Decision of Himanta Government of Assam | असम की हिमंत बिस्वा सरमा सरकार ने बड़ा फैसला लिया है। सरकार ने नौ दशक पुराने असम मुस्लिम विवाह और तलाक पंजीकरण अधिनियम को रद्द कर दिया है। यह कानून 1935 से लागू था। सीएम हिमंत बिस्वा सरमा ने कहा कि इससे असम में बाल विवाह रोकने में मदद मिलेगी।
सरकार ने कहा कि 1935 में बने इस कानून के आधार पर असम में 94 मुस्लिम रजिस्ट्रार (काजी) अभी भी मुस्लिम विवाहों का पंजीकरण और तलाक कर रहे थे। इन्हें भी रद्द कर दिया गया है। अब सरकार इन काजियों का रजिस्ट्रेशन रिकॉर्ड जब्त करेगी। इन काजियों को एकमुश्त 2 लाख रुपये का मुआवजा दिया जाएगा। असम सरकार के इस फैसले का विरोध भी हो रहा है। लेकिन मुख्यमंत्री का कहना है कि जब तक हिमंत बिस्वा सरमा जीवित हैं, राज्य में बाल विवाह की इजाजत नहीं दी जाएगी।
यह कानून क्या था?
यह कानून 1935 में बनाया गया था। इस कानून के तहत मुसलमानों के बीच शादी और तलाक की प्रक्रिया तय की गई थी। इस कानून में साल 2010 में संशोधन किया गया था। इसके बाद असम में शादी और तलाक का रजिस्ट्रेशन कराना जरूरी हो गया। इससे पहले यह वैकल्पिक था।
On 23.22024, the Assam cabinet made a significant decision to repeal the age-old Assam Muslim Marriages & Divorces Registration Act. This act contained provisions allowing marriage registration even if the bride and groom had not reached the legal ages of 18 and 21, as required…
— Himanta Biswa Sarma (@himantabiswa) February 23, 2024
इस कानून की धारा 8(1) में नाबालिगों से जुड़े विवाहों के पंजीकरण की अनुमति दी गई है। विशेषज्ञों का मानना है कि अगर मकसद बाल विवाह रोकना होता तो पूरे कानून को खत्म करने की जरूरत नहीं थी। इसे धारा 8(1) में संशोधन करके ही रोका जा सकता था।
अब क्या होगा?
यह कानून अब खत्म कर दिया गया है। अब मुसलमानों की शादी और तलाक का पंजीकरण विशेष विवाह अधिनियम 1954 के तहत किया जाएगा। अमन वदूद नाम के एक वकील ने समाचार एजेंसी पीटीआई को बताया कि अब शादियों को विशेष विवाह अधिनियम के तहत पंजीकृत किया जाएगा। इसके लिए 30 दिन पहले नोटिस देना होगा और कई दस्तावेज जमा करने होंगे।
विशेष विवाह अधिनियम सभी धर्मों के अनुयायियों पर लागू होता है। इसके तहत शादी के लिए लड़के की उम्र 21 साल और लड़की की उम्र 18 साल से ज्यादा होनी चाहिए। जबकि मुसलमानों में शादी की कोई कानूनी उम्र नहीं है। मुसलमानों का मानना है कि अगर कोई लड़का या लड़की शादी के लायक है तो उनकी तुरंत शादी कर देनी चाहिए। मुस्लिम कानून के अनुसार लड़कियों की शादी कम उम्र में ही कर देनी चाहिए। आमतौर पर यौवन 13 से 15 वर्ष का माना जाता है।
इसका असर क्या होगा?
