मतलब बसपा इंतजार कर रही कि समाजवादी पार्टी अपने उम्मीदवारों की घोषणा करें अगर बसपा मुस्लिम बहुल इलाकों में ताकतवर और मजबूत मुस्लिम उम्मीदवार खड़े करती है तो मुस्लिम वोटों का बंटवारा होना तय है कांग्रेस पार्टी का मानना है कि जाटव और मुस्लिम कॉम्बिनेशन ज्यादा प्रभावी हो सकता है जो सही भी है दूसरा कॉम्बिनेशन जो प्रभावी हो सकता है जो प्रभावी होता है, खासतौर से वेस्टर्न यूपी की बात करें तो वह है जाट और मुस्लिम कॉमिनेशन

चौधरी के जाने के बाद उसकी संभावना खत्म हो गई और मायावती के ना आने से कांग्रेस के लिए इस कॉम्बिनेशन की संभावना खत्म हो गई है, ऐसे में सिर्फ अब बची है समाजवादी पार्टी समाजवादी पार्टी के लिए मुश्किल यह है कि जहां यादव ज्यादा हैं, वहां मुसलमानों की संख्या कम है जहां मुसलमानों की संख्या ज्यादा है वहां यादवों की संख्या कम है तो उनका जो मुस्लिम यादव कॉमिनेशन है, उसमें जब तक कुछ एक वोट जुड़ता नहीं, चाहे वह छोटा ही हिस्सा हो तब तक बात बनती नहीं जैसे 2022 के विधानसभा चुनाव में ओमप्रकाश राजभर के जोड़ने से समाजवादी पार्टी को बहुत बड़ा फायदा हुआ

इस बार ऐसी कोई पार्टी है नहीं केवल कांग्रेस पार्टी है कांग्रेस के पास अपना ही वोट नहीं है, तो ट्रांसफर करने की तो बात ही नहीं होती इसलिए समाजवादी पार्टी बहुत बड़े संकट में है आप को बता दें की समाजवादी पार्टी का गठन 1992 में जब से हुआ था तब से अब तक का उसका सबसे संकट का दौर है उसके लिए अस्तित्व का सवाल है अगर इस लोकसभा चुनाव में 14 और 19 की जैसी स्थिति समाजवादी पार्टी की रहती है तो आप मानकर चलिए कि 2027 के विधानसभा चुनाव में उसके यादव वोट बैंक में भी बीजेपी सेंध लगाने में कामयाब हो सकती है इसीलिए मज़बूरी में किया गया कांग्रेस और सपा का गठबंधन दिल के तसल्ली के लिए गुड का मलीदा साबित होगा