रिपोर्ट : क्या 22वीं सदी के अंत तक भारत में हिंदू समुदाय ‘अल्पसंख्यक’ हो सकता है?

Report: भारत को हिंदू राष्ट्र बनाने की मांग आये दिन होते रहती है, इसके पीछे राजनीती होने का दावा विपक्ष आये दिन करता है। लेकिन क्या वाकई में हिंदू खतरे में है, इसका किसी के पास कोई ठोस सबूत नहीं है। 2050 तक भारत दुनिया में सबसे ज्यादा मुस्लिम आबादी वाला देश बन जाएगा, ये दावा हमेशा किया जाता है, किया जाता रहा है।

इसके अलावा इस सदी के अंत तक इस्लाम को माननेवाले लोगो की संख्या दुनिया में सबसे अधिक होगी। डेटा एनालिसिस के लिए जानी जानेवाली अमेरिकी संस्था प्यू रिसर्च सेंटर (PRC) ने कुछ समय पहले अपनी एक रिपोर्ट में यह बात कही थी। भारत वर्तमान में सबसे बड़ी मुस्लिम आबादी वाले देशों की सूची में इंडोनेशिया के बाद दूसरे स्थान पर है।

पीआरसी के मुताबिक, 2010 में दुनिया की 23 फीसदी आबादी मुस्लिम समुदाय की थी। इस अर्थ में वे ईसाइयों के बाद दूसरे स्थान पर हैं। लेकिन समुदाय की तेजी से बढ़ती आबादी के कारण 21वीं सदी के अंत तक उनकी आबादी सबसे ज्यादा होगी।

पीआरसी ने मुस्लिम समुदाय की जनसंख्या में वृद्धि के दो मुख्य कारण बताए हैं- पहला यह कि इसकी जनसंख्या वृद्धि दर अन्य धर्मों के लोगों की तुलना में अधिक है। वैश्विक स्तर पर इस समुदाय में प्रति महिला प्रजनन दर 3.1 है जबकि अन्य धर्मों में यह आंकड़ा 2.3 है।

Report: Could Hindu community be minority in India by end of 22nd century?

मुस्लिम समुदाय की जनसंख्या में वृद्धि का दूसरा कारण यह है कि इसकी जनसंख्या अपेक्षाकृत युवा है। 2010 में मुसलमानों की औसत आयु केवल 23 वर्ष थी जबकि गैर-मुस्लिमों की औसत आयु 30 वर्ष थी। संगठन का मानना है कि सबसे ज्यादा प्रजनन दर और सबसे ज्यादा युवा आबादी के कारण मुसलमानों की आबादी तेजी से बढ़ सकती है।

इस रिपोर्ट के अनुमानों का दायरा इस सदी के अंत तक जाता है। रिपोर्ट के आंकड़ों के मुताबिक, तब तक भारत दुनिया में सबसे ज्यादा मुस्लिम आबादी वाला देश बनने के 50 साल पूरे कर चुका होगा। तो क्या ऐसा हो सकता है कि तब तक या कुछ समय बाद भारत में मुसलमानों की संख्या हिंदुओं से अधिक हो जाएगी?

यदि हिन्दू नहीं जागे तो वे अपने ही देश में अल्पसंख्यक हो जायेंगे, यह और ऐसे ही बयान हिन्दू संगठनों द्वारा प्राय: दोहराये जाते हैं। उनका यहां तक दावा है कि मुसलमान 2035 तक ही जनसंख्या के मामले में हिंदुओं को पीछे छोड़ सकते हैं। घर वापसी अभियान और धर्मांतरण जैसे कुछ मुद्दे जो अक्सर चर्चा में रहते हैं, उनके कुछ तार इस दावे से भी जुड़ते हैं। अधिक से अधिक बच्चे पैदा करने की बात कहकर हिंदुओं को भी प्रोत्साहित किया जाता है।

यदि विभिन्न स्रोतों से एकत्र किए गए आंकड़ों का विश्लेषण किया जाता है, तो यह संकेत मिलता है कि यह अगले 100 वर्षों के लिए दूर-दूर तक संभव नहीं है, अकेले 2035 को छोड़ दें। यह विश्लेषण इंगित करता है कि कुल जनसंख्या में मुसलमानों का अनुपात बढ़ेगा लेकिन इसकी संभावना नहीं है तब तक भारत में उनकी जनसंख्या हिंदुओं से अधिक हो जाएगी।

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भारतीय जनसंख्या अध्ययन संस्थान (आईआईपीएस) की 2010 में आई एक रिपोर्ट भी हिंदुत्ववादी संगठनों के प्रचार का आधार है। इसमें कहा गया है कि 1961 में देश की कुल आबादी में हिंदुओं की हिस्सेदारी 83.5 फीसदी थी। 2011 की सामाजिक-आर्थिक जनगणना के आंकड़े बताते हैं कि उस साल तक यह आंकड़ा 79.8 हो गया था।

यह 3.7 फीसदी की गिरावट है। इसके विपरीत, 1961 में कुल जनसंख्या में मुसलमानों की हिस्सेदारी 10.7 प्रतिशत थी, जो 2001 में 2.7 प्रतिशत बढ़कर 13.4 प्रतिशत हो गई। 2011 के आंकड़े बताते हैं कि भारत की कुल जनसंख्या में मुस्लिम समुदाय की हिस्सेदारी बढ़कर 14.2 प्रतिशत हो गया।