इसका असर मुस्लिम समुदाय पर पड़ेगा. उनकी शादी और तलाक का पंजीकरण अब विशेष विवाह अधिनियम के तहत किया जाएगा। सरकार का दावा है कि इससे बाल विवाह में कमी आएगी। हालांकि, विशेषज्ञ इस बात से सहमत नहीं हैं. वकील अमन वदूद का मानना है कि इससे शादियों के रजिस्ट्रेशन में कमी आएगी। इससे अनाधिकृत काज़ियों की संख्या बढ़ेगी और बाल विवाह भी बढ़ेंगे।
कांग्रेस के लोग सुन लें, जब तक मैं, हिमंत बिस्वा सरमा ज़िंदा हूं, तब तक असम में छोटी बच्चियों का विवाह नहीं होने दूँगा। आप लोगों ने मुस्लिम समुदाय की बेटियों को बर्बाद करने की जो दुकान खोली है उन्हें पूरी तरह से बंद किए बिना हम चैन से नहीं बैठेंगे। pic.twitter.com/3yXLi4C23o
— Himanta Biswa Sarma (@himantabiswa) February 26, 2024
हैदराबाद के सांसद और एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने भी इस पर सवाल उठाए हैं. उन्होंने कहा कि अभी तक असम में शादियां काजी या रजिस्ट्रार के जरिए होती थीं और उन्हें ‘निकाहनामा’ सर्टिफिकेट मिलता था. लेकिन अब यह व्यवस्था ख़त्म हो गयी है। अब ये स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत होगा। उन्होंने कहा कि विशेष विवाह अधिनियम में धर्म का कोई प्रावधान नहीं है। वह एक धर्मनिरपेक्ष कानून है।
ओवैसी ने दावा किया कि अब मुस्लिम महिलाओं को शादी में दी जाने वाली ‘मेहर’ भी हटा दी गई है. उन्होंने कहा कि यदि निकाह विशेष विवाह अधिनियम के तहत पंजीकृत है, तो मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत विरासत का अधिकार नहीं मिलेगा। वहीं, मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा का कहना है कि अब तक काजी तलाक कराते थे, जिससे मुस्लिम महिलाओं को कुछ नहीं मिलता था। लेकिन जब तलाक कोर्ट के जरिए होगा तो महिलाओं को गुजारा भत्ता भी मिलेगा।
सरमा ने कहा कि कानून खत्म होने से तलाक लेना मुश्किल हो जाएगा. इसके अलावा नाबालिगों के विवाह का पंजीकरण भी नहीं हो सकेगा। सीएम सरमा ने कहा कि पुराने कानून में 5-6 साल के बच्चों की शादी की भी इजाजत थी. लेकिन अब ऐसा नहीं होगा।
बाल विवाह और असम
पिछले साल असम में बाल विवाह के खिलाफ अभियान चलाया गया था। इस दौरान चार हजार से ज्यादा लोगों को गिरफ्तार किया गया। असम सरकार की इस कार्रवाई को मुस्लिम विरोधी बताया गया। हालांकि, सरकार ने इन आरोपों को खारिज कर दिया।
सरकार ने उस वक्त कुछ आंकड़े भी उजागर किये थे, जिसमें दावा किया गया था कि मुस्लिम बहुल जिलों में बाल विवाह आम बात है. 80 फीसदी मुस्लिम आबादी वाले धुबरी जिले में 20 से 24 साल की करीब 51 फीसदी महिलाओं की शादी 18 साल की होने से पहले हो गई थी। ये आंकड़े एनएफएचएस-5 सर्वे से लिए गए हैं.
एक अन्य मुस्लिम बहुल जिला दक्षिण सलमारा बाल विवाह के मामले में दूसरे स्थान पर रहा। यहां 44.7 फीसदी लड़कियों की शादी 18 साल से पहले हो गई। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 (एनएफएचएस-5) के आंकड़ों से पता चलता है कि असम में 20 से 24 साल की उम्र की 32 प्रतिशत लड़कियों की शादी 18 साल की उम्र से पहले हो गई थी।
यह सर्वेक्षण 2019 और 2021 में दो चरणों में आयोजित किया गया था। इस सर्वे में यह बात भी सामने आई कि असम में 15 से 19 साल की उम्र की करीब 12 फीसदी महिलाएं या तो गर्भवती थीं या फिर मां बन चुकी हैं।
आजादी के 75 साल बाद भी बाल विवाह जैसी कुप्रथा पूरी तरह खत्म नहीं हुई है। देश की 70 फीसदी से ज्यादा आबादी गांवों में रहती है और गांवों में आज भी बाल विवाह का प्रचलन है। 2011 की जनगणना के मुताबिक, उस समय देश में 69.5 लाख लड़के और 51.6 लाख लड़कियां थीं जिनकी शादी तय उम्र से पहले हो गई थी।
सैंपल रजिस्ट्रार सर्वे की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक 2020 में देशभर में 1.9 फीसदी लड़कियां ऐसी थीं जिनकी शादी 18 साल से पहले हो गई थी। वहीं, करीब 28 फीसदी ऐसी लड़कियां थीं जिनकी शादी 18 से 20 साल की उम्र में हो गई थी। चार साल पहले यूनिसेफ की एक रिपोर्ट आई थी।
इस रिपोर्ट में बाल विवाह से जुड़े आंकड़े दिए गए थे। इस रिपोर्ट में दावा किया गया था कि दुनिया भर में 65 करोड़ से ज्यादा महिलाएं ऐसी हैं जिनकी शादी तय उम्र से पहले हो गई थी। इनमें से 28.5 करोड़ महिलाएं दक्षिण एशिया में हैं। इसमें से भी 22.3 करोड़ से ज्यादा अकेले भारत में हैं। यानी भारत ‘बालिका वधुओं’ का बड़ा घर है। इस मामले में भारत की स्थिति पाकिस्तान और श्रीलंका से भी खराब थी।
यूनिसेफ की रिपोर्ट में बताया गया कि भारत में 20 से 24 साल की 27% लड़कियों की शादी 18 साल से पहले हो गई थी. वहीं, पाकिस्तान में ऐसी 21% लड़कियां हैं। वहीं, भूटान में 26% और श्रीलंका में 10% लड़कियां ऐसी थीं। भारत से आगे बांग्लादेश (59%), नेपाल (40%) और अफगानिस्तान (35%) थे।
बाल विवाह पर क्या है क़ानून?
बाल विवाह न केवल भारत में बल्कि दुनिया के कई देशों में आज भी प्रचलित है। जब पति/पत्नी में से कोई एक नाबालिग हो तो विवाह को बाल विवाह माना जाता है। हमारे देश में शादी की कानूनी उम्र लड़कों के लिए 21 साल और लड़कियों के लिए 18 साल है। अगर कोई इस निर्धारित उम्र से कम उम्र में शादी करता है तो उसे बाल विवाह माना जाएगा।
बाल विवाह रोकने के लिए हमारे देश में आजादी के पहले से ही कानून है। यह कानून पहली बार 1929 में लाया गया था। उस समय शादी की कानूनी उम्र लड़कों के लिए 18 साल और लड़कियों के लिए 14 साल थी। 1978 में इस कानून में संशोधन कर लड़कों की उम्र 21 साल और लड़कियों की 18 साल कर दी गई।
2006 में इसमें फिर से संशोधन किया गया और इसे संज्ञेय और गैर-जमानती अपराध बना दिया गया। इस कानून में फिर से संशोधन की तैयारी चल रही है, जिसमें शादी के लिए लड़कियों की उम्र 21 साल तक बढ़ाई जा सकेगी। 2006 में बाल विवाह निषेध कानून बनाया गया। यह बाल विवाह को अपराध बनाता है। इस कानून में प्रावधान है कि बाल विवाह के बारे में जानकारी रखने वाला कोई भी व्यक्ति या संगठन इसे रोकने के लिए अदालत से आदेश ला सकता है।
अगर फिर भी बाल विवाह होता है तो दोषी पाए जाने पर दो साल की सजा और एक लाख रुपये का जुर्माना हो सकता है। ऐसे मामलों में अगर शादी हो भी जाती है तो अदालत उसे ‘अमान्य’ घोषित कर देती है। इस कानून की धारा 9 में कहा गया है कि अगर 18 साल से अधिक उम्र का कोई वयस्क पुरुष किसी बच्ची से शादी करता है तो दोषी पाए जाने पर उसे दो साल तक की कैद या 1 लाख रुपये का जुर्माना या दोनों से दंडित किया जा सकता है।
वहीं, अगर कोई व्यक्ति बाल विवाह कराता है तो दोषी पाए जाने पर उसे दो साल तक की जेल और 1 लाख रुपये का जुर्माना लगाया जाएगा. इसमें माता-पिता और रिश्तेदार भी शामिल हैं। इतना ही नहीं, अगर अदालत बाल विवाह को शून्य घोषित कर देती है तो लड़की के भरण-पोषण की जिम्मेदारी पुरुष की होती है। अगर लड़का नाबालिग है तो उसके माता-पिता या अभिभावक लड़की को गुजारा भत्ता देंगे।
यह भरण-पोषण भत्ता न्यायालय द्वारा तय किया जाएगा। इसके अलावा अगर बाल विवाह से कोई बच्चा पैदा होता है तो उसके भरण-पोषण का जिम्मा भी पुरुष को ही उठाना होगा। यदि पुरुष नाबालिग है, तो उसके माता-पिता या अभिभावक भरण-पोषण प्रदान करेंगे।