प्यू की एक अन्य रिपोर्ट में कहा गया है कि 2030 तक भारत में मुसलमानों की आबादी 23.6 करोड़ हो जाएगी। 2010 में यह 17.7 करोड़ थी। जब वे वहां थे तब अब निष्क्रिय हो चुके योजना आयोग ने एक रिपोर्ट जारी की थी। इसके आँकड़ों के अनुसार 2050 तक भारत की जनसंख्या एक अरब 63 करोड़ तक पहुँचने की बात कही गई थी। कई विशेषज्ञों का मानना है कि तब तक कुल आबादी में मुस्लिम आबादी का हिस्सा बढ़कर करीब 16 फीसदी हो सकता है। लेकिन फिर भी मुस्लिम आबादी का आंकड़ा 26 करोड़ के आसपास ही होगा।

जनसंख्या वृद्धि इस बात पर निर्भर करती है कि एक महिला अपने जीवनकाल में कितने बच्चों को जन्म देती है। इस संदर्भ में, विशेषज्ञ कुल प्रजनन दर या कुल प्रजनन दर (टीएफआर) द्वारा किसी समाज के औसत आंकड़े को परिभाषित करते हैं। यदि कोई महिला अपने जीवनकाल में दो बच्चों को जन्म देती है तो इसका मतलब है कि माता-पिता की मृत्यु के बाद ये बच्चे उनकी जगह ले लेंगे।

अर्थात यदि प्रजनन दर दो है तो यह जनसंख्या के स्थिरीकरण का संकेत है। हालाँकि, थोड़ी सी छूट लेने पर, जनसंख्या की स्थिरता के लिए यह आंकड़ा 2.1 माना जाता है। 2011 में भारत के मुस्लिम समुदाय के लिए प्रजनन दर का आंकड़ा 2005-06 में 3.4 की तुलना में 2.7 था। यानी हिंदुओं के साथ-साथ मुस्लिम समुदाय की आबादी बढ़ने की रफ्तार भी कम हो रही है।

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस) के आंकड़े भी इसे बल देते हैं। पहला एनएफएचएस 1991-92 में, दूसरा 1998-99 में, तीसरा 2005-06 में और चौथा 2015-16 में आयोजित किया गया था। 1991-92 में हिंदू महिलाओं के लिए प्रजनन दर 3.3 दर्ज की गई थी, जबकि मुस्लिम महिलाओं के लिए यह आंकड़ा 4.41 था।

इसके बाद 1998-99 में यह दर हिंदुओं के लिए 2.78 और मुसलमानों के लिए 3.59 दर्ज की गई। 2005-06 में यह आंकड़ा क्रमशः 2.59 और 3.4 था, जबकि 2015-16 में यह क्रमशः 2.1 और 2.6 था। यानी हिंदू महिलाओं के साथ-साथ मुस्लिम महिलाओं की प्रजनन दर में भी लगातार कमी आई है और अक्सर यह कमी हिंदू महिलाओं की तुलना में अधिक रही है।

इस आंकड़े को दूसरे तरीके से भी देखा जा सकता है। 1998-99 में जहां 1000 हिंदू महिलाओं ने 278 बच्चों को जन्म दिया, वहीं 2005-06 में यह आंकड़ा 19 से घटकर 259 हो गया। इसी अवधि में 1000 मुस्लिम महिलाओं में यह गिरावट केवल 19 थी।

1998-99 में जहां 1000 मुस्लिम महिलाओं ने औसतन 359 बच्चों को जन्म दिया, 2005-06 में यह आंकड़ा बढ़कर 340 हो गया। यानी इस दौरान 1000 मुस्लिम महिलाएं हिंदू महिलाओं से 81 ज्यादा बच्चे पैदा कर रही थीं। 2015-16 के आंकड़ों में यह अंतर घटकर 50 रह गया है।

आईआईपीएस ने अपनी रिपोर्ट में यह भी कहा है कि 1991 से 2001 के दौरान कई राज्यों में मुस्लिम आबादी की वृद्धि दर में कमी आई है। यह वास्तव में गोवा, केरल, तमिलनाडु जैसे राज्यों में हो रहा है। विशेषज्ञों के अनुसार, पिछले कुछ दशकों के दौरान बेहतर स्वास्थ्य और शैक्षिक सुविधाओं के कारण औसत आयु में वृद्धि हुई है और छोटे परिवार के लाभों के बारे में जागरूकता बढ़ी है।

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इसका एक परिणाम यह हुआ है कि अन्य समुदायों की तरह मुस्लिम समुदाय की प्रजनन दर में भी कमी आई है। इस वजह से इसकी आबादी में वृद्धि की गति कम हो गई है। खुद भारत सरकार के आंकड़े बताते हैं कि 1991 से 2001 के बीच जहां मुसलमानों की आबादी में 29 फीसदी की बढ़ोतरी हुई, वहीं 2001 से 2011 के दौरान यह आंकड़ा घटकर 24 फीसदी रह गया।

यानी यह सिर्फ एक झूठा प्रचार है कि भारत में जल्द ही हिंदू अल्पसंख्यक हो सकते हैं। प्यू की रिपोर्ट के मुताबिक 2050 तक भी हिंदू न केवल भारत में बहुसंख्यक होंगे बल्कि दुनिया में तीसरे सबसे बड़े समुदाय होंगे। आज इनकी संख्या लगभग एक अरब है, जिसमें तब तक 34 प्रतिशत की वृद्धि हो चुकी होती। आईआईपीएस रिपोर्ट एक कदम आगे जाती है। इसके शब्दों में, ‘यह कहा जा सकता है कि, आज की तुलना में मुस्लिम आबादी का हिस्सा बढ़ जाएगा। लेकिन यह संभावना नहीं है कि इस सदी के अंत तक भी यह 20 प्रतिशत से बहुत ऊपर चला जाएगा।